For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल : कहाँ अपना भला मैं

कहाँ अपना भला मैं कर रहा हूँ
ख़ुशी अपनों की हर दम देखता हूँ

इसे जीना कहें तो आप कह लें
गुज़ारे के लिए लड़ता रहा हूँ

ख़यालोँ में बड़ी रानाइयां है
तुम्हें मैं इसलिए भी सोचता हूँ

इरादा आशिकी का था कभी पर
जुनूँ का एक अब मैं सिलसिला हूँ

गुनाहों पर मुझे तस्लीम कब थी
इसी मसले पे मैं सबसे ख़फा हूँ

बनाया है तबीअत से ख़ुदा ने
उसी की मैं इनायत का पता हूँ

मुकम्मल वो ग़ज़ल है इक सुरीली
मैं मुबहम शेर सा तनहा खड़ा हूँ

गुज़र जाते सभी रुकते नहीं हैं
अकेला रास्ते सा रह गया हूँ

मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 745

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Abid ali mansoori on November 6, 2015 at 11:25pm

इसे जीना कहें तो आप कह लें
गुज़ारे के लिए लड़ता रहा हूँ

ख़यालोँ में बड़ी रानाइयां है
तुम्हें मैं इसलिए भी सोचता हूँ

सच में बहुत ही उम्दा आदरणीय रवि शुक्ला जी, हार्दिक वधाई आपको!

Comment by मोहन बेगोवाल on November 6, 2015 at 7:35pm

आदरणीय रवि जी, ग़ज़ल के सभी अश'आर बहुत ही कमाल हुए , ये शे'र मुझे बहुत प्यारा लगा 

इसे जीना कहें तो आप कह लें
गुज़ारे के लिए लड़ता रहा हूँ - बधाई हो 

Comment by मनोज अहसास on November 6, 2015 at 1:55pm
बहुत बहुत बधाई
सादर
Comment by Sushil Sarna on November 6, 2015 at 1:38pm

गुज़र जाते सभी रुकते नहीं हैं
अकेला रास्ते सा रह गया हूँ
वाह आदरणीय रवि जी बहुत ही दिलकश अशआर बने हैं … ग़ालिब होते तो जरूर कहते कि हर शे'र पे दम निकलता है .... बहरहाल इस खूबसूरत अहसासों वाली ग़ज़ल के लिए दिल से बधाई स्वीकार करें आदरणीय। सादर _/\_

Comment by Ravi Shukla on November 6, 2015 at 1:29pm

आदरणीय मिथिलेश जी बहुत बहुत आभार आपका । आपको ग़ज़ल पसंद आई और शेर के कई नये अर्थ भी और समझ आये आपकी पसंद को सलाम । अनुग्रह बनाये रखें । सादर


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on November 6, 2015 at 1:19pm

आदरणीय रवि जी बहुत शानदार ग़ज़ल हुई है.  शेर दर शेर दाद हाज़िर है-

कहाँ अपना भला मैं कर रहा हूँ
ख़ुशी अपनों की हर दम देखता हूँ............. आप कितने सहज अंदाज में अपनी बात कह जाते है. कमाल का मतला हुआ है. मैंने इस मतले को कई दफ़ा पढ़ा और हर बार इसकी गहराई तक पहुँचता गया हूँ.  एक पिता, एक पति एक सरपरस्त होने का मतलब क्या है, बखूबी उजागर हुआ है. शानदार मतला हुआ है. दाद कुबूल फरमाएं 

इसे जीना कहें तो आप कह लें
गुज़ारे के लिए लड़ता रहा हूँ........... लाजवाब .... कमाल .... दिल जीतू शेर....आपने दिल बात कह दी. हासिल-ए-ग़ज़ल 

ख़यालोँ में बड़ी रानाइयां है
तुम्हें मैं इसलिए भी सोचता हूँ.......... बहुत बढ़िया शेर हुआ है.

इरादा आशिकी का था कभी पर
जुनूँ का एक अब मैं सिलसिला हूँ......दिल खुश कर दिया आपने ये शेर कह के. अपना सच आपके लफ़्ज़ों में महसूस कर रहा हूँ

गुनाहों पर मुझे तस्लीम कब थी
इसी मसले पे मैं सबसे ख़फा हूँ............... कमाल का अंदाज़े-बयां .... 

