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मत्तगयंद सवैया: अलका चंगा

छाँव बने तन भाव जगे मन चाव सजे चहकी फुलवारी ,
पावन भाव जगे मन में जब मात बनी यह देह हमारी,
ये वरदान मिला जग में जब बिटिया खेलत गोद हमारी,
चाव जगे इस जीवन के जब आँगन बीच सजी किलकारी,
.
नन्हि परी जब मात पुकारत आतम हो जय धन्य हमारी
झांझर डोलत कोयल बोलत व्याकुल हो महकी अंगनारी
मीत सखी बन जाय सदा सब बात सुने अब मोरि दुलारी
मान करे सबका फिर भी प्रतिपात सहे जग में हर नारी
.
जोगन प्रीत तजे रसना सब भोग सजे मुख खावत नाही
कृष्ण सदा बसते मन में सब भार हटे दुःख आवत नाही
साधु जपे सत् संग करे हरि नाम बिना कुछ चाहत नाही
भाव बिना मन चाव बिना तन छाँव बिना सुख पावत नाही
.
मौलिक/अप्रकाशित

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Comment

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Comment by अलका 'कृष्णांशी' on October 7, 2016 at 7:22pm

"प्रयास पर उपस्थित होकर प्रोत्साहित करने के लिए बहुत बहुत आभार" आदरणीया कल्पना जी 

Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on October 6, 2016 at 9:45pm

छंद का ज्ञान तो नहीं है पर रचना बहुत अच्छी लगी | हार्दिक बधाई आदरणीया अलका जी |

Comment by अलका 'कृष्णांशी' on September 26, 2016 at 11:10pm
आदरणीय रामबली गुप्ता जी ।रचना को समय देने के लिए धन्यवाद । सवैया पर ये मेरा पहला प्रयास है अभी और सीखना है मुझे ।आपके मार्गदर्शन अनुसार संशोधन का प्रयास करूंगी। आभारी हूँ की अपने समय देकर त्रुटियाँ बताईं।सादर
Comment by अलका 'कृष्णांशी' on September 26, 2016 at 11:03pm
आदरणीय शिज्जु शकूर जी । आपको रचना पसन्द आई धन्यवाद,,,,होसला अफ़ज़ाई के लिए आभार आपका।सादर
Comment by रामबली गुप्ता on September 26, 2016 at 9:06pm
सुंदर रचनाएँ हुई हैं आदरणीया। बधाई स्वीकार करें।
साध को साधु
हरी को हरि
कर लें।
साध जपे सत्संग करे ________ में शिल्पभंग प्रतीत हो रहा है।
नन्ही को आपने नन्हि लिखा है जो ही पर मात्रापतन करके किया गया है। अमूमन भारतीय छंदों में मात्रा पतन की छूट नही होती। फिर भी इस विषय पर मैं अन्य सुधीजनों की राय भी जानना चाहूगा। बाकी सब शुभ-शुभ।सादर

सात भगण और पदांत में दो गुरु रखने से मत्तगयन्द वर्णवृत्ति की निष्पत्ति होती है आद0 शिज्जु शकूर भाई जी।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on September 26, 2016 at 3:43pm

आ. अलका जी इस छंद के शिल्प के बारे में जानकारी शून्य है, मगर प्रवाह और भावाभिव्यक्ति अच्छी लगी, बधाई स्वीकार करें

कृपया ध्यान दे...

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