For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

क्षितिज

 

दूर छोर पर

एकाकार होते 

सिन्दूरी आसमान

और हरी धरती

 

उस रेखा का कोई रंग नहीं

 

 

एक स्थिति

 

खाली बाल्टी

और उसमें

नल से

बूँद-बूँद टपकता पानी

 

मैं देख रहा हूँ

किंकर्तव्यविमूढ़

संघर्ष

 

तपते दिनों के बाद

सर्द हवाओं का मौसम

 

कब से बारिश नहीं हुई

बहुत से सपने सूख गए

 

-  बृजेश नीरज

(मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 734

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by बृजेश नीरज on January 17, 2014 at 8:19pm

जो भी चर्चा मेरे इस तुक्ष प्रयास पर हुई है, वह मेरे लिए बहुत उपयोगी है. चर्चा यह भी दर्शाती है कि रचना पाठक के सामने जाने के बाद उसके अर्थों में ही जीती है.

पहली क्षणिका में रेखा का कोई रंग नहीं, यह स्टेटमेंट मैंने सिन्दूरी और हरे रंग के सन्दर्भों में प्रयोग किया है. मैंने उस अवस्था का ही वर्णन किया है जब आसमान सिन्दूरी और धरती हरी होती है. यह दोनों रंग धार्मिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण हैं.

तीसरी क्षणिका में मौसम का सीक्वेंस जानबूझकर वैसा ही रखा था. जीवन में कठिन दिनों के बाद अक्सर रिश्ते शुष्क और ठण्डे हो जाते हैं. यूँ भी भारतीय कैलेंडर में चैत्र से वर्ष की शुरुआत होती है और उस समय गर्मी का ही मौसम होता है.

चर्चा में जो भी बिंदु उठे हैं, वे रचनाकर्म को सघन और तार्किक करने के लिए महत्वपूर्ण हैं. उन बिन्दुओं के अनुसार रचना को नया रूप देने का प्रयास करूँगा.

सादर! 

Comment by बृजेश नीरज on January 17, 2014 at 7:58pm

आदरणीय शिज्जु जी आपका हार्दिक आभार!

Comment by बृजेश नीरज on January 17, 2014 at 7:58pm

आदरणीय गिरिराज जी आपका हार्दिक आभार! आप ही लोगों से सीखकर मैं कुछ कलम चला पा रहा हूँ!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on January 17, 2014 at 7:54pm

आदरणीय बृजेश जी बहुत खूबसूरत रचना है बधाई स्वीकार करें।
आदरणीय सौरभ सर और आदरणीया कुन्ती जी की चर्चा से ये साफ पता लगता है कि एक रचनाकार कितनी गहराई से सोचता है, जिस गहराई से आपने इस रचना का विश्लेषण किया है उससे बहुत कुछ सीखने को मिला है, इस मंच की यही खूबी मुझे बाँधे हुये है।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 17, 2014 at 5:41pm

आदरणीय बृजेश भाई , बहुत सुन्दर क्षणिकायें है !! आदरणीय नादिर खान भाई जी से सहमत हूँ , आपकी रचना से कुछ न कुछ सीखने मिलता है ॥ आपको बहुत बहुत बधाइयाँ ॥

Comment by बृजेश नीरज on January 17, 2014 at 5:34pm

आदरणीया कुंती जी आपका हार्दिक आभार! आपने रचना को विस्तार भी दिया और नया आयाम भी!

सादर!

Comment by बृजेश नीरज on January 17, 2014 at 5:17pm

आदरणीय सौरभ जी आपका हार्दिक आभार! रचना पर आपका मार्गदर्शन उपयोगी है. इसे नया रूप देने का प्रयास करता हूँ.

सादर!

Comment by बृजेश नीरज on January 17, 2014 at 5:08pm

आदरणीय नादिर खान जी, आपका हार्दिक आभार!

मैं भी साहित्य की कक्षा का छात्र ही हूँ.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on January 17, 2014 at 4:51pm

//यह है सगुण रूप जो इंसानी आँखें देखता है .. उस रेखा का कोई रंग नहीं.........यहाँ रचनाकार की दृष्टि  निर्गुण की ओर है......निर्गुण का कोई रूप नहीं कोई आकार नहीं. //

आदरणीया, कुन्तीजी, आपकी आध्यात्मिक विचारधारा को नमन. लेकिन मूल प्रश्न रह ही जाता है, और वो कि ऐसे में फिर इस कविता (या भावशब्द) का प्रयोजन क्या रह गया ?

