For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

क्रिसमस पर गीत [ सार छन्द आधारित ]

दूर क्षितिज में देखा तारा ,सबका मन हर्षाया 

पाप बंध से हमें छुड़ाने,मरियम सुत था आया 

दया प्रेम भाईचारे का ,था सन्देश सुनाता 

दीन दुखी की सेवा से ही ,जुड़े प्रभु से नाता 

आडम्बर में लिप्त जनों को .उसका सत्य न भाया 

पाप बंध से हमें छुड़ाने  ,मरियम सुत था आया 

मानवता के  हत्यारे तो  ,हर युग में हैं आते 

इनका कोई धर्म न होता ,पर दुःख में सुख पाते 

उन लोगों ने फिर ईसा को ,था सलीब चढ़वाया  

पाप बंध से हमें छुड़ाने ,मरियम सुत था आया 

था सलीब में जड़ा खड़ा वो ,जोड़े दर्द से नाता 

लहू बह रहा घावों से था ,फिर भी कहता जाता 

प्रभु इनको  तू माफ़ी देना ,हरना पाप की छाया

पाप बंध से हमें छुड़ाने ,मरियम सुत था आया 

न रोक सकी सूलि ईसा को ,ना गाँधी को गोली 

हर युग अलग नाम से आते ,दुखियों के हमजोली 

जात धर्म से हटकर देखें ,उसने जो समझाया 

पाप बंध से हमें छुड़ाने ,मरियम सुत था आया

मौलिक व् अप्रकाशित 

Views: 710

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on December 23, 2015 at 1:28am

प्रयास से पूर्व की पंक्तियों का दोष कुछ हद तक कम हुआ है. रचनाकर्म शब्दों के बहतर चयन और उनके सार्थक प्रयोग से ही सँवरता है.

शुभेच्छाएँ 

Comment by pratibha pande on December 22, 2015 at 11:00am

 आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी ,आप के द्वारा इंगित व्याकरण  त्रुटी व् उससे उत्पन्न अर्थ के अनर्थ को मै समझ गई हूँ ,उस बंद को मैंने  कुछ इस प्रकार संशोधित किया है ,  कृपया मार्ग दर्शन करें 

मानवता के  हत्यारे तो  ,हर युग में हैं आते 

इनका कोई धर्म न होता ,पर दुःख में सुख पाते 

उन लोगों ने फिर ईसा को ,था सलीब चढ़वाया  

पाप बंध से हमें छुड़ाने ,मरियम सुत था आया .....आपका पुनः आभार सादर 

Comment by pratibha pande on December 22, 2015 at 9:56am

आदरणीय समर कबीर जी ,रचना पर आपके द्वारा मिली तारीफ़ से मन उत्साहित है ,आपका तहे दिल से शुक्रिया 

Comment by pratibha pande on December 22, 2015 at 9:53am

रचना के मर्म पर अनुमोदन और उत्साहवर्धन के लिए आपका हृदयतल से आभार आदरणीय उस्मानी जी 

Comment by pratibha pande on December 22, 2015 at 9:51am

 आदरणीय श्याम नारायण जी  ,रचना पर आकर आपने मेरा उत्साहवर्धन किया , आपका तहे दिल से आभार 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on December 21, 2015 at 11:56pm

आदरणीया प्रतिभा जी,
छान्दसिक रचना पर आपके प्रयास से मुझे अत्यंत प्रसन्नता हुई है. छन्दोबद्ध रचनाओं पर होता हुआ सतत प्रयास ही गीतों में गेयता के संयत होने के मार्ग प्रशस्त करता है. आपका इस ओर उद्यत होना मंच को भी आश्वस्त कर रहा है.

यह अवश्य है कि आपकी कोशिश बहुत हद तक सधी हुई है. फिर भी कुछेक जगहों पर विशेष ध्यान की आवश्यकता बन रही है. विशेषकर शब्दकल के ऊपर आपको संयत होना आवश्यक है. यानी, त्रिकल के पश्चात त्रिकल शबोद्ण् का आना गेयता को सहज रखने में अत्यंत सहायक हुआ करता है. निरंतर अभ्यास से आपकी दृष्टि विकसित होती जायेगी.

सर्वोपरि, रचनाओं में सबसे अधिक जो ध्यान आकर्षित करती है, वह है उसकी भाषा. रचनाओं की भाषा न केवल व्याकरण सम्मत हो बल्कि समुचित रूप से संप्रेष्य भी हो.

मानवता के ये हत्यारे ,हर युग में हैं आते
इनका कोई धर्म न होता ,पर दुःख में सुख पाते
उसको फिर सलीब में ठोका ,कंट मुकुट पहनाया

उपर्युक्त बन्द में आपने ’ये’ का प्रयोग किया है . यह ’ये’ भारी भ्रमकारक है. यह अवश्य ही मरियम-सुत केलिए नहीं है, बल्कि उनके लिए है जिन्होंने ईशु मसीह को शारीरिक कष्ट और मानसिक दुःख दिये थे. लेकिन रचना का मुख्य पात्र मरियम-सुत, यानी ईशु मसीह है. अतः भान होता है कि ’ये’ रचना के मुख्य पात्र के लिए ही आया है. व्याकरण में सर्वनाम के प्रयोग का ढंग इसी ओर इंगित भी करता है. कहना न होगा, ऐसा कोई इंगित रचना के लिए महाभारी दोष ही है.
विश्वास है आप समझ रही होंगी.

आपकी इस प्रस्तुति केक्रम में हुए अभ्यास के लिए हार्दिक शुभकामनाएँ, आदरणीया.
शुभेच्छाएँ

Comment by Samar kabeer on December 21, 2015 at 10:57pm
मोहतरमा प्रतिभा पांडे जी,आदाब, क्रिसमस पर श्रद्धाञ्जलि के रूप में बहुत अच्छी रचना पेश की आपने,चिंतन साफ़ झलक रहा है,बहुत ख़ूब,वाह वाह,ढेरों दाद के साथ बधाई स्वीकार करें ।
Comment by Sheikh Shahzad Usmani on December 21, 2015 at 4:30pm
विषयांतर्गत सभी पहलुओं को बख़ूबी पिरोते हुए संदेश वाहक रचना प्रस्तुत करने के लिए हृदयतल से बहुत बहुत बधाई और शुभकामनाएँ आपको आदरणीया प्रतिभा पाण्डेय जी ।
Comment by Shyam Narain Verma on December 21, 2015 at 2:53pm
सुन्दर गीत के लिए आपको बधाई i

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२ जब जिये हम दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं अब कान देते   आपके निर्देश हैं…See More
16 hours ago
Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
Friday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
Friday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"असमंजस (लघुकथा): हुआ यूॅं कि नयी सदी में 'सत्य' के साथ लिव-इन रिलेशनशिप के कड़वे अनुभव…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब साथियो। त्योहारों की बेला की व्यस्तता के बाद अब है इंतज़ार लघुकथा गोष्ठी में विषय मुक्त सार्थक…"
Thursday
Jaihind Raipuri commented on Admin's group आंचलिक साहित्य
"गीत (छत्तीसगढ़ी ) जय छत्तीसगढ़ जय-जय छत्तीसगढ़ माटी म ओ तोर मंईया मया हे अब्बड़ जय छत्तीसगढ़ जय-जय…"
Thursday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service