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है ताब मुझे / एक ताज़ा तरही गज़ल

2122 1212 112
इश्क में जायेगी ये जान भी क्या
सब्र तोड़ेगा इम्तेहान भी क्या
.
ठोकरें हमको कर गयीं हैरां
आपने बदली है जबान भी क्या
.

गिर के नज़रों में कोई तुम ही कहो
जीत पायेगा ये जहाँन भी क्या
.
चाँद देखा था रात सहमा सा
'इस जमीं पर है आसमान भी क्या'
.
काट दे पर मेरे है ताब मुझे
रोक पायेगा तू उड़ान भी क्या
.
फिर मुझे प्यार पर यकीन हुआ
नर्म दिल में तेरा निशान भी क्या
.
एक जुम्बिश हुयी है दिल में कहीं
ज़िक्र में आई मेरी जान भी क्या
.
मौलिक/ अप्रकाशित

संशोधित

Views: 1070

Comment

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Comment by gumnaam pithoragarhi on June 18, 2014 at 10:03pm

.

काट दे पर मेरे है ताब मुझे
रोक पायेगा तू उड़ान भी क्या

बहुत खूब ,, बधाई

Comment by Meena Pathak on June 18, 2014 at 4:20pm

काट दे पर मेरे है ताब मुझे
रोक पायेगा तू उड़ान भी क्या.....................बहुत खूब ,, बधाई | सस्नेह 

Comment by वेदिका on June 18, 2014 at 12:38am

आ० कल्पना दीदी!

आपके स्नेहसिक्त आशीष को पाकर धन्य हुयी हूँ|

आपकी बताई हुयी राह के लिए ह्रदय से आभारी हूँ| इस शेर के अर्थ बदलाव को लेकर जिस पशोपेश से गुजर रही थी, वह मुश्किल हल हो गयी|

सादर वेदिका  

Comment by वेदिका on June 18, 2014 at 12:32am

आपका हार्दिक आभार आ0 अमित जी!

Comment by Amit Kumar "Amit" on June 17, 2014 at 12:36pm

Bahut khoob gitika ji

Comment by वेदिका on June 17, 2014 at 12:48am
गजल का अनुमोदन करने के लिए आभार आ0 गिरिराज जी!

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on June 16, 2014 at 9:42pm

आदरणीया गीतिका जी , बहुत सुन्दर गज़ल के लिये आपको दिली बधाइयाँ ॥

काट दे पर मेरे है ताब मुझे
रोक पायेगा तू उड़ान भी क्या ---- बहुत खूब , ढेरों बधाइयाँ ॥

Comment by कल्पना रामानी on June 16, 2014 at 7:31pm

वाह,वाह!! बहुत समय बाद आप दिखी है वो भी इतनी सुंदर गज़ल के साथ! बहुत बहुत बधाई आपको...

काट दे पर मेरे है ताब मुझे
रोक पायेगा तू उड़ान भी क्या....बहुत खूबसूरत

नज्र में गिर के कोई तुम ही कहो
जीत पायेगा ये जहाँन भी क्या....इस शेर को अगर नीचे दिये अनुसार  कहें तो ....

 गिर के नज़रों में कोई तुम ही कहो
जीत पायेगा ये जहाँन भी क्या

Comment by वेदिका on June 16, 2014 at 3:46pm
प्रिय संजू जी!
बहुत ख़ुशी हुयी गजल पर आपका अनुमोदन प्राप्त हुआ। ह्रदय तल से आभार व्यक्त करती हूँ।
Comment by sanju shabdita on June 16, 2014 at 3:00pm

काट दे पर मेरे है ताब मुझे
रोक पायेगा तू उड़ान भी क्या

वाह ..... बहुत खूब... खूबसूरत ग़ज़ल की बधाई आदरनिया गीतिका जी

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