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 शिकवों के दौर थे काफी,

 साथ ना तेरे आने को,

 पर एक वज़ह जिंदा थी बाकी,

 तेरा साथ निभाने को।

 

 अल्फाज़ों का शोर बहुत था,

 तुझे दगा बताने को।

 एक मेरी ख़ामोशी थी,

 सब ख़ामोश कराने को।

 

 हर गुंजाइश फीकी थी,

 प्रीत परवाज़ चढ़ाने को।

 एक मेरी उम्मीद थी बाकी,

 बाकी बचा बचाने को।

 

 तू पूरब, मैं पश्चिम हूं,

 ना मिलने का छोर है कोई,

 पर तेरा पता है काफी,

 मेरी राह बताने को।

 

 उगते सूरज की लाली तू,

 अंदाज़े आग दिखाने को,

 मैं पश्चिम की लाली हूं,

 सब समेट छिप जाने को।

 "मौलिक व अप्रकाशित"

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Comment by Dr. Geeta Chaudhary on April 18, 2023 at 8:56pm

प्रणाम  सर, मार्गदर्शन के लिए आभार।

Comment by Samar kabeer on April 18, 2023 at 8:05pm

मुहतरमा गीता जी आदाब, कविता का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।

सबसे पहले कविता का शीर्षक दुरुस्त कर लें 

'एक वज़ह' इसमें 'वज़ह' ग़लत शब्द है सहीह शब्द है "वज्ह" ।

इसके इलावा उर्दू के कुछ शब्दों में आपने नुक़्ते लगाए हैं कुछ में नहीं जिनमें नुक़्ते नहीं लगे वो ये हैं:-

काफी--'काफ़ी'

जिंदा--'ज़िंदा'

  • बाकी--बाक़ी'
  • दगा--'दग़ा'
  • दूसरे बन्द में लफ़्ज़ शब्द का बहुवचन 'लफ़्ज़ों' या 'अल्फ़ाज़' होता है,अल्फ़ाज़ों नहीं,देखिएगा ।
Comment by Dr. Geeta Chaudhary on April 17, 2023 at 7:05pm

सादर प्रणाम! प्रोत्साहन हेतु आपका हार्दिक आभार।

Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on April 17, 2023 at 6:05pm

इस सुन्दर-सी भावपूर्ण रचना हेतु हार्दिक बधाई आदरणीया गीता चौधरी जी | 

Comment by Dr. Geeta Chaudhary on April 16, 2023 at 6:05am

हार्दिक आभार सर आपका..

Comment by अटल मुरादाबादी on April 15, 2023 at 8:31pm
बहुत भावपूर्ण सृजन
Comment by Dr. Geeta Chaudhary on March 31, 2023 at 2:15pm

आभार सर आपका...

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on March 31, 2023 at 12:05pm

अच्छी प्रवाहमयी कविता के लिए बधाई आदरणीया...

Comment by Dr. Geeta Chaudhary on March 22, 2023 at 10:33pm

बहुत आभार सर!

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 22, 2023 at 9:53pm

आ. गीता जी, सादर अभिवादन। सुंदर भावपूर्ण रचना हुई है। हार्दिक बधाई।

कृपया ध्यान दे...

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