For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

लफ़्ज़ कब जज़्बात को पूरे पड़े ? ( ग़ज़ल ) गिरिराज भंडारी

2122     2122        212 ( पूरा ) 

 

इस फ़िज़ा के शोख नज़्ज़ारे भी देख

बाग  मे  पानी के  फौव्वारे भी देख

 

सिर्फ  सूखे  तू शज़र   देखा  न  कर

हो  रहे  पत्ते   हरे   सारे  भी   देख  

 

तू अमा में चाँद  खातिर , ज़िद  न कर        

आ कभी आकाश में तारे भी देख

सिर्फ  भारी रह सकूँ , ये सोच  मत  

कैसे उड़ते, हलके  गुब्बारे  भी  देख  

 

चन्द  हँसती  सूरतों  से  खुश न हो  

देख  आँसू , दर्द  के  मारे  भी  देख

 

जीत  से  कोई  नही  सीखा   कभी

ज़िन्दगी से हम कहाँ  हारे ,भी देख

 

लफ़्ज़ कब  जज़्बात  को  पूरे  पड़े ?

भीगती  आँखों  में  अंगारे भी देख  

 

********************************

मौलिक एवँ अप्रकाशित

Views: 709

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on March 5, 2014 at 7:27pm

आदरणीय सौरभ भाई , आपको ग़ज़ल पसन्द आई , बहुत खुशी हुई !! आपका हृदय से आभारी हूँ ॥


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on March 5, 2014 at 1:02am

मैं कोई एक शेर उद्धृत नहीं कर पा रहा हूँ.  इस क़ामयाब ग़ज़ल पर दिल से दाद दे रहा हूँ.

सादर


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on February 24, 2014 at 9:13pm

आदरणीया प्राची जी , ग़ज़ल की सराहना कर उत्साह वर्धन करने के लिये आपका तहे दिल से शुक्रिया ॥


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on February 24, 2014 at 9:12pm

आदरणीय राम शिरोमणी भाई , गज़ल की सराहना और उत्साह वर्धन के लिये आपका तहे दिल से शुक्रिया ॥


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on February 24, 2014 at 8:47pm

चन्द  हँसती  सूरतों  से  खुश न हो  

देख  आँसू , दर्द  के  मारे  भी  देख

लफ़्ज़ कब  जज़्बात  को  पूरे  पड़े ?

भीगती  आँखों  में  अंगारे भी देख

बहुत सुन्दर गाल हुई है , ये दो शेर ख़ास पसंद आये 

हार्दिक बधाई इस ग़ज़ल पर 

Comment by ram shiromani pathak on February 22, 2014 at 4:48pm

वाह वाह आदरणीय गिरिराज जी

क्या खूब कहा आपने//////////

सिर्फ  सूखे  तू शज़र   देखा  न  कर

हो  रहे  पत्ते   हरे   सारे  भी   देख  

 

तू अमा में चाँद  खातिर , ज़िद  न कर        

आ कभी आकाश में तारे भी देख

सिर्फ  भारी रह सकूँ , ये सोच  मत  

कैसे उड़ते, हलके  गुब्बारे  भी  देख  

 

चन्द  हँसती  सूरतों  से  खुश न हो  

देख  आँसू , दर्द  के  मारे  भी  देख

 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on February 20, 2014 at 10:05pm

आदरणीय बृजेश भाई , य्त्साह वर्धन के लिये आपका दिली शुक्रिया ॥

Comment by बृजेश नीरज on February 20, 2014 at 7:04pm

बहुत सुन्दर ग़ज़ल! आपको हार्दिक बधाई!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on February 20, 2014 at 6:19pm

आदरणीया शशि जी , ग़ज़ल की तारीफ के लिये आपका तहे दिल से शुक्रिया ॥


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on February 20, 2014 at 6:18pm

आदरणीय नादिर खान भाई , ग़ज़ल की सराहना और उत्साह वर्धन के लिये आपका तहे दिल से शुक्रिया ॥

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
10 hours ago
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
19 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
19 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
yesterday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
yesterday
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
yesterday
Shyam Narain Verma commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
yesterday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service