For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

जला देना पुराने ख़त निशानी तोड़ देना सब

जला देना पुराने ख़त निशानी तोड़ देना सब 
तुम्हारी बात को माने बिना भी रह नहीं सकता 
मिटा दूं भी अगर मै याद करने के बहानों को 
तुम्हारी याद के रहते जुदाई सह नहीं सकता ||

तुम्हे तो सब पता है एक दिन की भी जुदाई में 
वो सारा दिन मुझे बासी कोई अखबार लगता था 
तुम्हारी दीद के सदके कई दिन ईद होती थी 
तुम्हारा साथ जैसे स्वर्ग का दरबार लगता था ||

नज़र किसकी लगी होगी हमारे प्रेम-मंदिर को
ज़माने के कहे तुमने सभी उपवास रक्खे हैं
मिलन की चाहतें बस थीं, हमारी प्रार्थनाओं में
मगर रब ने हमारे वास्ते वनवास रक्खे हैं||

चलो छोडो किसे अब दोष का भागी बनाऊँ मै
अकेला हूँ नहीं जिसने जुदाई की सजा पाई
कई किस्से सुने थे पर कभी सोचा नहीं था ये 
इधर होगा कुआ अपने लिए, होगी उधर खाई||

अगर तुम चाहती हो खुश रहूँ मै प्यार खोकर भी 
खुशी से ना सही अपना कोई तुम घर बसा लेना 
नहीं मंजिल हमारे प्यार की हमको मिली लेकिन 
किसी का प्यार बनकर तुम चमन उसका सजा देना ||


चलो अब ये कलम भी आसुओं का हाल ना लिख दे 
दिलासों का बनाया घर खड़ा ज्यादा नहीं रहता 
मिटा दूं भी अगर मै याद करने के बहानों को 
तुम्हारी याद के रहते जुदाई सह नहीं सकता ||...........मनोज

Views: 564

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by vijay nikore on February 2, 2013 at 3:07pm

मनोज जी, इस बेहतरीन रचना के लिए साधुवाद!

अगर तुम चाहती हो खुश रहूँ मै प्यार खोकर भी
खुशी से ना सही अपना कोई तुम घर बसा लेना
नहीं मंजिल हमारे प्यार की हमको मिली लेकिन
किसी का प्यार बनकर तुम चमन उसका सजा देना ||  ...वाह...वाह...वाह!

विजय निकोर


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on February 1, 2013 at 8:42pm

हृदय स्पर्शी रचना,किसी के प्यार में असफल होकर मन कि सम्वेद्नओ को बड़ी खूबसूरती से कविता कि लड़ियों में पिरोया है वाह बहुत बहुत बढ़ाई आपको मनोज जी 

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on February 1, 2013 at 7:54pm

ह्रदय को छूती वेदना भरी अभ्व्यक्ति सुन्दर बन पड़ी है, बधाई मनोज नोटियाल भाई 

Comment by Meena Pathak on February 1, 2013 at 5:41pm

बहुत सुन्दर रचना ... बधाई

Comment by Manoj Nautiyal on February 1, 2013 at 1:14pm

बहुत बहुत आभार आपका प्राची सिंह जी , अरुण शर्मा जी , अशोककुमार जी , एवं आरती शर्मा जी |


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on February 1, 2013 at 12:40pm

जिस दर्द, विवशता और जुदाई की मनोदशा का चित्रण इस रचना में है, वह संवेदना ह्रदय को छू रही है.

इस मर्मस्पर्शी भाव सम्प्रेषण के लिए बधाई मनोज नौटियाल जी 

Comment by अरुन 'अनन्त' on February 1, 2013 at 11:05am

मनोज से प्रेम रस से ओतप्रोत बहुत ही सुन्दर रचना हेतु हार्दिक बधाई स्वीकारें.

Comment by Ashok Kumar Raktale on February 1, 2013 at 8:13am

जुदाई के आंसू और गम का फ़साना. सुन्दर रचना आद. मनोज जी

Comment by Aarti Sharma on January 31, 2013 at 10:08pm

हमारा प्यार चाहे मिलन की मंजिल नहीं पाया 
किसी का प्यार बनकर तुम चमन उसका सजा देना ||

बेहद सुन्दर और भावपूर्ण रचना..बधाई.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२ जब जिये हम दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं अब कान देते   आपके निर्देश हैं…See More
21 hours ago
Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
Friday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
Friday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"असमंजस (लघुकथा): हुआ यूॅं कि नयी सदी में 'सत्य' के साथ लिव-इन रिलेशनशिप के कड़वे अनुभव…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब साथियो। त्योहारों की बेला की व्यस्तता के बाद अब है इंतज़ार लघुकथा गोष्ठी में विषय मुक्त सार्थक…"
Thursday
Jaihind Raipuri commented on Admin's group आंचलिक साहित्य
"गीत (छत्तीसगढ़ी ) जय छत्तीसगढ़ जय-जय छत्तीसगढ़ माटी म ओ तोर मंईया मया हे अब्बड़ जय छत्तीसगढ़ जय-जय…"
Thursday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service