For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

लिख दिया तो लिख दिया

हमने तुम्हारी जात पर,जब लिख दिया तो लिख दिया

कुछ बेतुके जज्बात पर;जब लिख दिया तो लिख दिया

 

कितना सुहाना मुल्क है, तुमने कहा अखबार में

बीमार से हालात पर जब लिख दिया तो लिख दिया   

 

जब से खुले बाजार की रख्खी गयी है नींव तो  

हरदिन लगे आघात पर जब लिख दिया तो लिख दिया

 

नक्कारखाना बन गया, सुनता नहीं, कोई कहीं

दिन-रात के उत्पात पर जब लिख दिया तो लिख दिया

 

कश्ती भंवर में है परेशां, नाखुदा कोई नहीं

फिर गर्दिशे हालात पर जब लिख दिया तो लिख दिया

 

यह देश सारा जल रहा, बस घर तुम्हारे जश्न है   

ऐसे ही तहकीकात पर जब लिख दिया तो लिख दिया

 

चुपचाप कितने रोज तक, हम भी दबाते यूँ कहो

हर बात की औकात पर, जब लिख दिया तो लिख दिया

Views: 682

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Shyam Narain Verma on August 6, 2013 at 2:26pm
भावनाओं से ओतप्रोत रचना पर हार्दिक बधाई स्वीकार करें.... 
Comment by वेदिका on August 6, 2013 at 1:09pm

यही तो सच्चाई है और सामने आनी ही चाहिए 

यह देश सारा लुट रहा पर घर तुम्हारा भर रहा

ऐसे ही तहकीकात पर जब लिख दिया तो लिख दिया

 

बहुत सही किया आपने जो लिख दिया !! 

Comment by Meena Pathak on August 6, 2013 at 12:59pm

चुपचाप कितने रोज तक, हम भी दबाते  यूँ भला  

हर बात की औकात पर, जब लिख दिया तो लिख दिया................. बेहतरीन लिखा आप ने, बधाई स्वीकारें 

.

Comment by बसंत नेमा on August 6, 2013 at 12:57pm

बहुत खूब सुन्दर ...बधाई आ0 डाँ . ललित जी 

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on August 6, 2013 at 12:27pm

उम्दा गजल पर, हार्दिक बधाई स्वीकार करें, आदरणीय डा. ललित जी


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on August 6, 2013 at 11:49am

ग़ज़ल अच्छी हुई है मोहतरम डॉ ललित कुमार सिंह जी, जिसके लिए आपको दिली मुबारकबाद. अलबत्ता आखिरी टीम शेअरों में ऐब-ए-तकाबुले-रदीफैन बदमजगी पैदा कर गया.  

Comment by aman kumar on August 6, 2013 at 10:14am

यह सोचकर मैं हूँ परेशां, मुल्क कैसे चल रहा

बिन दुल्हे की बारात पर जब लिख दिया तो लिख दिया....

एक लेखक को कलम मिलती है भगवन से ,

अपने जज्बातों को दुनिया के सामने आईने की तरह रखना उसका धर्म बन जाता है \

जिसको आप बखूबी निभा रहा है ! आभार !

Comment by Saurabh Srivastava on August 6, 2013 at 9:57am

वाह! लिख दिया अच्छा किया...

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आदरणीय लक्ष्मण भाई , बहुत अच्छी ग़ज़ल हुई है , दिल से बधाई स्वीकार करें "
18 seconds ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post लौटा सफ़र से आज ही, अपना ज़मीर है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आदरणीय लक्ष्मण भाई , खूब सूरत मतल्ले के साथ , अच्छी ग़ज़ल कही है , हार्दिक  बधाई स्वीकार…"
4 minutes ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - चली आयी है मिलने फिर किधर से ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय सौरभ भाई , ग़ज़ल  के शेर पर आपकी विस्तृत प्रतिक्रिया देख मन को सुकून मिला , आपको मेरे कुछ…"
8 minutes ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन आपकी मनोहारी प्रशंसा से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय "
23 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, आपसे मिले अनुमोदन हेतु आभार"
yesterday
Chetan Prakash commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"मुस्काए दोस्त हम सुकून आली संस्कार आज फिर दिखा गाली   वाहहह क्या खूब  ग़ज़ल '…"
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा दशम्. . . . . गुरु

दोहा दशम्. . . . गुरुशिक्षक शिल्पी आज को, देता नव आकार । नव युग के हर स्वप्न को, करता वह साकार…See More
Friday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

लौटा सफ़र से आज ही, अपना ज़मीर है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२२१/२१२१/१२२१/२१२ ***** जिनकी ज़बाँ से सुनते  हैं गहना ज़मीर है हमको उन्हीं की आँखों में पढ़ना ज़मीर…See More
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति, उत्साहवर्धन एवं स्नेह के लिए आभार। आपका स्नेहाशीष…"
Wednesday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . नजर

नजरें मंडी हो गईं, नजर हुई  लाचार । नजरों में ही बिक गया, एक जिस्म सौ बार ।। नजरों से छुपता…See More
Wednesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आपको प्रयास सार्थक लगा, इस हेतु हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय लक्ष्मण धामी जी. "
Wednesday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service