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ग़ज़ल(चरागे उम्मीद जल गया है)

(मफा इलातुन---मफा इलातुन)

किसी का लहजा बदल गया है।
चरागे उम्मीद जल गया है।

मैं क्यूँ न समझूँ इसे मुहब्बत
वह मेरा शाना मसल गया है

भला खफ़ा क्यूँ हैं आइने पर
था हुस्न दो दिन का ढल गया है।

ख़ुदा मुहाफ़िज़ है अब तो दिल का
निगाह से तीर चल गया है।

वो मिल गए तो लगा है ऐसा
जो वक़्ते गर्दिश था टल गया है।

जो बीच अपने था भाई चारा
उसे त अस्सुब निगल गया है।

मिली है तस्दीक़ उसको मंज़िल
जो खा के ठोकर संभल गया है।

(मौलिक व अप्रकाशित)

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Comment by Tasdiq Ahmed Khan on May 10, 2018 at 8:29pm

मुहतरमा राजेश कुमारी साहिबा ,ग़ज़ल में आपकी शिरकत और हौसला अफ़ज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on May 10, 2018 at 7:26pm

मोहतरम जनाब तस्दीक अहमद जी बहुत अच्छी ग़ज़ल कही है मेरी दिली मुबारकबाद क़ुबूल करें |

Comment by Tasdiq Ahmed Khan on May 10, 2018 at 1:16pm

मुहतरम जनाब तेजवीर साहिब ,आपकी गज़ल में शिरकत और हौसला अफ़ज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया।

Comment by TEJ VEER SINGH on May 10, 2018 at 1:07pm

हार्दिक बधाई आदरणीय तस्दीक अहमद खान साहब जी।बेहतरीन गज़ल।

जो बीच अपने था भाई चारा 
उसे त अस्सुब निगल गया है।

Comment by Tasdiq Ahmed Khan on May 10, 2018 at 1:03pm

जनाब भाई लक्ष्मण धामी साहिब ,आपकी ग़ज़ल में शिरकत और हौसला अफ़ज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया।

Comment by Tasdiq Ahmed Khan on May 10, 2018 at 1:02pm

मुहतरम जनाब आरिफ़ साहिब ,ग़ज़ल में शिरकत और हौसला अफ़ज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on May 10, 2018 at 11:20am

आ. भाई तस्दीक अहमद जी, अच्छी गजल हुई है हार्दिक बधाई ।

Comment by Samar kabeer on May 10, 2018 at 10:22am

"मसल" और "दबा" में बड़ा फ़र्क़ है भाई,ग़ौर कीजिये ।

Comment by Mohammed Arif on May 10, 2018 at 8:03am

आदरणीय तस्दीक़ अहमद साहब आदाब,

                            बहुत ही लाजवाब ग़ज़ल । शे'र दर शे'र दाद के साथ दिली मुबारकबाल क़ुबूल करें । बाक़ी गुणीजन अपनी राय दे चुके हैं ।

Comment by Tasdiq Ahmed Khan on May 9, 2018 at 7:48pm

आ.जनाब नीलेश नूर साहिब ,ग़ज़ल में आपकी शिरकत और हौसला अफ़ज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया।

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