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केवल तुमको प्यार लिखूँ(गीत-२२) - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

नित्य  तुम्हारे  चन्द्र  रूप  को,  मन  चाहा  शृंगार  लिखूँ ।
मैं जीवन के अन्तिम क्षण तक, केवल तुमको प्यार लिखूँ।।
छुईमुई  हो   पीर  सयानी,
सुख की नूतन रहे कहानी।।
अँखियों में चंचलता खेले,
सिर पर ओढ़े चूनर धानी।।
मुस्कानों  की  हर  गठरी  पर, यौवन  का  उपहार  लिखूँ।
मैं जीवन के अन्तिम क्षण तक, केवल तुमको प्यार लिखूँ।।

*
छमछम  पायल  ओट बजाना
फिर साँसों की सुधि भरमाना।।
भौंरों जैसी अठखेली पर,
छुईमुई सा झट शरमाना।।
बालापन  सी  रुसवाई  को,  सदियों  का  मनुहार  लिखूँ।
मैं जीवन के अन्तिम क्षण तक, केवल तुमको प्यार लिखूँ।।

*
साँस भले ही आनी जानी
अद्भुत हो यह प्रेम कहानी।।
नित अँखियों की गहराई में,
गाती हो धड़कन मनमानी।।
नित  भौंरों  सी  अभिलाषा  का, थोड़ा-थोड़ा  सार लिखूँ।
मैं जीवन के अन्तिम क्षण तक, केवल तुमको प्यार लिखूँ।।

*
कुतरत की तुम पर कृपा जब
कौन जरूरत  सजने की तब।।
फिर भी चाह अगर सजने की
तारक  जड़  दूँ  वेणी पर सब।।
खिले  सुमन  डाली  पर अच्छे, बस  बाहों का हार लिखूँ।
मैं जीवन के अन्तिम क्षण तक, केवल तुमको प्यार लिखूँ।।
**
मौलिक/अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

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Comment

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Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on April 4, 2023 at 5:58pm

आ भाई समर जी, सादर अभिवादन। गीत पर उपस्थिति और स्नेह के लिए आभार।

Comment by Samar kabeer on April 4, 2023 at 3:10pm

जनाब लक्ष्मण धामी जी आदाब, अच्छा गीत लिखा आपने, बधाई स्वीकार करें ।

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