For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ओस की बूँदें//ग़ज़ल//कल्पना रामानी

1222122212221222

सुनहरी भोर बागों में, बिछाती ओस की बूँदें!

नयन का नूर होती हैं, नवेली ओस की बूँदें!

 

चपल भँवरों की कलियों से, चुहल पर मुग्ध सी होतीं,

मिला सुर गुनगुनाती हैं, सलोनी ओस की बूँदें!

 

चितेरा कौन है? जो रात, में जाजम बिछा जाता,

न जाने रैन कब बुनती, अकेली ओस की बूँदें!

 

करिश्मा है खुदा का या, कि ऋतु रानी का ये जादू,

घुमाकर जो छड़ी कोई, गिराती ओस की बूँदें!

 

नवल सूरज की किरणों में, छिपी होती हैं ये शायद,

जो पुरवाई पवन लाती, सुधा सी ओस की बूँदें!

 

टहलने चल पड़ें साथी, निहारें रूप  प्रातः का,

न जाने कब बिखर जाएँ, फरेबी ओस की बूँदें!

 

मौलिक व अप्रकाशित

 

कल्पना रामानी

Views: 1133

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by कल्पना रामानी on August 13, 2013 at 10:04am

आदरणीय, आपकी हर टिप्पणी मेरे लिए एक नई ऊर्जा का स्रोत बनती है। किसी संवेदनशील रचनाकार  का मन वही पढ़ सकता है  जिसके अपने हृदय में संवेदनाएँ बसती हों। आपका हृदय से आभार।  


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 13, 2013 at 9:47am

गीत और ग़ज़ल के सामंजस्य को कई-कई बार बिठाने का प्रयास हआ है. लेकिन जिस आश्वस्ति के साथ बात बननी चाहिये वह बात अक्सर बनती नहीं. कारण कि या तो ग़ज़लकार हावी होजाता है या गीतकार. और, संतुलन रह नहीं पाता. 

आपकी प्रस्तुत ग़ज़ल में भरसक कोशिश हुई है इसी संतुलन को साधने की. 

एक नैसर्गिक भावुक गीतकार की ग़ज़ल कितनी संप्रेषणीय होती है यह उदाहरण स्वरूप सामने है. 

आदरणीया, बधाई हो.

सादर

Comment by कल्पना रामानी on August 10, 2013 at 1:20pm

हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय सुलभ जी

सादर

Comment by Sulabh Agnihotri on August 9, 2013 at 5:57pm

बहुत सुन्दर है कल्पना रामानी जी !

Comment by कल्पना रामानी on August 8, 2013 at 7:13pm

बृजेश जी आप सबके सहज स्नेह से ही प्रेरणा मिलती है। आपका बहुत बहुत धन्यवाद

Comment by बृजेश नीरज on August 8, 2013 at 6:56pm

वाह! लाजवाब! आदरणीया आपकी रचना पढ़ते पहले यही लगता है कि कोई इतना अच्छा कैसे लिख सकता है! आप जिस सहजता से हिन्दी में गजल लिखती हैं वह बस दांतों तले उंगली दबा लेने को मजबूर करता है।
आपको नमन!

Comment by कल्पना रामानी on August 8, 2013 at 6:51pm

केतन जी, हार्दिक धन्यवाद

सादर

Comment by Ketan Parmar on August 8, 2013 at 4:27pm

EK ACHI KOSHISH KE LIYE HARDIK BADHAAI HO DIDI

Comment by कल्पना रामानी on August 8, 2013 at 3:38pm

आदरणीय अभिनव अरुण जी, जितेंद्र गीत जी, प्रशंसात्मक टिप्पणी के लिए हार्दिक धन्यवाद

सादर

Comment by Abhinav Arun on August 8, 2013 at 1:08pm

और हां इस शेर के लिए विशेष बधाई --

टहलने चल पड़ें साथी, निहारें रूप प्रातः का,

न जाने कब बिखर जाएँ, फरेबी ओस की बूँदें!

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आदरणीय सौरभ सर, गाली की रदीफ और ये काफिया। क्या ही खूब ग़ज़ल कही है। इस शानदार प्रस्तुति हेतु…"
15 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .इसरार

दोहा पंचक. . . .  इसरारलब से लब का फासला, दिल को नहीं कबूल ।उल्फत में चलते नहीं, अश्कों भरे उसूल…See More
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सौरभ सर, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। आयोजन में सहभागिता को प्राथमिकता देते…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सुशील सरना जी इस भावपूर्ण प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। प्रदत्त विषय को सार्थक करती बहुत…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, प्रदत्त विषय अनुरूप इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। गीत के स्थायी…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सुशील सरनाजी, आपकी भाव-विह्वल करती प्रस्तुति ने नम कर दिया. यह सच है, संततियों की अस्मिता…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आधुनिक जीवन के परिप्रेक्ष्य में माता के दायित्व और उसके ममत्व का बखान प्रस्तुत रचना में ऊभर करा…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय मिथिलेश भाई, पटल के आयोजनों में आपकी शारद सहभागिता सदा ही प्रभावी हुआ करती…"
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ   .... बताओ नतुम कहाँ होमाँ दीवारों मेंस्याह रातों मेंअकेली बातों मेंआंसूओं…"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ की नहीं धरा कोई तुलना है  माँ तो माँ है, देवी होती है ! माँ जननी है सब कुछ देती…"
Saturday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय विमलेश वामनकर साहब,  आपके गीत का मुखड़ा या कहूँ, स्थायी मुझे स्पष्ट नहीं हो सका,…"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service