For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

नव गीत ....छा रहे बदल गगन में

नव गीत

छा रहे बादल गगन में
जा रहे या आ रहे हैं?

टिपटिपाती चपल वर्षा 
हो रही धरती सुगन्धित
आज आजाने को घर में
क्या पता है कौन बाधित?
देर से पंछी गगन में
पंख-ध्वज फहरा रहे हैं

श्याम अलकें गिर रही है
बैठ कांधे खिल रही है
पवन बैरन बाबरी सी
झूम गाती चल रही है
आँख में कजरा चमकता 
मेघ नभ गहरा रहे हैं

सारिका की टेर सुन तरु 
गुनगुनाने लग पड़े हैं 
धूप की फिर से चिरौरी
भास्कर करने लगे हैं
छाँव में लेटा है सपना 
मिलन पल इतरा रहे हैं

आभा
.

 अप्रकाशित  एवं  मौलिक 

Views: 497

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Abha saxena Doonwi on September 10, 2016 at 7:29am

आदरणीय Saurabh Pandey जी नमस्कार,

आपके द्वारा दिए गए सुझाव पर मैं ध्यान देने की कोशिश करूंगी ..इसी तरह स्नेह भाव बनाये रखियेगा ....आभार आपका 

Comment by Abha saxena Doonwi on September 10, 2016 at 7:27am

आदरणीय गोपाल नारायन श्रीवास्तव जी नमस्कार,

आपने मेरे इस गीत की प्रशंसा की है मुझे बहुत अच्छा लगा ...आप इसी तरह स्नेह भाव बनाये रखियेगा ..आभार आपका ...

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on August 30, 2016 at 8:31pm

आ०   गीत बड़ा मधुर है .


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 30, 2016 at 2:39am
आदरणीया आभा जी, आपकी प्रस्तुति क् लिए हार्दिक धन्यवाद और शुभकामनाएँ।

एक बात अवश्य गाँठ बाँध लें। हर नवगीत भले ही गीत हो, लेकिन हर गीत नवगीत नहीं होता। नवगीत केवल नये प्रकार के या नये-नये गीत नहीं होते। इनका विधान और इनका प्रकार विशिष्ट हुआ करता है।

आदरणीया, आपकी प्रस्तुति नवगीत न हो कर एक गीति-प्रतीति है। यानी, गीत जैसी रचना है।

शुभेक्षाएँ
Comment by Samar kabeer on August 29, 2016 at 10:58pm
मोहतरमा आभा जी आदाब,बहुत उम्दा नवगीत लिखा आपने मौसम भी बारिश का है, इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।

//पवन बैरन बाबरी सी//

या "बावरी सी"

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"आदरणीय  उस्मानी जी डायरी शैली में परिंदों से जुड़े कुछ रोचक अनुभव आपने शाब्दिक किये…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"सीख (लघुकथा): 25 जुलाई, 2025 आज फ़िर कबूतरों के जोड़ों ने मेरा दिल दुखाया। मेरा ही नहीं, उन…"
Wednesday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"स्वागतम"
Tuesday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

अस्थिपिंजर (लघुकविता)

लूटकर लोथड़े माँस के पीकर बूॅंद - बूॅंद रक्त डकारकर कतरा - कतरा मज्जाजब जानवर मना रहे होंगे…See More
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय सौरभ भाई , ग़ज़ल की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार , आपके पुनः आगमन की प्रतीक्षा में हूँ "
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय लक्ष्मण भाई ग़ज़ल की सराहना  के लिए आपका हार्दिक आभार "
Tuesday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"धन्यवाद आदरणीय "
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"धन्यवाद आदरणीय "
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय कपूर साहब नमस्कार आपका शुक्रगुज़ार हूँ आपने वक़्त दिया यथा शीघ्र आवश्यक सुधार करता हूँ…"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय आज़ी तमाम जी, बहुत सुन्दर ग़ज़ल है आपकी। इतनी सुंदर ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें।"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, ​ग़ज़ल का प्रयास बहुत अच्छा है। कुछ शेर अच्छे लगे। बधई स्वीकार करें।"
Sunday
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"सहृदय शुक्रिया ज़र्रा नवाज़ी का आदरणीय धामी सर"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service