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तुम्हारे जश्न से पहले धमाका हो भी सकता है ।
ये हिंदुस्तान है प्यारे तमाशा हो भी सकता है ।।

अभी मत मुस्कुराओ आप इतना मुतमइन होकर ।
चुनावों में कोई लम्बा खुलासा हो भी सकता है ।।

ये माना आप ने हक़ पर लगा रक्खी है पाबन्दी ।
है मुझमें इल्म गर जिंदा गुजारा हो भी सकता है ।।

मिटा देने की कोशिश कर मगर वो जात ऊंची है ।
खुदा को रोक ले उसका सहारा हो भी सकता है ।।

न मारो लात पेटों पर यहां भूखे सवर्णो के ।
कभी सरकार पर उनका निशाना हो भी सकता है ।।

बहुत वादे हुए हैं अब नजर बारीकियों पे है ।
ये लॉलीपॉप से चलता ज़माना हो भी सकता है ।।

तरसता है यहां टेलेंट अब रोटी भी है मुश्किल ।
सुलगती आग का वो अब निवाला हो भी सकता है ।।

अभी तो वक्त है करके दिखाओ आप कुछ साहब ।
चमन में आपका कायम ये जलवा हो भी सकता है ।।

--नवीन मणि त्रिपाठी

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Comment by Samar kabeer on December 1, 2017 at 9:01pm
'कभी सरकार पर उनका निशाना हो भी सकता है'

'सुलगती आग का यारो निवाला हो भी सकता है'

'अभी तो वक्त है करके दिखाओ काम कुछ साहिब'
Comment by Naveen Mani Tripathi on December 1, 2017 at 6:34pm
आ0 कबीर सर नमन । क्या तेरी सरकार की जगह मिली सरकार कर लूं ।
Comment by Samar kabeer on December 1, 2017 at 5:38pm
जनाब नवीन मणि त्रिपाठी जी आदाब,अच्छी ग़ज़ल हुई,बधाई स्वीकार करें ।
पांचवें शैर में शुतरगुर्बा दोष है ।
'सुलगती अर्ग़ का वोभी निवाला हो भी सकता है'
इस मिसरे में 'भी'शब्द दो बार ख़ल रहा है ।
Comment by Ramkunwar Choudhary on December 1, 2017 at 9:30am
अच्छे भाव हैं आदरणीय

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