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"शारदा वंदना"

मा वास बना कर मेरे हृदय में
श्वेत पद्म सा निर्मल कर दो ।
शुभ्र ज्योत्स्ना छिटका उसमें
अपने जैसा उज्ज्वल कर दो ।।

हे शुभ्र रूपिणी शुभ्र भाव से
मेरा हृदय पटल भर दो ।
हे वीणावादिनी स्वर लहरी से
मेरा कण्ठ स्वरिल कर दो ।।

मन उपवन में हे मा मेरे
कविता पुष्प प्रस्फुटित हों ।
नव भावों के मा मेरे मन में
अंकुर सदा ही अंकुरित हों ।।

जनहित की पावन सौरभ
मेरे काव्य कुसुम में भर दो ।
करूँ कल्याण काव्य रचना से
'नमन' शारदे ऐसा वर दो ।।

++++++++++++++++++++


आज बसन्त पंचमी पर माँ शारदा को समर्पित एक दुर्मिल सवैया (8सगण)

कर शुभ्र सरोज सदा सजता, पदमासन श्वेत बिराजत है।
मुख मण्डल तेज सुशोभित है, वर वीण सदा कर साजत है।
नर-नार बसन्तिय पंचम को, तुमको सब पूजत ध्यावत है।
हँस वाहन पे चढ़ शारद माँ, प्रगटो वर सेवक माँगत है।।

मौलिक व अप्रकाशित

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Comment by Saurabh Pandey on February 4, 2017 at 11:43pm

आदरणीय बासुदेव जी, आपकी प्रस्तुत दोनों रचनाएँ माँ शारदे के प्रति समर्पण भाव की द्योतक हैं. किन्तु आपके प्रयास को तनिक और सुगठित होना था.   

नव भावों के मा मेरे मन में ... यह पंक्ति वाचन प्रवाह में बाधा उत्पन्न कर रही है.

सौरभ शब्द से प्राकृतिक भाव उद्भूत होते दिख रहे हैं. लेकिन सौरभ को स्त्रीलेंग क्यों कर दिया, आदरणीय ? 

बाकी छन्द प्रथम दृष्ट्या तो मनोहर प्रतीत हो रहे हैं.. बधाइयाँ 

Comment by बासुदेव अग्रवाल 'नमन' on February 2, 2017 at 10:22am
आदरणीय समर कबीर जी आपका हृदय तल से आभार।
Comment by Samar kabeer on February 1, 2017 at 6:05pm
जनाब बासुदेव अग्रवाल'नमन'जी आदाब,उम्दा प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
आपको और मंच के सभी सदस्यों को बसंत पंचमी की हार्दिक शुभकामनाएं ।

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