For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

एक सजनिया चली अकेली

संग न कोई सखी सहेली,
रूप छुपाए लाजन से।
एक सजनिया चली अकेली,
मिलने अपने साजन से।

मधुर मिलन की आस सँजोए,
वह जब कदम बढ़ाती है।
जल थल नभ की नीरवता से,
आहट तम की आती है।
चार पहर की कठिन डगरिया,
पर इठलाती नाजन से।
एक सजनिया चली अकेली,
मिलने अपने साजन से।

धवल चाँदनी बिखरी नभ में,
खिली यामिनी धरती पर।
बसंत बहार कहीं मल्हार,
मधुर रागिनी जगती पर।
आतुर हो बढ़ती वह जैसे,
राधा मुरली बाजन से।
एक सजनिया चली अकेली,
मिलने अपने साजन से।

नभ मंडल में बिखरे तारे,
चाँद क्षितिज के पार चला।
तम निकला झुरमुट से बाहर,
अपनी बाँह पसार चला।
जड़-चेतन से मिटा धर्म कब?
हृदय मलिन तन माजन से।
एक सजनिया चली अकेली,
मिलने अपने साजन से।

ओझल हुए गगन के तारे,
बादल छाए अंबर में।
तिमिर करे कैसे मनमानी?
दीप जले जब अंतर में।
राह सजनिया भूले कैसे?
सुरति जगी हिय गाजन से।
एक सजनिया चली अकेली,
मिलने अपने साजन से।

फैला माया जाल तिमिर का,
इक झोंके से बुझा दिया।
इक द्युति भारी अँधियारे पर,
यह जुगनूँ ने सुझा दिया।
बस इक ज्योति जगाकर देखो,
तम-रजनी के भाजन से।
एक सजनिया चली अकेली,
मिलने अपने साजन से।

आई आँधी बरसे बादल,
जुगनूँ भी सब गए बिखर।
रूप धरा विकराल तमस ने,
सजनी फिर भी चली निडर।
अग्नि विरह की उसके भीतर,
बुझी न बरखा सावन से।
एक सजनिया चली अकेली,
मिलने अपने साजन से।

प्रिय प्रभात से मिलने को वह,
अपना सब कुछ वार गई।
कैसा है यह नियम प्रकृति का!
रजनी जिससे हार गई।
एक छुअन पर सजना उसका,
मिल ना पाई साजन से।
एक सजनिया चली अकेली,
मिलने अपने साजन से।

"मौलिक व अप्रकाशित"

Views: 1089

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Dharmendra Kumar Yadav on August 8, 2021 at 9:38pm

आ. भाई लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर', सप्रेम नमस्कार। रचना को आपने सराहा इसके लिए आपका हार्दिक धन्यवाद।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 8, 2021 at 1:33pm

आ. भाई धर्मेंद्र जी, अभिवादन। इस सुन्दर रचना के लिए हार्दिक बधाई ।

Comment by Dharmendra Kumar Yadav on August 8, 2021 at 11:49am

आदरणीय समर कबीर जी, शुक्रिया। आपके सुझाव पर श्रद्धापूर्वक अमल करने का प्रयास करूँगा।

Comment by Samar kabeer on August 3, 2021 at 6:55pm

जनाब धर्मेन्द्र कुमार यादव जी आदाब, अच्छी रचना हुई है, बधाई स्वीकार करें ।

कृपया मंच पर अपनी सक्रियता बनाएँ ।

Comment by Dharmendra Kumar Yadav on August 2, 2021 at 7:56pm

आप जैसे वरिष्ठ शायर द्वारा उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार।

Comment by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on August 1, 2021 at 9:54pm

आदरणीय धर्मेंद्र कुमार यादव जी आदाब, सुंदर गीत लयबद्ध किया है आपने, बहुत बहुत बधाई स्वीकार करें।  सादर। 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .इसरार

दोहा पंचक. . . .  इसरारलब से लब का फासला, दिल को नहीं कबूल ।उल्फत में चलते नहीं, अश्कों भरे उसूल…See More
16 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सौरभ सर, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। आयोजन में सहभागिता को प्राथमिकता देते…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सुशील सरना जी इस भावपूर्ण प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। प्रदत्त विषय को सार्थक करती बहुत…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, प्रदत्त विषय अनुरूप इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। गीत के स्थायी…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सुशील सरनाजी, आपकी भाव-विह्वल करती प्रस्तुति ने नम कर दिया. यह सच है, संततियों की अस्मिता…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आधुनिक जीवन के परिप्रेक्ष्य में माता के दायित्व और उसके ममत्व का बखान प्रस्तुत रचना में ऊभर करा…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय मिथिलेश भाई, पटल के आयोजनों में आपकी शारद सहभागिता सदा ही प्रभावी हुआ करती…"
yesterday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ   .... बताओ नतुम कहाँ होमाँ दीवारों मेंस्याह रातों मेंअकेली बातों मेंआंसूओं…"
yesterday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ की नहीं धरा कोई तुलना है  माँ तो माँ है, देवी होती है ! माँ जननी है सब कुछ देती…"
Saturday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय विमलेश वामनकर साहब,  आपके गीत का मुखड़ा या कहूँ, स्थायी मुझे स्पष्ट नहीं हो सका,…"
Saturday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय, दयावान मेठानी , गीत,  आपकी रचना नहीं हो पाई, किन्तु माँ के प्रति आपके सुन्दर भाव जरूर…"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service