For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

काग-भगोड़े और इंद्रधनुष (लघुकथा) / शेख़ शहज़ाद उस्मानी

हर बार की तरह इस बार भी अपनी चित्रकला कृति को यूसुफ भाई अपने दोस्तों को दिखाकर व्यंग्य मिश्रित तारीफ़ें सुन रहे थे। कलाकृति में श्वेत-श्याम रंगों में खेत, बादल और एक किशोरी थी जो खड़े होकर रंगीन इंद्रधनुष बनाकर बादलों में छिपे पीले सूरज के गोलार्ध में किरणें बना रही थी। बस यही चर्चा के विषय थे।

मदन ने ठहाका लगाते हुए कहा- "लो खड़ी हो गई फिर नई फसल सतरंगे सपने सँजोए!"

"सतरंगे सपने! इंद्रधनुष भी सूरज की किरणों और पानी की बूंदों पर निर्भर होता है भाई!" लाखन ने कहा।

"हाँ, लेकिन लड़की की ज़िन्दगी में इंद्रधनुष तो उसके आँसुओं से बनता है न?"

"क्या मतलब"

"मर्द रूपी सूर्य की किरणों का लड़की के आँसुओं से परावर्तन या अपवर्तन!"

"ओह! विक्षेपण! सच कहते हो! लेकिन ये इंद्रधनुष तो कुछ ही समय के लिए बनता है न!" लाखन ने चित्र के खेत की ओर संकेत करते हुए कहा- "इस खड़ी फसल के बीच तैनात काग-भगोड़े या बिजूका की तरह होता है मर्द! डटा रहता है लड़कियों की रक्षा और सपनों की खातिर हर वक़्त, हर जगह!"

"लेकिन खड़ी फसल को तो अब ये भी नहीं बचा पाते हैं!"

यूसुफ भाई कभी अपने बनाए चित्र को देखते, कभी दोनों दोस्तों की ओर। फिर एक लम्बी सांस लेकर दोनों दोस्तों से बोले- "ये नई सदी की नई फसल है, काग-भगोड़ों या बिजूकों के भरोसे नहीं, खुद की कर्म-किरणों से जीवन में रंग भरेगी!"

(मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 627

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on January 7, 2017 at 10:10pm
आदाब मोहतरम जनाब मोहम्मद आरिफ साहिब व जनाब विजय निकोर साहिब अपनी राय से वाक़िफ़ कराने व हौसला अफ़ज़ाई हेतु।
Comment by Mohammed Arif on January 7, 2017 at 9:54pm
आदरणीय शेख शहजाद साहिब आदाब !नारी चेतना और मर्द मानसिकता को रेखांकित करती लघुकथा के लिए ढेरों मुबारकबाद ।
Comment by vijay nikore on January 7, 2017 at 9:41pm

//यूसुफ भाई कभी अपने बनाए चित्र को देखते, कभी दोनों दोस्तों की ओर। फिर एक लम्बी सांस लेकर दोनों दोस्तों से बोले- "ये नई सदी की नई फसल है, काग-भगोड़ों या बिजूकों के भरोसे नहीं, खुद की कर्म-किरणों से जीवन में रंग भरेगी!"//

बहुत ही खूबसूरत लघु कथा लिखी है आपने ... बहुत-कुछ सोचने को देती इस रचना के लिए हृदयतल से बधाई, आदरणीय भाई शेख़ उस्मानी जी। 

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on January 7, 2017 at 9:07pm
रचना पटल पर समय देकर अनुमोदन व प्रोत्साहित करने के लिये तहे दिल से बहुत-बहुत शुक्रिया मोहतरमा सीमा मिश्रा साहिबा, मोहतरम जनाब महेन्द्र कुमार साहब, जनाब समर कबीर साहब, जनाब बृजेश कुमार 'ब्रज' साहब, जनाब डॉ. आशुतोष मिश्र साहब और जनाब मिथिलेश वामनकर साहब। पाठकों की सुविधा के लिये 'बिजूका'को कोष्ठक में न देकर या लगाकर लिखा। मुझे ऐसा भी लगा कि काग-भगोड़े और बिजूका बनाने की प्रक्रिया में कुछ अंतर है शायद! मार्गदर्शन निवेदित।
Comment by Dr Ashutosh Mishra on January 7, 2017 at 5:59pm
आदरणीय शेख जी इस विधा पर तो आपको जबर्दस्त महारत है शानदार सन्देश वर्तमान का सटीक चित्रण करती इस शानदार लघु कथा के लिए ढेर सारी बढ़ाई स्वीकार करिये सादर
Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on January 7, 2017 at 4:17pm
बहुत ही अच्छी लगी आपकी ये लघु कथा।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on January 7, 2017 at 2:50pm

आदरणीय उस्मानी जी, बढ़िया लघुकथा लिखी है. हार्दिक बधाई. काग-भगोड़ों या बिजूकों में से एक शब्द का प्रयोग क्या ज्यादा उचित नहीं होता? सादर 

Comment by Samar kabeer on January 7, 2017 at 2:42pm
जनाब शैख़ शहज़ाद उस्मानी जी आदाब,बहुत अच्छी लगी आपकी लघुकथा,इस प्रस्तुति पर दिल से बधाई स्वीकार करें ।
Comment by Mahendra Kumar on January 7, 2017 at 1:15pm
आदरणीय शेख़ शहज़ाद उस्मानी जी, बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है आपने। कहने का अन्दाज़ भी शानदार है। मेरी तरफ से ढेरों बधाई स्वीकार कीजिए। सादर।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आ. भाई दयाराम जी, सादर अभिवादन। रचना पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए आभार।"
5 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"सहर्ष सदर अभिवादन "
11 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, पर्यावरण विषय पर सुंदर सारगर्भित ग़ज़ल के लिए बधाई।"
14 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आदरणीय सुरेश कुमार जी, प्रदत्त विषय पर सुंदर सारगर्भित कुण्डलिया छंद के लिए बहुत बहुत बधाई।"
14 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आदरणीय मिथलेश जी, सुंदर सारगर्भित रचना के लिए बहुत बहुत बधाई।"
14 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, प्रोत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।"
14 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आ. भाई दयाराम जी, सादर अभिवादन। अच्छी रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
18 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आ. भाई सुरेश जी, अभिवादन। प्रदत्त विषय पर सुंदर कुंडली छंद हुए हैं हार्दिक बधाई।"
20 hours ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
" "पर्यावरण" (दोहा सप्तक) ऐसे नर हैं मूढ़ जो, रहे पेड़ को काट। प्राण वायु अनमोल है,…"
21 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। पर्यावरण पर मानव अत्याचारों को उकेरती बेहतरीन रचना हुई है। हार्दिक…"
22 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"पर्यावरण पर छंद मुक्त रचना। पेड़ काट करकंकरीट के गगनचुंबीमहल बना करपर्यावरण हमने ही बिगाड़ा हैदोष…"
22 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"तंज यूं आपने धूप पर कस दिए ये धधकती हवा के नए काफिए  ये कभी पुरसुकूं बैठकर सोचिए क्या किया इस…"
yesterday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service