For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल : मैं पिता जबसे हुआ चिंतित हुआ

वज्न : २१२२, २१२२, २१२

दूरियों का ही समय निश्चित हुआ,
कब भला शक से दिलों का हित हुआ,

भोज छप्पन हैं किसी के वास्ते,
और कोई शस्य से वंचित हुआ,
              (शस्य = अन्न)
क्या भरोसा देश के कानून पर,
है बुरा जो वो भला साबित हुआ,

नारियों सँग हादसे यूँ देखकर,
मैं पिता जबसे हुआ चिंतित हुआ,

सभ्यता की देख उड़ती धज्जियाँ,
मन ह्रदय मेरा बहुत कुंठित हुआ..

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

Views: 1670

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by बृजेश नीरज on September 17, 2013 at 11:45am

बहुत बधाई और आपके इस निर्णय का हार्दिक स्वागत!

अरुण भाई, किसी बात पर नाराज़ होना बनता है लेकिन मंच छोड़ना-तौबा, तौबा!

बागी जी रात को खाना नहीं खाए, आपकी बात सुनकर! अब उनका क्या?


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on September 17, 2013 at 11:40am

ये हुई  न बात एक अच्छे इंसान और एक अच्छे रचनाकार की यही पहचान है ,आदरणीय सौरभ जी से भी यही प्रार्थना है कि बच्चे की नादानी समझ कर उसे क्षमा करें और उठकर गले से लगा लें 

Comment by अरुन 'अनन्त' on September 17, 2013 at 11:23am

आदरणीय गुरुजनों, अग्रजों एवं प्रिय मित्रों प्रणाम स्वीकारें और साथ ही साथ क्षमा भी मांग रहा हूँ आप सभी से क्षमा भी करें, भावुकता में अपना से परिवार से दूर जाने को कह दिया किन्तु आप सभी से दूर जाना असंभव है, आप सभी से दिल से जुड़ा हूँ और दिल के बिना रहना तो संभव हो ही नहीं सकता, मेरे ह्रदय में आप सभी के प्रति अथाह प्रेम एवं सम्मान है, आदरणीय सौरभ सर जी भी मुझसे अथाह प्रेम करते हैं मैं भी उनसे बहुत प्रेम करता हूँ. मैं कहीं नहीं जा रहा हूँ क्यूंकि जा ही नहीं सकता और आप सभी के बिना रह ही नहीं सकता. पुनः क्षमा चाहता हूँ. 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on September 17, 2013 at 9:55am

अभी भोपाल पहुँचा हूँ. तनिक व्यस्त भी रहूँगा. अभी-अभी सारी बातें देख-सुन पा रहा हूँ. इत्मिनान से बातें करूँगा और अवश्य करूँगा.

अरुन अनन्त जी, ये सब क्या हो रहा है ?

Comment by Dr Lalit Kumar Singh on September 17, 2013 at 6:44am

लालयेत पंच वर्षानी , दस वर्षानी ताडयेत
प्राप्ते षोडशे वर्षे , मित्र बंधू समाचरेत

Comment by बृजेश नीरज on September 17, 2013 at 6:34am

हाँ! आदरणीय अभिनव जी ने बहुत उचित बात कही है!

सब कह रहे हैं, अब तो मन भी जाओ बन्धु!

Comment by Abhinav Arun on September 17, 2013 at 5:51am

...आदरणीय श्री से औपचारिक नहीं आत्मीय सम्बंध हैं मेरे ..जिसे कहते हैं न मानना ..कुछ वैसा वाला लव टाइप का :-) कई बार नेट पर ही नहीं साक्षात् स्थिति में भी ...उनकी बातें थोड़ी कड़ी लगती हैं ...इनसे पटेगा नहीं ...मुझे ऐसा बोल दिया ? ऐसा लगता है ...और लगता है की ऐसा क्यों कहा गया ..दुःख भी होता है ..पर स्नेह सर्वोपरी है ..और ओ बी ओ और इसके साथियों से मेरा स्नेह बहुत सारी सीमाओं से परे है ...सो दो चार बातें सुन सह कर भी ... सीस कटाए हरी मिले ... तो सीस कटाना भी ख़ुशी से स्वीकार ..सर बने रहिये ..आगे बढिए !!

