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तुम पथिक आए कहाँ से (नवगीत) - कल्पना रामानी

तुम पथिक, आए कहाँ से,

कौनसी मंज़िल पहुँचना?

इस शहर के रास्तों पर,

कुछ सँभलकर पाँव धरना।

 

बात कल की है, यहाँ पर,

कत्ल जीवित वन हुआ था।

जड़ मशीनें जी उठी थीं,

और जड़ जीवन हुआ था।

 

देख थी हैरान कुदरत,

सूर्य का बेवक्त ढलना।

 

जो युगों से थे खड़े

वे पेड़ धरती पर पड़े थे। 

उस कुटिल तूफान से, तुम  

पूछना कैसे लड़े थे।

 

याद होगा हर दिशा को,

डालियों का वो सिसकना।

 

घर बसे हैं अब जहाँ,

लाखों वहीं बेघर हुए थे।

बेरहम भूकम्प से सब,

बेवतन वनचर हुए थे।

 

खिलखिलाहट आज है, कल

था यहीं आहों का झरना।

   

हो सके, उनको चढ़ाना,

कुछ सुमन संकल्प करके।

कुछ वचन देकर निभाना,

पूर्ण काया-कल्प करके।

 

याद में उनकी पथिक! तुम  

एक वन की नींव रखना। 

मौलिक व अप्रकाशित

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Comment by vandana on January 17, 2014 at 6:50am

बात कल की है, यहाँ पर,

कत्ल जीवित वन हुआ था।

जड़ मशीनें जी उठी थीं,

और जड़ जीवन हुआ था।

जो युगों से थे खड़े

वे पेड़ धरती पर पड़े थे। 

उस कुटिल तूफान से, तुम  

पूछना कैसे लड़े थे।

आदरणीया आपके नवगीत  मुग्ध करते हैं.... संग्रहणीय  रचना 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on January 17, 2014 at 12:15am

आदरणीया कल्पनाजी, आप निरंतर और सार्थक लिखने वाली कवयित्री हैं. नवगीत का तथ्य और इसकी पृष्ठभूमि दोनों आज की एक मुख्य समस्या को पटल पर लाने का प्रयास कर रही हैं. सफल भी हुई हैं आप. पहले दोनों बन्द् तो कमाल के हुए हैं. इनकी संप्रेषणीयता मुग्ध् करती है.
लेकिन आगे, शिल्पगत तौर पर यह रचना तनिक और समय चाहती थी.
मुखड़े को तो चलिये स्वीकार कर लिया, लेकिन आखिरी पंक्ति की तो तुक ही अधम श्रेणी की हो गयी है.  
बहरहाल, हार्दिक शुभकामनाएँ

Comment by coontee mukerji on January 16, 2014 at 9:15pm

बहुत  सुंदर रचना. कल्पना जी आपको हार्दिक बधाई.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on January 16, 2014 at 8:16pm

बहुत खूबसूरत रचना है आदरणीया कल्पना जी बहुत बहुत बधाई आपको

Comment by Neeraj Neer on January 16, 2014 at 7:53pm

बहुत ही सुन्दर रचना, मूक वृक्षों के दर्द को आपने मानो स्वर दे दिया .. 

Comment by annapurna bajpai on January 16, 2014 at 6:30pm

आ0 कल्पना दी इतनी सुंदर रचना , बहुत बधाई आपको । कई बार मन कहना बहुत कुछ चाहता है किन्तु शब्द नहीं निकलते कुछ ऐसी ही स्थिति मेरी है क्या कहूँ बस निशब्द हूँ । आपको हार्दिक बधाई इस अनुपम रचना हेतु । 

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