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सुंदर -असुंदर
रूप-रंग
उच्च-नीच
उतार-चढ़ाव
गुड़िया-गहने
बादल-बिजली
फूल-काँटे
जीत-हार
अपना-पराया
मान-अपमान
सारे भेद
मिटने लगते है
सपने छूटने
लगते है
जब मृत्यु शय्या पर
कोई ईश्वर से प्रार्थना 
कर रहा होता है
मुक्त हो जाने का

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Comment

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Comment by MAHIMA SHREE on March 28, 2012 at 4:07pm
आदरणीया सीमा जी
बहुत-२ धन्यवाद्.. अपना कीमती समय निकाल कर आपने मेरी रचनाये पढ़ी, उसे सराहा ,और उत्साहवर्धन
किया.... सादर साभार
Comment by MAHIMA SHREE on March 26, 2012 at 10:49am
नमस्कार नीरज सर सराहने और उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार

प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on March 3, 2012 at 10:47am

पहली दफा आपको पढने का अवसर प्राप्त हुआ महिमा जी, कहना न होगा कि आपको पड़ना बड़ा सुखदायक रहा. कम शब्दों में आला पाए की बात कहने का माद्दा आपकी कविता में साफ़ साफ़ परिलक्षित हो रहा है. इस सुन्दर रचना के लिए मेरा हार्दिक साधुवाद स्वीकार करें.

 


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on March 2, 2012 at 10:36am

वाह वाह वाह, यह है कविता , एक अतुकांत कविता, सरल प्रवाह के साथ कम शब्दों में यह कविता जो कह गई , वो बेजोड़ है, कवियित्री बधाई की पात्र है,

Comment by राकेश त्रिपाठी 'बस्तीवी' on March 2, 2012 at 9:32am

Manapmanayo tulyo! satya vachan.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on March 1, 2012 at 11:14pm

हर प्रकार के द्वंद्व से निर्लिप्तता ही मुक्ति का परिचायक है. आपकी रचना इसी वैचारिकता को धारती चलती है. कोई-कोई धीरजशील ही बाह्य-जगत की ओर उन्मुख दृष्टि को अंतर्मन की ओर मोड़ कर अंतः-संसार की अनुभूति कर पाता है. आपकी रचना की अंतर्धारा इसी तथ्य को संतुष्ट करती दीखती है.

आपकी कोई पहली रचना देख/ पढ़ रहा हूँ, महिमाश्री जी. हम आशान्वित हैं. हार्दिक शुभकामनाएँ

Comment by MAHIMA SHREE on March 1, 2012 at 9:56pm

आशुतोष जी.....धन्यवाद् ,,आपको मेरी कविता पसंद आई...आभार

Comment by MAHIMA SHREE on March 1, 2012 at 9:16pm
 धन्यवाद् shailendra  ji, आभारी हूँ
Comment by CA (Dr.)SHAILENDRA SINGH 'MRIDU' on March 1, 2012 at 8:53pm

अच्छी  रचना पर बधाई स्वीकार करें 

Comment by MAHIMA SHREE on March 1, 2012 at 8:22pm
आदरणीय राजेश कुमारी जी, 
आभार आपको मेरी रचना पसंद आई

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