For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

दोहे !

डायन महँगाई  करे, पिया को परेशान

काट छाँट हर चीज़ में, कम हुआ खान -पान

खमा बहादुर ही करे, कायर का क्या काम

क्रोध घृणा की भावना, खुद को करे तमाम |

   

रस्सी खोलो मोह की, फिर देखो  संसार   

भौतिक धन दौलत सभी, दुनियाँ निरा असार |

चिंता छोड़ जहान की, चिन्तन कर भगवान

चिन्ता मन का रोग है, चिन्ता चिता समान

ज्योत जलाकर  ज्ञान की, रोशन कर तू राह 

राह नहीं चलना सरल, आँधार है अथाह  

मौलिक एवं अप्रकाशित    

Views: 560

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Kalipad Prasad Mandal on July 26, 2016 at 10:26pm

आदरणीय गिरिराज जी , प्रोत्साहन किये आपका आभार |

आ श्याम नारायण वर्मा जी एवं  आ सुरेश कुमार जी, ब्लॉग पर आने एवं हौसला बढाने लिए धन्यवाद |

Comment by Kalipad Prasad Mandal on July 26, 2016 at 10:21pm

आदरनीय अशोक रक्ताले जी ,प्रत्येक दोहा को बारिकी से देखने और खामियों को बताने केलिए, साथ में हौसला बढाने के लिए हार्दिक धन्यवाद | खमा , क्षमा शब्द का अपभ्रंस है | ग्रामीण इलाके में बोला जाता है | यहाँ "क्षमा ' भी लिख सकते हैं ,कोई अंतर नहीं पडेगा |

.....दुनिया निरा असार .....जिसने मोह छोड़ दिया ,उसके लिए धन दौलत पूरी दुनियाँ बिलकुल तत्त्व हीन है 

---ज्योत जला कर ज्ञान की ...लिखा था कापी में  

आगे भी आपसे इसी प्रकार की सहयोग की आशा करता हूँ 

आंधार  के ऊपर चंद्रविन्दु है ,अनुस्वार नहीं ,परन्तु गूगल फॉण्ट में आ नही रहां है | उसको 'अँधेरा ' कर सकते है ,तब २२१ के बदले १२२ हो रहा है , मात्रा संयोजन  में ४/४/३ या ३/३/२/३  में नहीं बैठ रहा है |

सादर 

Comment by सुरेश कुमार 'कल्याण' on July 26, 2016 at 8:22pm
खमा=क्षमा
शायद आदरणीय कालीपद जी यही कहना चाहते हैं ।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on July 26, 2016 at 5:34pm

आदरणीय काली पद भाई , अच्छे दोहे रचे आपने , हार्दिक बधाइयाँ । कमियों की तरफ आ. अशोक भाई इंगित कर ही चुके हैं ।

Comment by Shyam Narain Verma on July 26, 2016 at 12:03pm
सुंदर भाव से संजोयी रचना पर बधाई स्वीकारें आदरणीय, सादर
Comment by Ashok Kumar Raktale on July 25, 2016 at 10:14pm

आदरणीय कालीपद प्रसाद मंडल जी सादर, सुंदर प्रयास हुआ है दोहों पर.फिर भी

प्रथम दोहे के दोनों ही सम चरणों का शब्द  चयन संयोजन सही नहीं होने से गेयता बाधित हो रही है.

खमा बहादुर ही करे, कायर का क्या काम

क्रोध घृणा की भावना, खुद को करे तमाम |............शिल्प सुंदर  है. "खमा" का मतलब मुझे नहीं मालूम.

रस्सी खोलो मोह की, फिर देखो  संसार   

भौतिक धन दौलत सभी, दुनियाँ निरा असार |...............सुंदर है. तुक साफ़ नहीं है.

चिंता छोड़ जहान की, चिन्तन कर भगवान

चिन्ता मन का रोग है, चिन्ता चिता समान............अच्छा है.

ज्योत जलाओ ज्ञान का, रोशन कर तू राह..............ज्योत जलाओ ज्ञान का/की, ......इसके साथ सम चरण में 'तू' नहीं आ सकता.

राह नहीं चलना सरल,  आंधार है अथाह ..............'आंधार'.....शायद सही शब्द नहीं है. सादर.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२ जब जिये हम दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं अब कान देते   आपके निर्देश हैं…See More
19 hours ago
Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
Friday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
Friday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"असमंजस (लघुकथा): हुआ यूॅं कि नयी सदी में 'सत्य' के साथ लिव-इन रिलेशनशिप के कड़वे अनुभव…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब साथियो। त्योहारों की बेला की व्यस्तता के बाद अब है इंतज़ार लघुकथा गोष्ठी में विषय मुक्त सार्थक…"
Thursday
Jaihind Raipuri commented on Admin's group आंचलिक साहित्य
"गीत (छत्तीसगढ़ी ) जय छत्तीसगढ़ जय-जय छत्तीसगढ़ माटी म ओ तोर मंईया मया हे अब्बड़ जय छत्तीसगढ़ जय-जय…"
Thursday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service