For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

झुकी उस डाल में हमको कई चीखें सुनाई दें (ग़ज़ल 'राज')

१२२२  १२२२   १२२२   १२२२ 

तुम्हारे पाँव से कुचले हुए गुंचे दुहाई दें

फ़सुर्दा घास की आहें हमें अक्सर सुनाई दें

 

तुम्हें उस झोंपड़ी में हुस्न का बाज़ार दिखता है

हमें फिरती हुई बेजान सी लाशें दिखाई दें

 

तुम्हें क्या फ़र्क पड़ता है मजे से तोड़ते कलियाँ

झुकी उस डाल में  हमको कई चीखें सुनाई दें

 

न कोई दर्द होता है लहू को देख कर तुमको  

तुम्हें आती हँसी जब सिसकियाँ  भर- भर दुहाई दें 

कहाँ महफ़ूज़ वो माँ दूध से जिसने हमे पाला

झुका देती जबीं अपनी सजाएँ जब कसाई दें

 

उड़े कैसे भला तितली लगे हैं घात में शातिर

खुदा की रहमतें ही बस उन्हें अब तो रिहाई दें 

 

करें फ़रियाद कब किससे जहाँ में कौन है किसका

सितम गर रूहें , खुद रब की अदालत में सफ़ाई दें

 

फ़सुर्दा =मुरझाई हुई

महफ़ूज़ =सुरक्षित

जबीं =माथा 

(मौलिक एवं अप्रकाशित )

Views: 920

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by विनय कुमार on July 10, 2014 at 2:37am

तुम्हें उस झोंपड़ी में हुस्न का बाज़ार है दिखता हमें फिरती हुई बेजान सी लाशें दिखाई दें वाह , बहुत बेहतरीन , दिली बधाई |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on July 9, 2014 at 5:07pm

आ० मदन मोहन सक्सेना जी ,आपको ग़ज़ल अच्छी लगी मेरा लिखना सफल हुआ ,हार्दिक आभार आपका |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on July 9, 2014 at 5:06pm

नरेन्द्र सिंह चौहान जी ,आपको ग़ज़ल पसंद आई तहे दिल से शुक्रिया आपका |

Comment by Madan Mohan saxena on July 9, 2014 at 3:54pm

तुम्हें उस झोंपड़ी में हुस्न का बाज़ार है दिखता
हमें फिरती हुई बेजान सी लाशें दिखाई दें

तुम्हें क्या फ़र्क पड़ता है मजे से नोंचते कलियाँ
झुकी उस डाल में हमको कई चीखें सुनाई दें
बहुत सुन्दर गजल ,हार्दिक बधाई


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on July 9, 2014 at 10:20am

शिज्जू भैय्या ग़ज़ल के भाव आपको पसंद आये मेरा लिखना सार्थक हुआ ,तहे दिल से आभारी हूँ |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on July 8, 2014 at 10:38pm

वाह बेमिसाल ग़ज़ल,  भावनाओं को क्या खूब शेरों की शक्ल में पेश की है आपने बहुत बहुत बधाई


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on July 8, 2014 at 9:48pm

आ० महेश्वरी कनेरी जी ,आपको ग़ज़ल पसंद आई मेरा लिखना सार्थक हुआ ,तहे दिल से आभारी हूँ |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on July 8, 2014 at 9:47pm

आ० डॉ आशुतोष जी ,आपको ग़ज़ल उसके भाव प्रभावित कर सके ,मेरा लिखना सार्थक हुआ तहे दिल से आभार आपका |

Comment by Maheshwari Kaneri on July 8, 2014 at 12:45pm

  बहुत बढिया गजल ..राजेश जी..उर्दू का अच्छा प्रयोग किया है..

Comment by Dr Ashutosh Mishra on July 8, 2014 at 11:56am

आदरणीया राजेश जी ..आज तो आपकी ग़ज़ल उर्दू के रंग में रंगी दिखी ..बहुत ही अच्छे भाव..

तुम्हें उस झोंपड़ी में हुस्न का बाज़ार है दिखता

हमें फिरती हुई बेजान सी लाशें दिखाई दें....

करें फ़रियाद कब किससे जहाँ में कौन है किसकाए

सितम गर रूह, खुद रब की अदालत में सफ़ाई दें...ये दो शेर तो मुझे बिशेष रूप से बेहद पसंद आये ...ए a

इस शानदार ग़ज़ल के आपई को हार्दिक बधाई सादर 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२ जब जिये हम दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं अब कान देते   आपके निर्देश हैं…See More
Sunday
Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
Saturday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
Friday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
Friday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"असमंजस (लघुकथा): हुआ यूॅं कि नयी सदी में 'सत्य' के साथ लिव-इन रिलेशनशिप के कड़वे अनुभव…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब साथियो। त्योहारों की बेला की व्यस्तता के बाद अब है इंतज़ार लघुकथा गोष्ठी में विषय मुक्त सार्थक…"
Thursday
Jaihind Raipuri commented on Admin's group आंचलिक साहित्य
"गीत (छत्तीसगढ़ी ) जय छत्तीसगढ़ जय-जय छत्तीसगढ़ माटी म ओ तोर मंईया मया हे अब्बड़ जय छत्तीसगढ़ जय-जय…"
Thursday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service