वो अगर मुझसे खफा है
हक है उसको क्या बुरा है
घोंसले के साथ जुडकर
एक तिनका जी रहा है
जो अपरिचित है नदी से
बाढ़ पर वो बोलता है
है यकीं चारागरी पर
हो जहर तो भी दवा है
देख कर मुँह फेर लेना
कुछ पुराना आशना है
टूट ही जाना है उसको
सच दिखाता आइना है
जी रहा तुकबंदियों को
आदमी जो बेतुका है
..................... अरुन श्री !
Comment
डा. सूर्य बाली सर , आपके द्वारा उदृत शे'र मेरा भी पसंदीदा है ! सराहना हेतु धन्यवाद !
राजेश कुमारी मैम , इस शे'र पर पूरे नंबर देने के लिए धन्यवाद ! अब ये भी बता दीजिए कि किस शे'र पर नंबर कटे हैं ! :-)) :-))
आपकी सराहना ने गौरवान्वित किया ! सादर !
संदीप जी , गज़ल को मान देने के लिए धन्यवाद ! आप सब की यही हौसला अफजाई कुछ और बेहतर करने का जज्बा भर देती है मन में !
विश्वास से भरी इस ग़ज़ल के लिये हार्दिक बधाइयाँ. अरसे बाद आपको सुनना बहुत अच्छा लग रहा है. बहुत खूब.
कुछ अश’आर तो एकदम से बाँध लेने वाले हैं.. . सच कहूँ तो कई बार पढ़ गया आपकी यह ग़ज़ल.
बहुत-बहुत शुभकामनाएँ.
अरुण भाई नमस्कार ! अच्छी ग़ज़ल कही है
जो अपरिचित है नदी से, बाढ़ पर वो बोलता है...बहुत उम्दा शेर है।
दाद कुबूल करें !
अरुन अनन्त साहब ! पसंदगी जाहिर करने के लिए शुक्रिया मित्र !
बहुत सुन्दर अरुण जी
घोंसले के साथ जुडकर
एक तिनका जी रहा है
इन पंक्तियों पर तो पूरे नंबर
वाह अरुण जी वाह! छोटी बह्र में क्या शानदार अश'आर कहे हैं आपने| दिल ख़ुश हो गया! ख़ास तौर पर ये दो शे'र बहुत ही पसंद आये|
घोंसले के साथ जुडकर
एक तिनका जी रहा है ----> जीने के लिए एक वजह ही काफ़ी है.. :-)
टूट ही जाना है उसको
सच दिखाता आइना है ---> कड़वी हक़ीक़त बयां कर दी आपने बहुत ख़ूब...
बेहद सुन्दर रचना अरुण जी , बधाई मित्र.
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