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गोल रोटी/लघुकथा/कल्पना रामानी

माँ ने आज उसके हाथ पर पूरी गोल रोटी और गुड का टुकड़ा रखा तो गोलू की आँखें आश्चर्य से फैल गईं। पलटकर आसमान की ओर देखा। पूनम का गोल चाँद चमक रहा था। दोनों की नज़रें मिलीं और एक मीठी सी मुस्कान हवा में घुल गई।

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मौलिक व अप्रकाशित

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प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on June 26, 2014 at 10:45am

"पूरी" रोटी बहुत कुछ कह गई.
इस सुन्दर लघुकथा पर मेरी बधाई स्वीकारें आ० कल्पना रामानी जी.

Comment by Sushil Sarna on June 25, 2014 at 8:01pm

लघु कथा के रूप में विस्तृत आकाश से गहन भाव समेटे इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक हार्दिक बधाई आदरणीया कल्पना जी 

Comment by कल्पना रामानी on June 25, 2014 at 7:45pm

आदरणीय गोपालनरायन जी, जितेंद्र जी, शुभ्रांशु जी, प्रिय अन्नपूर्णा  जी, आप सबको लघुकथा पसंद आई बहुत हर्ष हुआ। यह मेरा पहला प्रयास ही है। अब लग रहा है कि मैं इस विधा में भी लिख सकती हूँ।

Comment by annapurna bajpai on June 25, 2014 at 6:01pm

वाह !! आ0 कल्पना दीदी कितनी सुंदरता से भाव संप्रेषित किए है , बधाई आपको । 

Comment by Shubhranshu Pandey on June 25, 2014 at 1:52pm

बच्चा तो यही सोच रहा होगा...काश चांद आज कुछ और बडा़ होता....

सुन्दर कथा..

सादर.

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on June 25, 2014 at 12:30pm

 बहुत सुंदर लघुकथा लगी, आदरणीया कल्पना जी आपको बहुत बहुत बधाई

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on June 24, 2014 at 3:39pm

महनीया

आपने बड़े संकट में डाल दिया i इतना सांकेतिक कर दिया  कि बस डूबते जाओ  i अर्थ पर अर्थ लगाओ i पर संतुष्टि  न हो i अब इससे से अधिक क्या कहूं   i  आपकी लेखनी को प्रणाम  i

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