For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

आकाशीय बिजली !!!

 

लप-लप चमकि-चमकि

रहि रहि कुलेल करत

इत उत धावति बदरा मा

कड़क-कड़क कर

मेघ धमकावत।

बालक-नारि हृदय धड़कावत

बालक जायें छिपे अंचरा मा।

नारि मन धक-धक, रहा न जाये

पाए सहारा और अपनापन

छटपटाय झट गले लगावत।

आंखें मींच लई जोरों से

कसमसात और लजावति।

बिजुरी तनिक समझि न पावति,

गिरत-पड़त छपकि-छपकि

लाज-शर्म न झपकि-झपकि।

नयनों से ज्यों तीर चलावति

सर सर सर सर सरर से

औचक छूटि चपल-चंचल जस

सर सरात, तड़-तड़ाक चली।

भुंई की ओर, सर्प चाल जस

लिपट गई फिर तडि़कचाल से।

अरर-अरर फैला अतिशय उजियारा

पल ही में छा गया अंधियारा।

टावर ज्ञानेन्द्रिय सब भय फेरा

अन्तस पावर बढ़ा घनेरा।

जीवन संयंत्र, उपकरण जियरा

भय शान्ति मृत्यु अस डेरा।

ओह! दुनिया से हो गया किनारा।

आह!  बचे सब !

गांव निवासी ।

हां! टावर पर गिरी,

ये आकाशीय बिजली।

के0पी0सत्यम/मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 636

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on April 4, 2013 at 10:33pm

आदरणीय श्री अशोक कुमार रक्ताले जी, मेरे घर के पास एक टावर पर दिनांक 28.03.2013 को आकाशीय बिजली गिरी थी। मेरे घर के उपकरण कम खराब हुए जबकि औरों के घरों में काफी नुकसान हुआ था फिर भी मैं दुनिया से कट गया था। बस इसी लाचारी को मैंने आप लोगों के सामने लाने की कोशिश की है। आपका बहुत बहुत आभार,

Comment by Ashok Kumar Raktale on April 4, 2013 at 9:19pm

आदरणीय केवल प्रसाद जी सादर, कई जगह रचना समझ नहीं आयी किन्तु आंचलिक शब्दों के उतार चढ़ाव ने मन मोह लिया. वाह! बहुत बढ़िया.

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on April 4, 2013 at 7:34pm

आदरणीया मैम सीमा अग्रवाल जी,  आपका सादर अभिनन्दन, आपको आकाशीय बिजली की प्रस्तुति अच्छी लगी, आपकी प्रसंशा  हेतु  आपका हार्दिक आभार। सादर,

Comment by seema agrawal on April 4, 2013 at 7:20pm

बहुत खूबसूरत प्रस्तुति आंचलिक भाषा ने भावों को और भी मुखर और सुन्दर कर दिया है 

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on April 4, 2013 at 7:11pm

आदरणीया  मैम कुन्ती मुखर्जी जी,    आपको आकाशीय बिजली की प्रस्तुति अच्छी लगी, आपकी प्रसंशा  हेतु  में आपका बहुत-बहुत आभारी हूं। सादर,

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on April 4, 2013 at 7:09pm

आदरणीय श्री श्याम नारायण वर्मा जी,    आपको आकाशीय बिजली की प्रस्तुति अच्छी लगी, आपके उत्साह वर्धन हेतु आपका बहुत-बहुत आभार। सादर,

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on April 4, 2013 at 7:05pm

आदरणीय श्री राम शिरोमणि पाठक जी, डर तो लगता है भाई,  अगर न लगता तो यह रचना ही क्यों लिखता।  आपको आकाशीय बिजली की प्रस्तुति अच्छी लगी, आपका बहुत-बहुत आभार। सादर,

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on April 4, 2013 at 7:01pm

आदरणीय श्री इंजी0 गनेश जी ‘बागी‘ जी, आपने मेरे ब्लाग पर टिप्पणी की। इसके लिये मैं आपका तहेदिल से स्वागत करता हूं। आपको आकाशीय बिजली की प्रस्तुति अच्छी लगी, आपका बहुत-बहुत आभार। सादर,

Comment by coontee mukerji on April 4, 2013 at 2:08pm

बहुत सुंदर केवल जी,मैदान में कड़कती बिजली से बहुत डर लगता है लेकिन आपकी  रचना अच्छी लगी .धन्यवाद .

Comment by Shyam Narain Verma on April 4, 2013 at 1:27pm

BAHOT KHOOB......................

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२ जब जिये हम दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं अब कान देते   आपके निर्देश हैं…See More
yesterday
Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
Saturday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
Friday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
Friday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"असमंजस (लघुकथा): हुआ यूॅं कि नयी सदी में 'सत्य' के साथ लिव-इन रिलेशनशिप के कड़वे अनुभव…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब साथियो। त्योहारों की बेला की व्यस्तता के बाद अब है इंतज़ार लघुकथा गोष्ठी में विषय मुक्त सार्थक…"
Thursday
Jaihind Raipuri commented on Admin's group आंचलिक साहित्य
"गीत (छत्तीसगढ़ी ) जय छत्तीसगढ़ जय-जय छत्तीसगढ़ माटी म ओ तोर मंईया मया हे अब्बड़ जय छत्तीसगढ़ जय-जय…"
Thursday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service