For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

"झिलमिल धूप"/कविता - अर्पणा शर्मा, भोपाल

सर्द सिहराती शिशिर की सुबह,
भेदकर कर कोहरे की नजर,
ओसकणों को चुंबन देकर,
मेरे आँगन धूप उतर आई थी ,
गुनगुनी, ऊष्म, स्नेहिल ज्यों
एक प्रेमालिंगन ले आई थी,
रूपहली-सुनहरी सुरमाई सी,
सूर्य वधु ज्यों प्रातः लेती अंगड़ाई सी,

ये दुछत्ती खिल जाये प्यारी,
महके छोटी सी मेरी फुलवारी,
धूप ने धूम मचाई थी,
चंपा, चमेली, सेवंती की बहार सी,
गेंदे, गुलाब, हरसिंगार भी,
ज्यों सुंदरी रंगीली चुलबुलाई सी,

धूप घुस आती हर दर्रे में,
दरारों से भी झाँक आई सी,
रेगिस्तानी बीहड़ों में छितराये,
प्रियतम की रूसवाई सी,
ऊँचे उत्तुंग गिरी पर पसर जाती,
ज्यों भरी दोपहरी में अलसाई सी,
चमक उठे हिम शिखरों पर,
चीड़, देवदार, कचनार सी,
जलधि में अठखेलियाँ करती,
लहरों पर डूबती-उतराई सी,
जलकण यूँ चम-चम चमकें,
ज्यों सितारों को धूप पहन आई सी,

हर मौसम में मिजाज दिखाती,
ज्यों प्रियतम की मुँह लगाई सी,
सावन में घिरती घुप्प घटाओं से,
करती हाथापाई सी,
छिपी-छिपी, लुकाती, सकुचाती,
ज्यों घूँघट में नववधू शर्माई सी,
सर्द हवाओं में ऊष्मा बिखेरे,
ज्यों वफा इश़्क में आजमाई सी,
पूस में लड़खड़ाये शतायु वृद्ध सी,
ज्येष्ठ में उत्प्त, तमतमाई सी,
कार्तिक में स्नेहिल, पुलकित,
ज्यों प्रथम-प्रेम के आगोश में,
इक नवयौवना भरमाई सी,

धूप बिन ये जीवन कहाँ,
इससे ही हैं अपने दोनों जहाँ,
धूप बिन न दिन-रात चले,
धूप बिन न कोई अन्न फले,
धूप बिन न ऋतुएं आऐं,
हम सब इससे ऊर्जा पाऐं,
धूप बिन न चंदा चमके,
रखे यही उसे चमकाये थी,

धूप अनगिन रूपाभ तरंगिणी,
कभी जख्मों को सहलाती सी,
घनघोर तमस में चमकारी सी,
किसी सद्धप्रसूता के ह्रदय पर,
नवजात की किलकारी सी,
कभी बेतरह तपन और जलन,
कभी नवयुवती की लुनाई सी,
कभी विरह अश्रुबूंदों पर चुंबन,
मानो एक उज्ज्वल हँसी,
हर ओर खिलखिलाई सी,
खूब फले-फूले धूप से ,
प्रकृति किलकती, मुस्काई सी...!!
मौलिक एवं अप्रकाशित ।

Views: 878

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Arpana Sharma on December 17, 2016 at 11:46pm
आदरणीया राजेश कुमारी जी - आपके सह्रदय प्रोत्साहन का बहुत आभार, सादर अभिनंदन ।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on December 15, 2016 at 6:16pm

झिलमिल धूप बहुत सुंदर बहुत खूब दिल से बधाई लीजिये अर्पणा जी 

Comment by Arpana Sharma on December 2, 2016 at 4:11pm
आ.गिरीराज भंड़ारी - मेरी कविता पर आपकी शुभकामनाओं का बहुत आभार ।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on December 2, 2016 at 10:07am

आदरणीया अर्पना जी , बहुत अच्छी लगी आपकी कविता , हार्दिक बधाई

Comment by Arpana Sharma on November 29, 2016 at 3:46pm
श्रीमान् विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी जी - आपकी शुभकामनाओं का बहुत आभार ।
Comment by Arpana Sharma on November 29, 2016 at 3:45pm
आदरणीय समर कबीर साहब जी - आपकी आत्मीय सराहना और शुभाशीष का असीम धन्यवाद ।
Comment by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on November 28, 2016 at 10:56pm
आ. अपर्णा जी!
धूप की पृष्ठभूमि में प्रकृति का बेहतरीन मानवीयकरण किया है आपने. बधाई।
Comment by Samar kabeer on November 27, 2016 at 9:34pm
मोहतरमा अर्पणा शर्मा जी आदाब, सर्द झोंकों में लिपटी हुई,झिल मिल धूप की तरह अच्छी लगी आपकी कविता,इस प्रस्तुति पर दिल से बधाई स्वीकार करें ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आदरणीय सौरभ सर, गाली की रदीफ और ये काफिया। क्या ही खूब ग़ज़ल कही है। इस शानदार प्रस्तुति हेतु…"
1 hour ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .इसरार

दोहा पंचक. . . .  इसरारलब से लब का फासला, दिल को नहीं कबूल ।उल्फत में चलते नहीं, अश्कों भरे उसूल…See More
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सौरभ सर, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। आयोजन में सहभागिता को प्राथमिकता देते…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सुशील सरना जी इस भावपूर्ण प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। प्रदत्त विषय को सार्थक करती बहुत…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, प्रदत्त विषय अनुरूप इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। गीत के स्थायी…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सुशील सरनाजी, आपकी भाव-विह्वल करती प्रस्तुति ने नम कर दिया. यह सच है, संततियों की अस्मिता…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आधुनिक जीवन के परिप्रेक्ष्य में माता के दायित्व और उसके ममत्व का बखान प्रस्तुत रचना में ऊभर करा…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय मिथिलेश भाई, पटल के आयोजनों में आपकी शारद सहभागिता सदा ही प्रभावी हुआ करती…"
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ   .... बताओ नतुम कहाँ होमाँ दीवारों मेंस्याह रातों मेंअकेली बातों मेंआंसूओं…"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ की नहीं धरा कोई तुलना है  माँ तो माँ है, देवी होती है ! माँ जननी है सब कुछ देती…"
Saturday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय विमलेश वामनकर साहब,  आपके गीत का मुखड़ा या कहूँ, स्थायी मुझे स्पष्ट नहीं हो सका,…"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service