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*रोला छंद*

बहुत दिखाते ज्ञान, तनिक उस पर क्या चलते
बोल कर्म के साथ, मिलें तो क्यों घर जलते
कोरी है बक़वास, शास्त्र की बातें करना
अपना ही व्यवहार, परे उससे यदि धरना।

रहें हजारों साथ, अकेले या वे रह लें
सच को कितना झूठ, झूठ को या सच कह लें
दुष्टों के क्या कृत्य, सही फल दे पातें हैं
कुटिल सदा ही मात, सुजन से खा जातें हैं।

धरती का दिल आज, देख कर जाए घटता
चहुँदिक दे आवाज़, शीश मानव का कटता
कुढ़ता शुद्ध विचार, शील पर चलती आरी
मगर सियासत देख, सभी पर फिर भी भारी।

मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on July 8, 2024 at 10:12pm

आदरणीय सौरभ सर, सादर नमन

मुझे वस्तुतः नुक्ते की कोई भी जानकारी नहीं है। मैं आगे ध्यान रखूंगा कि इसका प्रयोग ही न किया जाए। यह टंकण त्रुटि है, सचेष्ट में ऐसा करता भी नहीं हूं जी, सादर

Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on July 8, 2024 at 10:09pm

आदरणीय सुशील सरना जी, आदरणीय धामी सर, सादर आभार नमन!


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 19, 2023 at 12:48am

रोला छंद आधारित रचना के लिए हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय सतविन्द्र राणा जी. 

एक बात, बिना पूरी जानकारी के नुख्ता का प्रयोग न करें. 

बकवास के क के साथ नुख्ता नहीं लगता. जबकि हजार का ज बिना नुख्ता के नहीं होता. 

वैसे भी देवनागरी लिपि में नुख्ता लिखने वालों की ओढ़ी हुई आदत मात्र है. न कि नुख्ता का कोई नियम है. 

शुभ-शुभ

 

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 16, 2023 at 6:04am

आ. भाई सतविन्दर जी, अभिवादन। अच्छे छंद रचे हैं हार्दिक बधाई।

Comment by Sushil Sarna on August 15, 2023 at 4:38pm
वाह आदरणीय जी बेहतरीन 👌 प्रस्तुति सर हार्दिक बधाई सर

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