For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

जिसको हम ग़ैर समझते थे...(ग़ज़ल : सालिक गणवीर)

2122 1122 1122 22

जिसको हम ग़ैर समझते थे हमारा निकला
उससे रिश्ता तो कई साल पुराना निकला (1)

हम भी हरचंद गुनहगार नहीं थे लेकिन
बे-क़ुसूरों में फ़क़त नाम तुम्हारा निकला (2)

हम जिसे क़ैद समझते थे बदन में अपने
वक़्त आया तो वो आज़ाद परिंदा निकला (3)

जान पर खेल के जाँ मेरी बचाई उसने
मैं जिसे समझा था क़ातिल वो मसीहा निकला (4)

दोस्तो जान छिड़कता था जो कल तक मुझ पर
आज वो शख़्स मेरे ख़ून का प्यासा निकला (5)

वक़्त के साथ बड़ा होगा यही सोचा था
दिल मगर आज भी बच्चे के ही जैसा निकला (6)

मैं कहाँ जाके करूँ उसकी शिकायत 'सालिक'
मैं जिसे अपना समझता था पराया निकला (7)

*मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 696

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by सालिक गणवीर on August 27, 2020 at 8:20pm

भाई आशीष यादव जी

सादर अभिवादन

ग़ज़ल पर आपकी हाज़िरी और हौसला अफजाई के लिए आपका शुक्रग़ुजार हूँ.

Comment by आशीष यादव on August 26, 2020 at 1:48am

बहुत खूब। बढ़िया गजल पर बधाई स्वीकार कीजिए।

Comment by सालिक गणवीर on August 20, 2020 at 5:42pm

मुहतरमा डिंपल शर्मा जी
सादर अभिवादन
ग़ज़ल पर आपकी आमद और सराहना के लिए हृदयतल से आभार व्यक्त करता हूँ. सादर .

Comment by Dimple Sharma on August 19, 2020 at 10:11pm

आदरणीय सालिक गणवीर जी नमस्ते खुबसूरत ग़ज़ल पर बधाई स्वीकार करें,पाँचवा शेर बहुत ख़ूब हुआ है विशेष बधाई।

Comment by सालिक गणवीर on August 17, 2020 at 7:34pm

भाई सुरेश नाथ सिंह 'कुशक्षत्रप'
सादर अभिवादन
ग़ज़ल पर आपकी आमद और सराहना के लिए हृदयतल से आभार व्यक्त करता हूँ. सादर एवं सप्रेम.

Comment by सालिक गणवीर on August 17, 2020 at 7:33pm

आदरणीय समर कबीर साहिब
आदाब
ग़ज़ल पर आपकी मौजूदगी और हौसला अफजाई के लिए आपका तह-ए-दिल से शुक्रिया अदा करता हूँ.माज़रत चाहूूंंगा जनाब,अभी यह शैर हटा रहा हूँ.

Comment by Samar kabeer on August 17, 2020 at 4:41pm

जनाब सालिक गणवीर जी आदाब, ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है, बधाई स्वीकार करें ।

'एक ही दिन में मिरा ज़र्द हुआ है चहरा
जिस्म से ख़ून मगर कल तो ज़रा सा निकला'

ये शैर इस ग़ज़ल में भर्ती का लगा ।

Comment by नाथ सोनांचली on August 17, 2020 at 4:37pm

आद0 सालीक गणवीर जी सादर अभिवादन। बहुत उम्दः ग़ज़ल हुई है। शैर दर शैर दाद और मुबारकबाद क़ुबूल करें। सादर

Comment by सालिक गणवीर on August 14, 2020 at 12:43pm

आदरणीय रवि भसीन 'शाहिद'साहिब
आदाब
ग़ज़ल पर आपकी मौजूदगी और हौसला अफजाई के लिए आपका तह-ए-दिल से शुक्रिया अदा करता हूँ.

Comment by रवि भसीन 'शाहिद' on August 13, 2020 at 11:18pm

आदरणीय सालिक गणवीर साहिब, नमस्कार। बहुत ख़ूब ग़ज़ल हुई है जनाब, आपको इस पर ख़ूब सारी दाद और हार्दिक बधाई।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

पूनम की रात (दोहा गज़ल )

धरा चाँद गल मिल रहे, करते मन की बात।जगमग है कण-कण यहाँ, शुभ पूनम की रात।जर्रा - जर्रा नींद में ,…See More
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी posted a blog post

तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी

वहाँ  मैं भी  पहुंचा  मगर  धीरे धीरे १२२    १२२     १२२     १२२    बढी भी तो थी ये उमर धीरे…See More
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल -मुझे दूसरी का पता नहीं ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय लक्ष्मण भाई , उत्साह वर्धन के लिए आपका हार्दिक आभार "
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"आ.प्राची बहन, सादर अभिवादन। दोहों पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए आभार।"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"कहें अमावस पूर्णिमा, जिनके मन में प्रीत लिए प्रेम की चाँदनी, लिखें मिलन के गीतपूनम की रातें…"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"दोहावली***आती पूनम रात जब, मन में उमगे प्रीतकरे पूर्ण तब चाँदनी, मधुर मिलन की रीत।१।*चाहे…"
Saturday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"स्वागतम 🎉"
Friday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

सुखों को तराजू में मत तोल सिक्के-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

१२२/१२२/१२२/१२२ * कथा निर्धनों की कभी बोल सिक्के सुखों को तराजू में मत तोल सिक्के।१। * महल…See More
Thursday
Admin posted discussions
Jul 8
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
Jul 7
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"धन्यवाद आ. लक्ष्मण जी "
Jul 7
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"धन्यवाद आ. लक्ष्मण जी "
Jul 7

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service