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सीख - लघुकथा -

गाँव के कुछ जाने माने लोग हरी राम के घर आ धमके,"भाई हरी राम जी, आपने अपनी भेंसें बिना कोई जाँच पड़ताल किये किसी अजनबी इंसान को  बेच दीं?"

"भाई लोगो, मेरी माली हालत आप लोगों से छिपी नहीं है। बाढ़ के कारण मेरा घर द्वार और खेती सब तबाह हो गया। खुद को खाने को नहीं था तो भेंसों को क्या खिलाता। अभी तो वे दूध भी नहीं दे रहीं थीं।"

"लेकिन भैया बेचने से पहले उस आदमी की पृष्ठ भूमि का तो पता कर लेते?"

"क्यों भाई ऐसा क्या गुनाह कर दिया उसने?"

"अरे भाई, वह एक कसाई है जिसे तुमने भेंसे बेची हैं।"

"चलो मान लिया गल्ती हो गयी। ये तो जानवर थीं। मगर जब दो दिन पहले बुधिया ने अपनी सोलह साल की बेटी पचपन साल के विधुर के गले बाँध दी थी तब आप लोगों का विवेक कहाँ गया था?"

मौलिक एवम अप्रकाशित

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Comment by TEJ VEER SINGH on September 7, 2019 at 2:58pm

हार्दिक आभार आदरणीय जवाहर लाल सिंह जी।

Comment by TEJ VEER SINGH on September 7, 2019 at 2:57pm

हार्दिक आभार आदरणीय विजय निकोरे जी।

Comment by TEJ VEER SINGH on September 7, 2019 at 2:56pm

हार्दिक आभार आदरणीय नीता कसार जी।

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on September 5, 2019 at 11:21am

आदरणीय तेजवीर सिंह जी, लघुकथा की कसावट के साथ सन्देश भी उपयुक्त है! बधाई स्वीकारें!

Comment by vijay nikore on September 2, 2019 at 4:22pm

आदरणीय तेजवीर सिंह जी, लघु कथा अच्छी बनी है। हार्दिक बधाई।

Comment by Nita Kasar on August 31, 2019 at 3:33pm

संदेशप्रद कथा के लिये बधाई आद० तेजवीर सिंह जी ।

Comment by TEJ VEER SINGH on August 30, 2019 at 10:45am

हार्दिक आभार आदरणीय डॉ विजय शंकर जी।

Comment by Dr. Vijai Shanker on August 30, 2019 at 12:38am

तर्कसंगत , आदरणीय तेजवीर सिंह जी , बधाई इस लघु-कथा हेतु , सादर।

Comment by TEJ VEER SINGH on August 25, 2019 at 4:59pm

हार्दिक आभार आदरणीय समर क़बीर साहब जी। आदाब।

Comment by Samar kabeer on August 25, 2019 at 3:54pm

जनाब तेजवीर सिंह जी आदाब,अच्छी लघुकथा लिखी आपने,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।

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