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आप वादे बड़े  खूब करते रहे

२१२ २१२  २१२  २१२

हम तो बस आपकी राह चलते रहे

ये ख़बर ही न थी आप छलते रहे

बादलों से निकल चाँद ने ये कहा

भीड़ में तारों की हम तो जलते रहे

हिम पिघलती हिमालय पे ज्यों धूप  में

यूँ हसीं प्यार पाकर पिघलते रहे

चांदनी भाती , आशिक हूँ मैं चाँद का 

सच कहूं तो दिए मुझको  खलते रहे

जुल्फ की छांव में उनके जानो पे सर

याद करके वो मंजर मचलते रहे

एक दूजे को हम ऐसे देखा किये

अश्क आँखों से रुख पर फिसलते रहे

जिस तरह आसमां से है सूरज ढले 

हुस्न भी हुस्न वालों के ढलते रहे 

हमसफ़र है हसीं इसलिए दोस्तों

पाँव में छाले पर आशू चलते रहे

मौलिक व अप्रकाशित

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Comment

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Comment by Dr Ashutosh Mishra on May 3, 2018 at 2:50pm

आदरणीय हर्ष जी रचना पर आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए ह्रदय से आभारी हूँ सादर 

Comment by Samar kabeer on May 3, 2018 at 2:33pm

मतला यूँ कर लें :-

'हम तो बस आपकी राह चलते रहे

ये ख़बर ही न थी आप छलते रहे'

Comment by Harash Mahajan on May 3, 2018 at 2:28pm

आदरणीय आशुतोष जी बहुत ही

सुंदर प्रस्तुति । दाद सर ।

सादर ।

Comment by Dr Ashutosh Mishra on May 3, 2018 at 2:04pm

आदरणीय लक्षमण जी रचना पर प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक धन्यवाद सादर 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on May 3, 2018 at 2:04pm

आदरणीय भाई निलेश जी 

एक परिवर्तन किया है क्या ये ठीक है यदि नहीं तो प्रयास करता हूँ 

हम तो बस आपकी राह  चलते रहे 

थी खबर ही नहीं आप छलते रहे 

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on May 3, 2018 at 1:35pm

आ. भाई आषुतोस जी, अच्छी गजल हुई है हार्दिक बधाई ।

Comment by Dr Ashutosh Mishra on May 3, 2018 at 1:24pm

आदरणीय समर सर 

गमजदों को भी खुशिओं से छलते रहे ...क्या ऐसा कर सकता हूँ ?सादर 

Comment by Samar kabeer on May 3, 2018 at 11:03am

आप मतला दूसरा कहें और उसमें 'जलते' ढलते-पलते-चलते कोई भी क़ाफ़िये ले लें ।

निलेश जी ने भी अच्छा सुझाव दिया है ।

Comment by Nilesh Shevgaonkar on May 3, 2018 at 10:47am

आ. डॉ साहब,
ग़ज़ल का अच्छा प्रयास हुआ है लेकिन जैसा बताया गया है कि मतले के अनुसार बाकी अशआर नहीं हैं .. मिटते   करने से भी इता दोष रह जाएगा ..
मतला में .. बदलते चलते जलते खलते  सँभलते आदि लेने से दोष हट जाएगा 
प्रयास के लिए बधाई 
सादर  
.


Comment by Dr Ashutosh Mishra on May 3, 2018 at 10:11am

आदरणीय समर सर  रचना पर आपके मार्गदर्शन का इंतज़ार रहता है आपके सुझाव के अनुरूप परिवर्तन कर रहा हूँ . सर पहले शेर में काफिये की गलती हुयी है मरते की जगह मिटते कर सकता हूँ क्या ...आप इस पर भी मार्गदर्शन देने की कृपा करें . रचना पर आपके मार्गदर्शन और प्रतिक्रिया के लिए ह्रदय से आभारी हूँ सादर प्रणाम के साथ 

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