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चाहा है तुमने मुझे हर रंग में, हर रूप में ।

साथ दिया है तुमने हर छाँव में, हर धूप में ।
सोचती हूँ लेकिन कभी यूँ ही बैठकर , ..
जब जिंदगी की गोधूली बेला आएगी,
चेहरे पर झुर्रियां और बालो में सफ़ेदी छायेगी,
जब मेरे अधर न होंगे गुलाबों जैसे,
आँखें न होंगी गहरी झील जैसी ,
क्या तुम तब भी इन आँखों में खो जाओगे?
क्या अधरों पर प्रेम चिन्ह दे पाओगे ?
क्या कई दिनों से उलझी जुल्फों को सुलझा पाओगे ?
सोचती हूँ बस यूँ ही बैठकर ,
क्या उम्र भर मेरा साथ निभाओगे ? ????

माला झा "खुशबू"

(मौलिक एवम् अप्रकाशित)

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Comment

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Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on May 4, 2015 at 11:38am

बहुत सुंदर, भावपूर्ण रचना आदरणीया माला जी. बधाई


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on May 3, 2015 at 9:08pm

आदरणीया माला जी , सुन्दर भाव अभिव्यक्ति , हार्दिक बधाई आपको ॥

Comment by shree suneel on May 3, 2015 at 9:57am
वाह..! सुन्दर रचना आदरणीया माला जी. प्रस्तुति पर बधाई आपको.

क्या तुम तब भी इन आँखों में खो जाओगे?
.. वाजिब सवाल
Comment by Mala Jha on May 2, 2015 at 8:36pm
सप्रेम धन्यवाद आदरणीय महिमाश्री
Comment by MAHIMA SHREE on May 2, 2015 at 5:12pm

सुंदर अभिव्यक्ति...बधाई आपको

कृपया ध्यान दे...

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