 

-- अभिवादन !!

Comment by Abhinav Arun on September 17, 2013 at 5:45am

आ. अरुण जी , मेरी सलाह पसंद आई , जान कर अच्छा लगा | ....हाँ छोटा हूँ पर अनुभव जीवन में थोडा बहुत है उस आधार पर कह रहा हूँ की जब हम कहते हैं की ओ बी ओ एक परिवार है और है भी ..हम सभी मानते हैं कि हजारों साइटों से अलग है यहाँ एक दूसरे को माला पहना  ताली बजाने की रवायती या रस्मी परंपरा नहीं है ... बहुत कुछ हम सब इस नर्सरी से सीख रहे हैं और अपनी प्रतिभा दिखा रहे हैं | फिर परिवार में जिस प्रकार थोड़े बहुत मतभेद होते हैं , किसी की बात कभी चुभ जाती है पर हम न तो खुद परिवार छोड़ते हैं और न उस सदस्य को निकाला देते हैं ... आज तो अपने ही बच्चे कितना सुनते हैं ?...सो यही सोच समझ आप मंच छोड़ने की बात न करे ..थोडा जज़्ब करें .. समय के साथ भावनाओं में निथार आता है ..और हम संयत हो सोच सकते हैं ... कोई कटुता हो तो साफ़ कह बोल कर मुस्कुराते रहिये ..बने रहिये ...निवेदन है आत्मीयता भरा ...याद रहे यहाँ सभी अपने हैं ...और जिन्हें अपना कहते हैं उनसे बहस मुबाहिसे के बावजूद दूरी नहीं बनाते :-)

Comment by वीनस केसरी on September 16, 2013 at 11:56pm

आपको इसीलिए कहा जाता है .... एक बार फिर आप हडबडी में गडबडी कर गये ...

मंच छोड़ना !!!!
हम्म्म्म


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on September 16, 2013 at 11:46pm

प्रिय अनुज, आप जल्दबाजी में कुछ भी लिख जाते हैं, इसी बिंदु को आदरणीय सौरभ जी ने भी उल्लेख किया है, लहजा तनिक तीखा जरुर है पर यह अधिकार समझने के कारण भी होता है, अन्यथा लेने की आवश्यकता नहीं ।

और हां, अनुज हो अनुज की तरह रहो, अग्रज न बनो, कह देते है हां नहीं तो :-)))))

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन पर आपकी विस्तृत समीक्षा का तहे दिल से शुक्रिया । आपके हर बिन्दु से मैं…"
3 hours ago
Admin posted discussions
yesterday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 171

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आदरणीय सुशील सरनाजी, आपके नजर परक दोहे पठनीय हैं. आपने दृष्टि (नजर) को आधार बना कर अच्छे दोहे…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"प्रस्तुति के अनुमोदन और उत्साहवर्द्धन के लिए आपका आभार, आदरणीय गिरिराज भाईजी. "
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी posted a blog post

ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी

२१२२       २१२२        २१२२   औपचारिकता न खा जाये सरलता********************************ये अँधेरा,…See More
Sunday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा दशम्. . . . . गुरु

दोहा दशम्. . . . गुरुशिक्षक शिल्पी आज को, देता नव आकार । नव युग के हर स्वप्न को, करता वह साकार…See More
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल आपको अच्छी लगी यह मेरे लिए हर्ष का विषय है। स्नेह के लिए…"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post लौटा सफ़र से आज ही, अपना ज़मीर है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति,उत्साहवर्धन और स्नेह के लिए आभार। आपका मार्गदर्शन…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आदरणीय सौरभ भाई , ' गाली ' जैसी कठिन रदीफ़ को आपने जिस खूबसूरती से निभाया है , काबिले…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आदरणीय सुशील भाई , अच्छे दोहों की रचना की है आपने , हार्दिक बधाई स्वीकार करें "
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आदरणीय लक्ष्मण भाई , बहुत अच्छी ग़ज़ल हुई है , दिल से बधाई स्वीकार करें "
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service