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बेजुबाँ होते अगर तुम बुत बना देते (ग़ज़ल "राज")

२१२२   २१२२  २१२२  २

बह्र- "रमल मुसम्मन महजूफ"

.

मुन्तज़िर अरमाँ सभी हाथों से ढा देते

ऐ ख़ुदा हमको अगर पत्थर बना देते

 

इक  समंदर हम नया दिल में बसा देते 

तुम अगर  आँसू  हमें पीना सिखा देते

 

आजिज़ी होती न दिल में तीरगी होती

बेजुबाँ होते अगर तुम बुत बना देते

 

रूह प्यासी  क्यूँ ये सहरा में खड़ी  होती

प्यार का चश्मा अगर दिल में बहा देते  

 

दिल मुहब्बत में धड़कता ये हमारा भी

तुम अगर उल्फत भरे नगमे सुना देते

 

इक फ़सुर्दा फूल चाहत  में हुए तेरी 

फिर  महक जाते अगर तुम मुस्कुरा देते 

 

गमज़दा बेशक़, नहीं मगरूर हम देखो 

लौट आते, तुम अगर मुड़ कर सदा देते

 

काँपती चौखट न दीवारें हिला करती

प्यार  के आधार पर जो घर टिका देते

 

तल्खियां सब “राज” दिल में दफ्न कर जाती  

ये जमीं तो क्या सितारे भी दुआ देते

*********************

 

आजिज़ी=उकताहट

फ़सुर्दा=मुरझाये हुए

मुन्तज़िर=प्रतीक्षारत

तल्खियां =कडवाहट

तीरगी =अँधेरा (गम )

(मौलिक एवं अप्रकाशित )

(संशोधित)

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Comment by rajesh kumari on November 18, 2013 at 4:18pm

राजेश मृदु जी ग़ज़ल पर आपकी प्रशंसा मेरे लेखन को सार्थक कर रही है दिल से आभारी हूँ 

Comment by राजेश 'मृदु' on November 18, 2013 at 3:44pm

वाह-वाह, बहुत सुंदर गज़ल, हार्दिक बधाई आपको इस प्रस्‍तुति पर, सादर


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on November 18, 2013 at 10:19am

जीतेन्द्र जी ग़ज़ल पर आपकी प्रतिक्रिया पाकर हर्षित हूँ ग़ज़ल के शेर प्रभावित करें पाठकों के दिल तक पंहुचे और एक लेखक को क्या चाहिए ,दिल से आभारी हूँ 

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on November 18, 2013 at 9:42am

आजिज़ी होती न दिल में तीरगी होती

बेजुबाँ होते अगर तुम बुत बना देते..........क्या बात है, बहुत खूब शेर

काँपती चौखट न दीवारें हिला करती

प्यार  के आधार पर जो घर टिका देते........यह शेर तो एक सार्थक सन्देश दे रहा है

बेहद सुंदर गजल, आपके द्वारा नीचे दिए शब्दार्थ से सरलता से भाव स्पष्ट हुए, हम जैसे पाठकों के लिए, गजल पर हृदय से बधाई स्वीकारें आदरणीया राजेश जी


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on November 18, 2013 at 9:12am

प्रिय गीतिका ग़ज़ल पर आपकी उपस्थिति और सराहना ह्रदय से स्वीकार लेखन सार्थक हुआ सस्नेह. 

Comment by वेदिका on November 18, 2013 at 12:28am

क्या शेअर कहा है आपने! वाह! वाह!

गमज़दा बेशक़, नहीं मगरूर हम देखो 

लौट आते, तुम अगर मुड़ कर सदा देते

खूब गजल हुयी! बधाई!


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Comment by rajesh kumari on November 17, 2013 at 2:25pm

प्रिय अरुन शर्मा आपको ग़ज़ल पसंद आई आपकी दाद दिल से स्वीकार ,आभार एवं शुभकामनायें. 


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Comment by rajesh kumari on November 17, 2013 at 2:23pm

आदरणीय वीनस जी आपकी सराहना पाकर लगता है मेहनत सफल हुई मेरा लिखना सार्थक हुआ ग़ज़ल धन्य हुई ,दिल से आभारी हूँ 


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Comment by rajesh kumari on November 17, 2013 at 2:22pm

आदरणीय अखिलेश कृष्ण जी तहे दिल से आभार आपका 


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Comment by rajesh kumari on November 17, 2013 at 2:21pm

बैद्यनाथ सारथि जी ग़ज़ल पर आपकी प्रशंसा पाकर हर्षित हूँ मेरा लिखना सार्थक हुआ दिल से आभार आपका 

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