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हिन्दी दिवस पर कुछ दोहे :

हिन्दी दिवस पर कुछ दोहे :
हिन्दी हिन्दुस्तान के,माथे का सरताज।
जन-जन की ये आत्मा,हर मन की आवाज।।१
अपने मन की कीजिये, निज भाषा में बात।
सहज सरल प्यारी लगे, भाषा अपनी तात।।२
अंग्रेजी को देश में ,इतना क्यों सम्मान।
हिन्दी का अपमान है, अपना भी अपमान।।३
हिन्दी के उपयोग का, क्यों मन में संकोच।
पर भाषा के वास्ते, उचित नहीं ये सोच।।४
भाषा का प्रयोग नहीं,ज्ञानी की पहचान।
हिन्दी में ही बाँटिये,सकल जगत को ज्ञान।।५
तुलसी मीरा सूर सब, हिन्दी के अवतार।
हिन्दी इनके भाव का, मूलभूत आधार।।६
अंग्रेजी की दासता , हमको नहीं कबूल।
हिन्दी उपवन में लगे, फूलों में ये शूल।। ७
हिन्दी अपना मान है, हिन्दी अपनी शान।
हिन्दी से है विश्व में,भारत की पहचान।।८
हिन्दी सरिता प्यार की,सबको दे आनंद ।
निस दिन इसको पूजिये,करके आँखें बंद।।९
हिन्दी के उत्थान में,मन से दें सहयोग।
हिन्द वर्ण के मध्य में ,अंग्रेजी है रोग।।१०
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment by Sushil Sarna on September 17, 2020 at 8:38pm

आदरणीय  Harash Mahajan जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार ।

Comment by Sushil Sarna on September 17, 2020 at 8:38pm

आदरणीय समर कबीर साहिब, आदाब, सृजन पर आपका द्वारा दिया गया संशोधन कहीं भी हिन्दी शब्दकोष में नज़र नहीं आया। बहरहाल दस्ता की टंकण त्रुटि को संशोधित कर दासता कर रहा हूँ। समय देने का दिल से आभार।

Comment by Harash Mahajan on September 17, 2020 at 4:34pm

आदरणीय सुशील सरना जी सादर अभिवादन । बहुत ही सुंदर दोहों का सृजन ।

सादर ।

Comment by Samar kabeer on September 17, 2020 at 2:20pm

// यहां दासता का भाव हमारी सोच में भाषा की गुलामी से है ।//

इसके लिये 'दास्ता' नहीं "दाश्त:" सहीह शब्द है ।

Comment by Sushil Sarna on September 17, 2020 at 12:58pm
आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार । इंगित त्रुटि मैं अभी संशोधित कर रहा हूँ ।आभार
Comment by Sushil Sarna on September 17, 2020 at 12:53pm
आदरणीय समर कबीर जी, आदाब, सृजन आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से आभारी है ।सर यहां दासता का भाव हमारी सोच में भाषा की गुलामी से है ।सादर
Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on September 17, 2020 at 7:37am

आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन । हिन्दी दिवस पर सुंदर दोहे हुए हैं । हार्दिक बधाई ।

७ वें दोहे में दास्ता की जगह दासता कर लीजिएगा । सादर ...

Comment by Samar kabeer on September 15, 2020 at 8:56pm

जनाब सुशील सरना जी आदाब, हिन्दी दिवस पर अच्छे दोहे लिखे आपने, बधाई स्वीकार करें ।

'हिन्दी हिन्दुस्तान के,माथे का सरताज।
जन-जन की ये आत्मा,हर मन की आवाज'
इस दोहे में 'ताज' और 'आवाज़' की तुकांतता उचित नहीं है,दूसरी पंक्ति यूँ कर सकते हैं:-
'जन जन की ये आत्मा,सब पर इसका राज'
'अंग्रेजी की दास्ता, हमको नहीं कबूल'
इस पंक्ति में 'दास्ता' का क्या अर्थ लिया है आपने?

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