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स्याह धब्बा

ढलते सूरज-से रिश्ते की बुझती लालिमा

सिकुड़ती सिमटती जा रही

अनकही बातों के अरमानों की

अप्राकृतिक अकुलाहट

अपने ही कानों में भयानक

दुर्घटना-सी

अमावस-सी अँधियारी कसकती रात

डरता है व्याकुल बेसुध मन

कि अब तुम नहीं हो पास

बहता है दुख

बेचैन बदनसीब रिश्ता ...

अब स्याह धब्बे-सा

--------

-- विजय निकोर

(मौलिक व अप्रकाशित)

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Comment by vijay nikore on November 9, 2016 at 6:40am

// रिश्तों के मर्म और बिछोह सी स्थिति में होने और होने जैसे की पीड़ा को अभिव्यक्त करती गहन पंक्तियाँ शाब्दिक हुई है //

हृदयतल से आपका आभार, आदरणीय मिथिलेश जी। इतने समय से मैंने यहाँ आभार प्रकट नहीं किया, अत: क्षमाप्रार्थी हूँ। 

Comment by vijay nikore on November 9, 2016 at 6:37am

// आकुल मन की हताशा हो या प्रेम के उत्कट आवेग से उपजी आंतरैक पीड़ा, आपसे शब्द पा कर मानो जीवित हो उठते हैं //

आपसे मिली सराहना से मेरा मनोबल बढ़ता है, और मैं आभारी हूँ आदरणीय भाई सौरभ जी। मुझको बहुत खल रहा है कि इतने समय से मैंने यहाँ आभार प्रकट नहीं किया। क्षमाप्रार्थी हूँ। 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on July 16, 2015 at 2:45am

आदरणीय विजय निकोर सर, रिश्तों के मर्म और बिछोह सी स्थिति में होने और होने जैसे की पीड़ा को अभिव्यक्त करती गहन पंक्तियाँ शाब्दिक हुई है. बहुत बहुत बधाई इस सशक्त रचना के लिए.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 5, 2015 at 12:14am

आकुल मन की हताशा हो या प्रेम के उत्कट आवेग से उपजी आंतरैक पीड़ा, आपसे शब्द पा कर मानो जीवित हो उठते हैं, आदरणीय विजय निकोर साहब.
हृदय से बधाई लीजिये इस गहन मनोदशा की सान्द्र अभिव्यक्ति पर.
सादर

Comment by vijay nikore on June 24, 2015 at 10:12am

रचना की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार, आदरणीय विनय कुमार सिंह जी।

Comment by vijay nikore on June 21, 2015 at 1:25pm

//सुंदर काव्य जो भावनाओ को अंत:करण तक झकझोरती चली जाती है//

इस भावना से मान देने के लिए आपका हार्दिक आभार, आदरणीय केवल प्रसाद जी।

Comment by vijay nikore on June 21, 2015 at 1:22pm

रचना की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार, आदरणीया कांता जी।

Comment by vijay nikore on June 17, 2015 at 10:18pm

आपका स्नेह और प्रोत्साहन मेरी अमूल्य निधि है, आदरणीय भाई शर्दिन्दु जी। आभारी हूँ।

Comment by vijay nikore on June 17, 2015 at 4:40pm

आदरणीय समर कबीर जी,  रचना पर पंक्ति दर पंक्ति दाद देने के लिए आपका हार्दिक आभार।

Comment by Dr Ashutosh Mishra on June 17, 2015 at 2:05pm

आदरणीय विजय सर ..आपकी रचनायें बहुत गंभीर होती हैं ..सोच को नए आयाम देती इस शानदार रचना के लिए हार्दिक बधाई सादर 

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