ग़ज़ल 
 
यारों ,   पापों  के  हिंडोले  की  यह  डोली   बहुत   बुरी   है | 
होली  खेलो   मगर   खून  की  होली  यारों  बहुत  बुरी  है ||
 तन से मानव बहुत मिलेंगे पर तुम बनना मन से मानव, 
गोली  बनो  दवा  की  यारों,   विष की गोली बहुत बुरी है ||
 मानवता   का   करो  आचरण  और प्यार की भाषा बोलो, 
क्योकि   यारों,  रावण  जैसी  उल्टी  बोली  बहुत  बुरी है ||
 दस  सिर  वाला  रावण  भी  तो नहीं  राम  को जीत सका, 
बन्दर  टोली  भी  लंका  की  खातिर  यारों  बहुत  बुरी है ||
 तिल  भर  धर्म-पुण्य  भी  यारों  कर  देता  है  धन्य  हमें 
इससे  उल्टी  पाप  कर्म  की  झोली  यारों  बहुत  बुरी  है || 
 
                                       रचनाकार - अभय दीपराज
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वाह सुंदर नज़रिया है...अच्छी पेशकश
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