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सभी पंक्तियाँ 16-16 मात्राभार के क्रम में

घर के किस कोने में रख के
भूल गया तस्वीर तुम्हारी

रोज सवेरे से सिर धुनते
शाम ढले तक याद संभाली
एक सिरा न हाथ में आया
टुकड़े टुकड़े रात खंगाली

आँगन ढूढ़ा कमरा ढूढ़ा
ढूढ़ लिए दालान अटारी
घर के किस कोने में रख के
भूल गया तस्वीर तुम्हारी

देख पपीहे की अकुलाहट
आसमान में बादल आये
बुलबुल छेड़े खूब तराना
भँवरे फूलों पे मंडराये

तू भी कोयल बड़ी निठुर है
क्या समझेगी पीर हमारी
घर के किस कोने में रख के
भूल गया तस्वीर तुम्हारी

खोना पाना हँसना रोना
जीवन के सब खेल तमाशे
मैंने गीतों और ग़ज़ल में
तेरे कितने रूप तराशे

पन्ने पन्ने अक्षर अक्षर
छवि तेरी मनमीत उतारी
घर के किस कोने में रख के
भूल गया तस्वीर तुम्हारी

(मौलिक एवं अप्रकाशित)
बृजेश कुमार 'ब्रज'

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Comment

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Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on October 25, 2020 at 5:10pm

बहुत बहुत आभार आदरणीय यादव जी....

Comment by आशीष यादव on August 26, 2020 at 12:28am

अहा! बहुत सुंदर गीत। बधाई स्वीकार कीजिए आदरणीय।

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on August 24, 2020 at 10:19pm

आदरणीय समीर जी उत्साहवर्धन भरे शब्दों के लिए आपका शुक्रिया...सादर

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on August 24, 2020 at 10:18pm

बहुत बहुत आभार आदरणीय धामी जी....सादर

Comment by Samar kabeer on August 21, 2020 at 3:25pm

जनाब बृजेश कुमार 'ब्रज' जी आदाब, अच्छा गीत लिखा आपने, बधाई स्वीकार करें ।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 19, 2020 at 12:54pm

आ. भाई बृजेश कुमार जीी, सादर अभिवादन । सुन्दद गीत हुआ है । हार्दिक बधाई।

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