For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

जीवन की पाठशाला (लघुकथा)

आगरा से लखनऊ का छ-सात घंटे का सफ़र | ट्रेन खचाखच भरी हुई थी, पर भला हो उस दलाल का,जिसने सौ रूपये ज्यादा लेकर सीट कन्फर्म करा दी थी | वरना सिविल सेवा परीक्षा देने जाना बड़ा भारी लग रहा था | दोनों ही सहेलियों ने गेट से लगी सीट पर धम्म से बैठ कब्ज़ा जमा लिया था | सामने फर्श पर सामान्य कद-काठी का शरीरधारी, किसी दूसरे ग्रह का प्राणी लग रहा था | मैला-कुचैला सा कम्बल अपने शरीर के चारो तरफ लपेटे बैठा था | रह-रह सुमी उसे हिकारत भरी नजर से देख लेती | और नाक-भौं बनाते हुए अपनी सहेली तनु के साथ चर्चा में तल्लीन हो जाती | बात रसोई से शुरू हो , राजनीति तक जा पहुँची थी |
अब तो दोनों सहेली एक दूजे पर कटाक्ष रूपी तीर छोड़ रही थीं | कभी तनु कटाक्ष से घायल, कभी सुमी तनु के मुख से निकली आग से रुई सी हुई जा रही थी |
तभी दोनों की चर्चा के बीच में एक तल्ख़ आवाज गूंजी |
"ये राजनीति के बंदे, किसी के कभी हुए, जो अब होंगे | आपस का प्रेम ऐसे क्यों किसी ऐसे के लिए गंवा रही हों, जो 'पानी में दीखता चाँद' सरीखा हैं | न वो शीतलता दें सकता, न रोशनी और न ही पकड़ में आएगा |"
दोनों अवाक सी, दीनहीन से उस व्यक्ति को देखती रह गयीं |
सुमी, ये सोच हतप्रभ थी, कि सामान्य से दिखने वाले लोग भी दार्शनिक सोच रखते हैं | अब सफ़र का बचाखुचा समय, 
चुप्पी साध, मुग्ध सी, सिर्फ सुन रही थीं दोनों | चार घंटे से चुपचाप बैठा व्यक्ति जब मुंह खोला तो चुप कहाँ हुआ| एक से बढ़कर एक फिलाॅसफी भरी उसकी बातें |
एकाएक सुमी पूछी "बाबा पढ़े कितना हो ?"
"पाठशाला में तो न गया, पर जीवन की पाठशाला बखूबी पढ़ी है |"
सुमी और तनु के बैग में रखी डिग्रियाँ, अब जैसे उन्हें ही मुंह चिढ़ा रही थीं |

.
"मौलिक व अप्रकाशित"

Views: 913

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by savitamishra on November 28, 2015 at 4:28pm

अभिवादन  के साथ आभार आप सभी का ! मार्गदर्शन karte रहें सभी कृपा होगी 

Comment by DIGVIJAY on November 25, 2015 at 7:55pm

बहुत ही अचछी रचना माननीया, बधाई स्वीकारे ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on November 25, 2015 at 7:43pm

कई बार अनपढ़ वो सीख दे जाते हैं जो पढ़े लिखे नहीं दे सकते और कई बार  पढ़े लिखे अनपढ़ हो जाते हैं बहुत सुन्दर कथानक चुना है आपने बहुत अच्छी लघु कथा हार्दिक बधाई आपको |

Comment by TEJ VEER SINGH on November 25, 2015 at 11:32am

हार्दिक बधाई सविता जी!सुन्दर लघुकथा!

Comment by Nita Kasar on November 24, 2015 at 7:08pm
जिन्हें हम हिक़ारत की नजर से देखते है उन्है मामूली समझने की भूल ना करें संभव है वक़्त की बेरुख़ी ने हालात एेसे पैदा किये होगे जीवन की पाठशाला दुनियादारी भरे सबक़ सिखा देती कथा के लिये बधाई आपको आद० सविता मिश्रा जी
Comment by Shyam Narain Verma on November 23, 2015 at 2:27pm

 बहुत बढ़िया कटाक्ष करती लघुकथा. बधाई स्वीकारें

सादर

Comment by savitamishra on November 23, 2015 at 12:14am

राहिला बहन आभार आपका जो आपको भाई यह कथा |

Comment by savitamishra on November 23, 2015 at 12:13am

शेख भाई शुक्रिया आपका तहेदिल से|

Comment by Rahila on November 22, 2015 at 10:46am
बहुत बधाई आपको इस रचना के लिये आदरणीया सविता जी! हक़ीकत है कि जीवन की पाठशाला में पढ़ा व्यक्ति कही ज्यादा समझ रखता है कोरी शिक्षा लिये व्यक्ति की अपेक्षा । सादर ।
Comment by savitamishra on November 21, 2015 at 11:06pm

तहेदिल से आभार आपका जो आपको पसंद आई 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . विविध
"आदरणीय जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय । हो सकता आपको लगता है मगर मैं अपने भाव…"
14 hours ago
Chetan Prakash commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . विविध
"अच्छे कहे जा सकते हैं, दोहे.किन्तु, पहला दोहा, अर्थ- भाव के साथ ही अन्याय कर रहा है।"
17 hours ago
Aazi Tamaam posted a blog post

तरही ग़ज़ल: इस 'अदालत में ये क़ातिल सच ही फ़रमावेंगे क्या

२१२२ २१२२ २१२२ २१२इस 'अदालत में ये क़ातिल सच ही फ़रमावेंगे क्यावैसे भी इस गुफ़्तगू से ज़ख़्म भर…See More
yesterday
सुरेश कुमार 'कल्याण' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post गहरी दरारें (लघु कविता)
"परम् आदरणीय सौरभ पांडे जी सदर प्रणाम! आपका मार्गदर्शन मेरे लिए संजीवनी समान है। हार्दिक आभार।"
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . . . विविध

दोहा सप्तक. . . . विविधमुश्किल है पहचानना, जीवन के सोपान ।मंजिल हर सोपान की, केवल है  अवसान…See More
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post गहरी दरारें (लघु कविता)
"ऐसी कविताओं के लिए लघु कविता की संज्ञा पहली बार सुन रहा हूँ। अलबत्ता विभिन्न नामों से ऐसी कविताएँ…"
yesterday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

छन्न पकैया (सार छंद)

छन्न पकैया (सार छंद)-----------------------------छन्न पकैया - छन्न पकैया, तीन रंग का झंडा।लहराता अब…See More
yesterday
Aazi Tamaam commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल के
"आदरणीय सुधार कर दिया गया है "
Tuesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post गहरी दरारें (लघु कविता)
"आ. भाई सुरेश जी, सादर अभिवादन। बहुत भावपूर्ण कविता हुई है। हार्दिक बधाई।"
Monday
Aazi Tamaam posted a blog post

ग़ज़ल: चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल के

२२ २२ २२ २२ २२ २चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल केहो जाएँ आसान रास्ते मंज़िल केहर पल अपना जिगर जलाना…See More
Monday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

गहरी दरारें (लघु कविता)

गहरी दरारें (लघु कविता)********************जैसे किसी तालाब कासारा जल सूखकरतलहटी में फट गई हों गहरी…See More
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

शेष रखने कुटी हम तुले रात भर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

212/212/212/212 **** केश जब तब घटा के खुले रात भर ठोस पत्थर  हुए   बुलबुले  रात भर।। * देख…See More
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service