For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

दीवारें दरकतीं हैं ...(लघुकथा)

मैं जब स्कूल से आयी तो देखा बिशम्भर नाथ जी यानि कि मेरे चाचा जी मेरे सगे चाचा जी ड्राइंग रूम में बैठे माँ के साथ बतिया रहे थे। वही पुरानी खानदान की बातें, पुराने बुआ दादी के किस्से । मैंने देखा उन्होंने कनखियों से एक नज़र मुझ पर भी डाली है।
‘‘बेटा इधर आओ देखो चाचा जी आये हैं’’ मैं माँ की बात को अनसुना करके अपने कमरे में चली गयी। आज मुझे ‘चाचाजी’ शब्द से ही घृणा हो रही थी। जिनकी गोदी में मैं बचपन से खेलती आयी हूं जिनके लिये मैं हमेशा उनकी छोटी सी गुड़िया रही वही इस गुड़िया के शरीर से खेलना चाह रहे थे। छीः मुझे अपने आप से ही घृणा हो रही थी। मैं आज स्कूल से आने के बाद माँ को सब कुछ साफ साफ बताने ही वाली थी कि आज फिर से चाचा जी मौके की ताक़ में हमारे घर आ गये थे। मैंने ड्राइंग रूम में झांका तो देखा माँ और चाचा जी चाय पी रहे थे शायद माँ ने पकौड़े भी बनाये थे साथ में, जो कि वह हमेशा बनाया करतीं हैं।
मैं ड्राइंग रूम में गयी और चाचा जी हाथ के कप को झटके से हवा में उछाल दिया। मालूम नहीं चाय कितनी गर्म थी या फिर ठंडी हो गयी थी।
‘‘माँ आपको मालूम भी है ये आपका देवर और मेरा चाचा नहीं है यह तो एक बहशी जानवर है मालूम है इसने कल जब आप पड़ौस में गयीं थीं तब क्या किया यह हमारे घर आया था और इसने मौका पाकर किचिन में मुझे पीछे से पकड़ लिया था। मैं तो इसके लिये चाय बना रही थी। मुझे क्या मालूम था कि उसके मन में मेरे लिये इतनी गन्दी भावना है। वह तो किचिन का बाहर वाला दरवाजा खुला हुआ था मैं तुरन्त बाहर आ गयी वरन,.......। माँ को तो जैसे समझ ही नहीं आ रहा था कि ये अचानक क्या हो गया।
मैंने माँ का इन्तजार नहीं किया बल्कि दादा जी की छड़ी उठा कर उन्हें वहीं पीटना शुरू कर दिया और गेट के बाहर तक खदेड़ दिया। मुझे लग रहा था कि आज हमारे घर की मजबूत दीवारें कहीं से दरक गयीं हैं।

.

आभा.....अप्रकाशित  एवं मौलिक 

Views: 562

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Nita Kasar on August 25, 2016 at 3:27pm
आज की जवंलंत समस्या को उठाया है आपने कथा में ,आद०आभा सक्सेना जी बधाई आपके लिये ।
Comment by Dr Ashutosh Mishra on August 25, 2016 at 12:41pm

आदरणीया आभा जी ..बर्तमान समाज में इस तरह के किस्से रोज सुनने को मिल रहे हैं ..समाज में व्याप्त दरिन्दगी को उजागर करती इस शसक्त लघु कथा के लिए ढेर सारी बधाई स्वीकार करें सादर 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on August 23, 2016 at 8:19pm

आद०  आभा जी ,आपकी कोई पहली लघु कथा पढ़ रही हूँ आज कल किसी की नीयत का कोई भरोसा ही नहीं रहा लडकियाँ अपने घर में ही सुरक्षित नहीं हैं |यहाँ आप आयोजन की लघु कथाएं पढ़ें एक आलेख भी है आद० योगराज जी का आपको उससे बहुत मदद मिलेगी आप अच्छी लघु कथा लिख सकती हैं मुझे विश्वास है \फिलहाल इस प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई |

Comment by Abha saxena Doonwi on August 23, 2016 at 6:24pm

आदरणीय योगराज प्रभाकर जी नमस्कार ,आदरणीय आपने मेरी लघु कथा को पढ़ा तथा निःस्वार्थ भाव से जो कमियां बताईं मुझे अच्छा लगा ...आगे  अच्छी लघु कथाएं लिखने का प्रयास जारी   रहेगा 

    धन्यवाद 


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on August 23, 2016 at 4:28pm

अच्छी लघुकथा कही है आ० आभा सक्सेना जी, दुर्भाग्य से रिश्तों को शर्मसार करने वाली ऐसी घटनाएँ अब अक्सर सुनने पढने  को मिल जाती हैI लघुकथा में निहित भाव बहुत अच्छा है, जिस हेतु हार्दिक प्रेषित हैI लेकिन लघुकथा में कसावट की कमी साफ़ झलक रही है, इसे और कसा जाना चाहिए थाI अनावश्य बातों से लघुकथा ढीली पद जाती है, शब्दों का चयन एवं उपयोग बेहद सावधानी से किया जाए तभी लघुकथा पूर्ण प्रभाव छोड़ने में सफल होती हैI  

//बिशम्भर नाथ जी यानि कि मेरे चाचा जी मेरे सगे चाचा// यहाँ केवल मेरे चाचा कहने से काम चल सकता थाI

//शायद माँ ने पकौड़े भी बनाये थे साथ में, जो कि वह हमेशा बनाया करतीं हैं।// इतनी संजीदा कथा और बीच में पकौड़े? पकौड़ों का ज़िक्र करने की यहाँ क्या तुक बनती है?

लघुकथा पढने वाला यह प्रश्न भी कर सकता है कि चाचा की हरकत के बारे में बेटी ने माँ को पहले क्यों नहीं बतायाI कृपया इन बातों  का संज्ञान अवश्य लें I

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
17 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"असमंजस (लघुकथा): हुआ यूॅं कि नयी सदी में 'सत्य' के साथ लिव-इन रिलेशनशिप के कड़वे अनुभव…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब साथियो। त्योहारों की बेला की व्यस्तता के बाद अब है इंतज़ार लघुकथा गोष्ठी में विषय मुक्त सार्थक…"
Thursday
Jaihind Raipuri commented on Admin's group आंचलिक साहित्य
"गीत (छत्तीसगढ़ी ) जय छत्तीसगढ़ जय-जय छत्तीसगढ़ माटी म ओ तोर मंईया मया हे अब्बड़ जय छत्तीसगढ़ जय-जय…"
Thursday
LEKHRAJ MEENA is now a member of Open Books Online
Wednesday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service