वैचारिक रूप से अधिकांश सक्षम यह तो जानते ही हैं कि सगुण की सीमा के पार ही ’वह’ लोक है. मेरी पाठकीय दृष्टि भी वहाँ तक गयी थी, लेकिन मेरी सोच ने यही प्रश्न खड़े किये कि क्या एक फ्लैट स्टेटमेण्ट से इस प्रस्तुति का प्रयोजन सध जाता है ? यदि ऐसा है तो मैं भी ’हाँ’ करूँ. लेकिन मैं नहीं कर पाया.

आदरणीया कुन्तीजी, अतुकान्त रचनाओं पर आपकी इतनी विशद प्रतिक्रिया से मन प्रसन्न है.

सादर

Comment by coontee mukerji on January 17, 2014 at 3:57pm

बृजेश जी की क्षणिका क्षितिज की अंतिम पंक्ति--उस रेखा का कोई रंग नहीं----अगर दार्शनिक दृष्टि  से देखा जाय  तो अर्थ स्पष्ट झलकता है...

दूर छोर पर

एकाकार होते 

सिन्दूरी आसमान

और हरी धरती.......यह है सगुण रूप जो इंसानी आँखें देखता है

उस रेखा का कोई रंग नहीं.........यहाँ रचनाकार की दृष्टि  निर्गुण की ओर है......निर्गुण का कोई रूप नहीं कोई आकार नहीं.

दूसरी क्षणिका......स्थिति.....यहाँ रचनाकार ने उस स्थिति का वर्णन  किया जब नल से पानी तो गिरता है...मगर बूँद बूँद--- यह स्थिति

कितनी कष्टदायक होती है यह कोई किसी भुक्तभोगी से पूछें.

तीसरी क्षणिका....

संघर्ष

 

तपते दिनों के बाद

सर्द हवाओं का मौसम......यहाँ तपते दिनों के बाद.....सर्द हवाओं  का मौसम.....बाद शब्द एक अंतराल को दर्शाता है.

 

कब से बारिश नहीं हुई

बहुत से सपने सूख गए.....यहाँ रचनाकार की सशक्त  कलम का परिचय मिलता हैं....बारिश न होने से क्या क्या नहीं होता है यह हर एक को पता है.एक पाठक की दृष्टि से ऐसा ही मैं बृजेश जी की रचना पढ़कर समझी हूँ.

 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आग लगी है व्योम में, कहते कवि 'कल्याण' चहुँ दिशि बस अंगार हैं, किस विधि पाएं त्राण,किस…"
23 minutes ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"भाई लक्षमण जी एक अरसे बाद आपकी रचना पर आना हुआ और मन मुग्ध हो गया पर्यावरण के क्षरण पर…"
57 minutes ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"अभिवादन सादर।"
1 hour ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आदरणीय सुरेश कुमार कल्याण जी, प्रदत्त विषय को सार्थक करतीब हुत बढ़िया दोहावली की प्रस्तुति। इस…"
1 hour ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आपने पर्यावरण के विभिन्न आयामों को सम्मिलित करते हुए एक बढ़िया प्रस्तुति दी…"
1 hour ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आदरणीय सुरेश कुमार कल्याण जी, प्रदत्त विषय पर बढ़िया कुंडलिया छंद हुआ है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
1 hour ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आदरणीय लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' जी, प्रदत्त विषय पर बहुत बढ़िया ग़ज़ल हुई है। इस प्रस्तुति…"
1 hour ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"धुंध गहरी और खाई दिख रही है  अब तरक्की में तबाही दिख रही है। बोझ से घायल हुआ सीना जमीं…"
2 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आ. भाई दयाराम जी, सादर अभिवादन। रचना पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए आभार।"
7 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"सहर्ष सदर अभिवादन "
14 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, पर्यावरण विषय पर सुंदर सारगर्भित ग़ज़ल के लिए बधाई।"
17 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आदरणीय सुरेश कुमार जी, प्रदत्त विषय पर सुंदर सारगर्भित कुण्डलिया छंद के लिए बहुत बहुत बधाई।"
17 hours ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service