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तेरी खातिर मुस्कुराना चाहता हूँ- ग़ज़ल

2122- 2122- 2122

दिल से निकले वो तराना चाहता हूँ

इक मसर्रत का फसाना चाहता हूँ                       (मसर्रत =खुशी)

 

देख कर मुझको छलक जायें न आँसू

तेरी खातिर मुस्कुराना चाहता हूँ

 

जी लिया मैंने बहुत बचते हुये अब

मुश्किलों को आजमाना चाहता हूँ

 

बेझिझक मै पत्थरों के शह्र जाके

उनको आईना दिखाना चाहता हूँ

 

सुब्ह की चुभती हुई इस धूप को मैं

अपनी आँखों से हटाना चाहता हूँ

 

हर ख़लिश को ओढ़कर कुछ देर को मैं

ख़्वाब में ही डूब जाना चाहता हूँ

 

दिन दिखाये थे मुझे हालात ने जो

मैं तुम्हें उससे बचाना चाहता हूँ

 

चल सको आराम से तुम सो तुम्हारे

रास्ते आसाँ बनाना चाहता हूँ

 

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

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Comment by shashi purwar on March 22, 2014 at 9:50pm

बहुत सुन्दर गजल आदरणीय शकूर जी

देख कर मुझको छलक जायें न आँसू

तेरी खातिर मुस्कुराना चाहता हूँ

  वाह हार्दिक बधाई आपको


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Comment by rajesh kumari on March 22, 2014 at 9:49pm

बहुत सुन्दर ग़ज़ल लिखी शिज्जू भाई 

दिन दिखाये थे मुझे हालात ने जो

मैं तुम्हें उससे बचाना चाहता हूँ----बहुत उम्दा शेर 

तहे दिल से बधाई सुन्दर ग़ज़ल के लिए  


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Comment by शिज्जु "शकूर" on March 22, 2014 at 1:55pm

आदरणीय राम कुमारजी आपका आभार। से की मात्रा गिराई गई है इस तरह उसका वज्न मैंने 1 लिया है


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on March 22, 2014 at 1:53pm

आदरणीय श्याम नारायण जी आपका बहुत बहुत शुक्रिया। 


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Comment by शिज्जु "शकूर" on March 22, 2014 at 1:52pm

आदरणीय लक्ष्मण जी आपका बहुत बहुत शुक्रिया। क्षमा वाली कोई बात ही नही है सुझावों का सदैव स्वागत है।


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Comment by शिज्जु "शकूर" on March 22, 2014 at 1:50pm

आदरणीय गिरिराज सर रचना की सराहना के लिये आपका आभार


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Comment by शिज्जु "शकूर" on March 22, 2014 at 1:49pm

आदरणीय अभिनव जी आपका बहुत बहुत शुक्रिया

Comment by RAM KUMAR MISHRA on March 22, 2014 at 1:37pm

दिल से निकले वो तराना चाहता हूँ ---2222+2122+2122 --???

इक मसर्रत का फसाना चाहता हूँ   --2122+2122+2122

-----बहुत उम्दा ग़ज़ल कही है...बधाई !!

Comment by Shyam Narain Verma on March 22, 2014 at 10:31am
अच्छी प्रस्तुति आदरणीय ,बधाई 
Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 22, 2014 at 10:25am

आदरणीय शिज्जू भाई , एक बेहतरीन ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई .

साथ ही एक निवेदन सा है कि मुझे लगता है कि चौथे शे'र में ' उनको आईना दिखाना चाहता हूँ' की जगह ' आइना उनको  दिखाना चाहता हूँ' होने से लय प्रवाह अधिक बेहतर हो जायेगा . अगर गलत हूँ तो क्षमा करें .

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