बनाया है तबीअत से ख़ुदा ने
उसी की मैं इनायत का पता हूँ............. बढ़िया शेर 

मुकम्मल वो ग़ज़ल है इक सुरीली
मैं मुबहम शेर सा तनहा खड़ा हूँ............. वाह वाह वाह.. क्या खूब कहा है!

गुज़र जाते सभी रुकते नहीं हैं
अकेला रास्ते सा रह गया हूँ....................... ग़ज़ल अपने चरम पर है. आदरणीय रवि जी आपकी ग़ज़ल की सादगी और गहराई वो भी छोटी बह्र में. कमाल है. लाजवाब ग़ज़ल हुई है. इस ग़ज़ल पर आपको दिल से दाद और मुबारकबाद .... सादर 

Comment by Ravi Shukla on November 6, 2015 at 1:09pm

पोस्‍ट में ग़ज़ल से पूर्व इसका वज्न गलती से लिखने से रह गया था कृपया इसके साथ पढने का निवेदन है

1222 1222 122

Comment by Ravi Shukla on November 6, 2015 at 12:20pm

आदरणीय गिरिराज जी आपकी सराहना से हौसला मिलता है बहुत बहुत आभार आपका । आपके करीब हो सका है  कोई शेर यह हमारे शेर का सौभाग्‍य है । आपके मार्ग दर्शन के लिये भी आभार । सादर

Comment by Ravi Shukla on November 6, 2015 at 12:18pm

आदरणीय श्‍याम नारायण जी गजल पर शिरकत के लिये आपका बहुत बहुत शुक्रिया  ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on November 6, 2015 at 10:44am

आदरनीय रवि भाई , बेहतरीन गज़ल हुई है , आपको इस गज़ल के लिये हार्दिक बधाइयाँ ॥

इसे जीना कहें तो आप कह लें
गुज़ारे के लिए लड़ता रहा हूँ

बनाया है तबीअत से ख़ुदा ने
उसी की मैं इनायत का पता हूँ

मुकम्मल वो ग़ज़ल है इक सुरीली
मैं मुबहम शेर सा तनहा खड़ा हूँ   --  ये अशआर मुझे मेरे दिल के क़रीब लगे , पुनः बधाइयाँ ॥

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

surender insan replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"आदरणीय जयहिंद  जयपुरी जी सादर नमस्कार जी।   ग़ज़ल के इस बेहतरीन प्रयास के लिए बधाई…"
22 minutes ago
surender insan replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"आदरणीय नीलेश भाई जी सादर नमस्कार जी। वाह वाह बेहद शानदार मतला के साथ  शानदार ग़ज़ल के लिए दिली…"
26 minutes ago
surender insan replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"आदरणीय लक्ष्मण जी सादर नमस्कार जी। क्या ही खूबसूरत मतला हुआ है। दिली दाद कुबूल कर जी।आगे के अशआर…"
30 minutes ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"आदरणीय Aazi जी बहुत शुक्रिया आपका  सादर"
1 hour ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"आदरणीय तिलक जी नमस्कार बहुत बहुत शुक्रिया आपका, आपने इतनी बारीकी से ग़ज़ल को देखा  आपकी इस्लाह…"
1 hour ago
surender insan replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"आदरणीय आज़ी भाई आदाब! ग़ज़ल का बहुत अच्छा प्रयास हुआ है जिसके लिए बहुत बहुत बधाई हो। मतला यूँ देखिए…"
1 hour ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है । हार्दिक बधाई।"
3 hours ago
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"अच्छी ग़ज़ल कही आदरणीय आपने आदरणीय तिलक राज सर की इस्लाह भी ख़ूब हुई है ग़ज़ल और निखर जायेगी"
4 hours ago
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"अच्छी ग़ज़ल कही आदरणीय आदरणीय तिलक राज सर की इस्लाह से और बेहतर हो जायेगी अच्छी इस्लाह हुई है"
4 hours ago
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"अच्छी ग़ज़ल हुई आदरणीय इतनी बारीकी से इस्लाह की है आदरणीय तिलक राज सर ने मतले व अन्य शेरों पर काबिल…"
4 hours ago
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"अच्छी ग़ज़ल हुई आदरणीय आदरणीय तिलक राज सर की इस्लाह हर ग़ज़ल पर बेहतरीन हुई है काबिल ए गौर है ग़ज़ल…"
4 hours ago
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"बहुत ख़ूब ग़ज़ल हुई आदरणीय निलेश सर 4rth शेर बेहद पसंद आया बधाई स्वीकारें आदरणीय"
4 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service