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ग़ज़ल

हर इक सू से सदा ए सिसकियाँ अच्छी नहीं लगतीं ।
सुना है इस वतन को बेटियां अच्छी नहीं लगतीं ।।

न जाने कितने क़ातिल घूमते हैं शह्र में तेरे ।
यहाँ कानून की खामोशियाँ अच्छी नहीं लगतीं ।।

सियासत के पतन का देखिये अंजाम भी साहब ।
दरिन्दों को मिली जो कुर्सियां अच्छी नहीं लगतीं।।

वो सौदागर है बेचेगा यहाँ बुनियाद की ईंटें ।
बिकीं जो रेल की सम्पत्तियां अच्छी नहीं लगतीं ।।

बिकेगी हर इमारत अब विदेशी बोलियों पर क्या ।
तुम्हें तो जगमगाती बस्तियाँ अच्छी नहीं लगतीं ।।

ये नीलामी ये पी एस यू का नाटक बन्द कर दीजै ।
हमारे मुल्क में ये चोरियां अच्छी नहीं लगतीं ।।

बढ़ेगी फीस बच्चे बे दखल तालीम से होंगे ।
अमीरों के हितों की नीतियां अच्छी नहीं लगतीं ।।

तेरे तो हुक़्म की तामील करती मीडिया हर पल ।
वतन को ये तेरी चालाकियाँ अच्छी नहीं लगतीं ।।

बुलन्दी छू रही अब देश की बेरोज़गारी ये ।
मेरी थाली की तुझको रोटियां अच्छी नहीं लगतीं ।।

पढाओ मत पहाड़ा अब तुम्हें हम पढ़ चुके इतना ।
के जुमले और तुम्हारी शेखियाँ अच्छी नहीं लगतीं ।।

ज़रा नज़दीकियों का फ़लसफ़ा पढ़ लीजिये साहब ।
हमारे दरमियाँ हों दूरियाँ अच्छी नहीं लगतीं ।।

-- नवीन मणि त्रिपाठी

मौलिक अप्रकाशित

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Comment by Samar kabeer on December 9, 2019 at 3:25pm

जनाब नवीन मणि त्रिपाठी जी आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।

'हर इक सू से सदा ए सिसकियाँ अच्छी नहीं लगतीं ।
सुना है इस वतन को बेटियां अच्छी नहीं लगतीं'

मतले का भाव स्पष्ट नहीं,और ऊला मिसरे में 'सिसकियाँ' हिन्दी भाषा का शब्द है इसलिए इज़ाफ़त उचित नहीं ।

'बढ़ेगी फीस बच्चे बे दखल तालीम से होंगे'

इस मिसरे में 'बे दखल' शब्द ग़लत है,सहीह शब्द है "बे दख़्ल"221 देखियेगा ।

Comment by Naveen Mani Tripathi on December 9, 2019 at 9:18am
आ0 लक्ष्मण धामी मुसाफ़िर साहब तहेदिल से बहुत बहुत शुक्रिया
Comment by Naveen Mani Tripathi on December 9, 2019 at 9:17am
आ0 प्रदीप देवीशरण भट्ट साहब तहेदिल से बहुत बहुत शुक्रिया
Comment by Naveen Mani Tripathi on December 9, 2019 at 9:16am
आ0 सुशील सरना साहब तहेदिल से बहुत बहुत शुक्रिया।
Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 7, 2019 at 6:15am

आ. भाई नवीन जी, उम्दा गजल हुई है । हार्दिक बधाई।

Comment by प्रदीप देवीशरण भट्ट on December 6, 2019 at 11:48am

नवीन जी सम सामयिक अच्छी रचना के लिए बधाई।

"ये नीलामी ये पी एस यू का नाटक बंद भी कर दो

  हमारे मुल्क में ये चोरियाँ अच्छी नही लगती"

Comment by Sushil Sarna on December 5, 2019 at 7:26pm

हर इक सू से सदा ए सिसकियाँ अच्छी नहीं लगतीं ।
सुना है इस वतन को बेटियां अच्छी नहीं लगतीं ।।

न जाने कितने क़ातिल घूमते हैं शह्र में तेरे ।
यहाँ कानून की खामोशियाँ अच्छी नहीं लगतीं ।।

वाह आज के नंगे यथार्थ को कितनी संजीदगी से आपने अपनी ग़ज़ल में पेश किया है। इस ग़ज़ल के लिए दिल से बधाई कबूल फरमाएं आदरणीय नवीन जी।

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