For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

माँ की मिली जो गोद तो जन्नत में आ गए.- गजल

बहर- 221, 2121, 1221, 212

घर से निकल के आज अदालत में आ गए,

नाज़ुक हमारे रिश्ते मुसीबत में आ गए. 

हमने जरा सा आइना उनको दिखा दिया,

अहसान भूल कर वो अदावत में आ गए.

कोने में पेड़ आम का चुपचाप है खड़ा, 

जंगल में थे बबूल सियासत में आ गए. 

चाहत में आसमां की, जमीं भी खिसक गई,

क्यूँ गाँव छोड़ शह्र की आफत में आ गए. 

दामन को हमने सत्य के थामा जरा सा क्या,

सारे महल हमारी खिलाफत में आ गए.

घंटी बजी जो द्वार की पाया उन्हें वहाँ,

थे जो हमारे ख्वाब हकीकत में आ गए.

 

हमको ग़मों से कोई शिकायत नहीं रही,

अब वो हमारी रोज की आदत में आ गए.

भटके जहान भर में मगर कुछ नहीं मिला,  

माँ की मिली जो गोद तो जन्नत में आ गए.

मौलिक एवं अप्रकाशित .

Views: 704

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by बसंत कुमार शर्मा on September 7, 2020 at 3:57pm

आदरणीय आशीष यादव जी सादर नमस्कार 

आपकी हौसला अफजाई का दिल से शुक्रिया 

Comment by आशीष यादव on August 26, 2020 at 12:33am

Very good अशआर हैं। आदरणीय उस्ताद समर कबीर साहब से हमेशा कुछ न कुछ सीखने को मिलता रहता है। good गजल पर congratulations स्वीकार कीजिए।

Comment by बसंत कुमार शर्मा on August 24, 2020 at 11:02am

आदरणीय Sheela Sharma जी सादर नमस्कार 

आपकी हौसलाअफजाई के लिए दिल से शुक्रिया 

Comment by बसंत कुमार शर्मा on August 24, 2020 at 11:02am

आदरणीय Samar kabeer जी सादर नमस्कार 

आपकी इस्लाह से मुझे हमेशा ही कुछ न कुछ सीखने को मिलता है, सादर नमन आपको 

Comment by Sheela Sharma on August 24, 2020 at 10:12am

बहुत सुंदर रचना..।हार्दिक बधाई।

Comment by Samar kabeer on August 21, 2020 at 3:24pm

जनाब बसंत कुमार शर्मा जी आदाब, ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है, बधाई स्वीकार करें ।

'अहसान भूल कर वो अदावत में आ गए'

इस मिसरे में 'अदावत में आ गए' वाक्य विन्यास ठीक नहीं है, सहीह वाक्य होगा "अदावत पे आ गए"

'सारे महल हमारी खिलाफत में आ गए'

इस मिसरे में 'ख़िलाफ़त' क़ाफ़िया उचित नहीं आप यहाँ "मुख़ालिफ़त" कहना चाहते हैं,जो यहाँ आ नहीं सकता ।

Comment by बसंत कुमार शर्मा on August 20, 2020 at 11:53am

आदरणीया   Dimple Sharma  जी सादर नमस्कार 

आपकी प्रतिक्रिया के लिए दिल से शुक्रिया 

Comment by बसंत कुमार शर्मा on August 20, 2020 at 11:52am

आदरणीय लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'  जी सादर नमस्कार 

आपकी हौसलाअफजाई के लिए सादर नमन आपको 

Comment by Dimple Sharma on August 19, 2020 at 10:07pm

नमस्ते आदरणीय, खुबसूरत ग़ज़ल पर बधाई स्वीकार करें, तीसरा शेर कमाल हुआ है विशेष बधाई इस शेर पर ।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 19, 2020 at 11:12am
आ. भाई बसंत कुमार जी, सादर अभिवादन । इस बेहतरीन गजल को लिए बहुत बहुत बधाई ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आ. भाई दयाराम जी, सादर अभिवादन। रचना पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए आभार।"
1 hour ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"सहर्ष सदर अभिवादन "
8 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, पर्यावरण विषय पर सुंदर सारगर्भित ग़ज़ल के लिए बधाई।"
11 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आदरणीय सुरेश कुमार जी, प्रदत्त विषय पर सुंदर सारगर्भित कुण्डलिया छंद के लिए बहुत बहुत बधाई।"
11 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आदरणीय मिथलेश जी, सुंदर सारगर्भित रचना के लिए बहुत बहुत बधाई।"
11 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, प्रोत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।"
11 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आ. भाई दयाराम जी, सादर अभिवादन। अच्छी रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
14 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आ. भाई सुरेश जी, अभिवादन। प्रदत्त विषय पर सुंदर कुंडली छंद हुए हैं हार्दिक बधाई।"
16 hours ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
" "पर्यावरण" (दोहा सप्तक) ऐसे नर हैं मूढ़ जो, रहे पेड़ को काट। प्राण वायु अनमोल है,…"
18 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। पर्यावरण पर मानव अत्याचारों को उकेरती बेहतरीन रचना हुई है। हार्दिक…"
18 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"पर्यावरण पर छंद मुक्त रचना। पेड़ काट करकंकरीट के गगनचुंबीमहल बना करपर्यावरण हमने ही बिगाड़ा हैदोष…"
19 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"तंज यूं आपने धूप पर कस दिए ये धधकती हवा के नए काफिए  ये कभी पुरसुकूं बैठकर सोचिए क्या किया इस…"
22 hours ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service