For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल ( उकता गया हूँ इनसे मेरे यार कम करो....)

(221 2121 1221 212)

उकता गया हूँ इनसे मेरे यार कम करो
ख़ालिस की है तलब ये अदाकार कम करो

आगे जो सबसे है वो ये आदेश दे रहा
आराम से चलो सभी रफ़्तार कम करो

वो हमसे कह रहे हैं कि मसनद बड़ी बने
हम उनसे कह रहे हैं कि आकार कम करो

जो मेरे दुश्मनों को गले से लगा रहा
मुझसे कहा कि दोस्तोंं से प्यार कम करो

अपने घरों में क़ैद हैं , हर रोज़ छुट्टियाँ
किससे कहें कि अब तो ये इतवार कम करो

बाज़ार में तो सुस्ती-सी छाई है इन दिनों
फ़रमान है कि आज से व्यापार कम करो

लेती नहीं हैंं नाम ये कम होने का कभी
अपनी ज़रूरतों का ही अंबार कम करो

*मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 580

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by सालिक गणवीर on July 13, 2020 at 10:39pm

आदरणीय अमीरूद्दीन 'अमीर' साहिब

आदाब

ऐसा कह कर मुझे शर्मिंदा न करें जनाब.बड़ों का आदर करना हमारी संस्कृति है आदरणीय.जाने अंजाने कुछ गुस्ताखी हो गई हो तो मुआफी दरकार है। 

Comment by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on July 13, 2020 at 6:46pm

आदरणीय सालिक गणवीर जी, आपकी ज़र्रा नवाज़ी और मान देने के लिए शुक्रिया।

जनाब आख़िरी मिसरे में शायद भूले से "ही" अतिरिक्त टाईप हो गया है, जिस वजह से मिसरा बह्र में नहीं रहा। देखियेगा। 

Comment by सालिक गणवीर on July 13, 2020 at 4:19pm

आदरणीय रवि भसीन 'शाहिद' साहिब

आदाब.

ग़ज़ल पर आपकी उपस्थिति और सराहना के लिए हृदय से आभार व्यक्त करता हूँ. आपकी इस्लाह पर आपका सुझाया हुआ मतले का सानी मिसरा बदल दिया है, इसके लिए आपको अलग से शुक्रिया. सादर

Comment by सालिक गणवीर on July 13, 2020 at 4:12pm

आदरणीय अमीरूद्दीन 'अमीर' साहिब

आदाब

ग़ज़ल पर आपकी हाज़िरी और हौसला अफजाई के लिए मश्कूर-ओ-ममनून हूँ. आपकी इस्लाह पर अमल करते हुए मतला भी बदल दिया है. सादर.

Comment by रवि भसीन 'शाहिद' on July 13, 2020 at 1:06am

आदरणीय सालिक गणवीर साहिब, आपको इस ग़ज़ल के लिए बहुत बधाई! आपकी कलम चल रही है, सो यूँ ही चलाते रहिये - अल्लाह करे ज़ोर-ए-कलम और ज़ियादा!

हुज़ूर, मतले को लेकर (इश्तिहार) आदरणीय अमीरुद्दीन 'अमीर' साहिब से मुत्तफ़िक़ हूँ, और आपको अपने कुछ नाक़िस से मशवरे भी पेश कर रहा हूँ:
उकता गया हूँ इनसे मेरे यार कम करो
ख़ालिस की है तलब ये अदाकार कम करो
या
उकता गया हूँ इनसे मेरे यार कम करो
ग़द्दार दो मुझे ये वफ़ादार कम करो
या
उकता गया हूँ इनसे मेरे यार कम करो
कोई हो बर-ख़िलाफ़ तरफ़दार काम करो

जनाब, दूसरे शेर के ऊला के लिए मशवरा है:
(221 2121 1221 212)
आगे जो सब से है वो ये आदेश दे रहा

चौथे शेर में 'दोस्तो' को 'दोस्तों' कर लीजिये।

पाँचवाँ शे'र लाजवाब है!

छटे शेर में 'फरमान' को 'फ़रमान' कर लीजिये।

सातवें शेर में 'है' को 'हैं' (ज़रूरतें) कर लीजिये।

Comment by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on July 12, 2020 at 5:30pm

जनाब सालिक गणवीर जी आदाब, अच्छी ग़ज़ल हुई है, कई उम्दा शैर हुए हैं बधाई स्वीकार करें।

जनाब 'इश्तिहार' शब्द 2121 मात्रिक है जिसे आपने 1221 पर लिया है, देखियेगा।

//आगे बहुत है सबसे वो,ये आदेश दे रहा//   ये मिसरा शब्द 'ये' की वजह से बह्र में नहीं है सिर्फ़ 'ये' हटा दीजिए।

//वो मेरे दुश्मनों के गले से लगा रहा

मुझसे कहा कि दोस्तो से प्यार कम करो//. अगर आप चाहें तो इस शैर के शिल्प को और बेहतर कर सकते हैं, देखें :

"जो मेरे दुश्मनों को गले से लगा रहा
वो मुझसे कह रहा है कि बस प्यार कम करो" 

//अपनी ज़रूरतों को ही हर बार कम करो//. इस मिसरे को यूँ कर के देख सकते हैं :

"अपनी ज़रूरतों का ये अंबार कम करो" 

जनाब, अगर आप को सुझाव पसंद न आएं तो नज़र अन्दाज़ कर दीजिएगा। सादर ।

Comment by सालिक गणवीर on July 12, 2020 at 4:41pm

भाई सुरेंद्र नाथ सिंह 'कुशक्षत्रप'

आदाब

ग़ज़ल पर आपकी हाज़िरी और हौसला अफजाई के लिए तह-ए-दिल से मश्कूर-ओ- ममनून हूँ.

Comment by नाथ सोनांचली on July 12, 2020 at 1:04pm

आद0 सालिक गणवीर जी सादर अभिवादन

आपके हवाले से एक बेहतरीन मुरस्सा ग़ज़ल पढ़ने को मिली। शैर दर शैर बधाई स्वीकार कीजिये।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आदरणीय मिथिलेश भाई, रचनाओं पर आपकी आमद रचनाकर्म के प्रति आश्वस्त करती है.  लिखा-कहा समीचीन और…"
12 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आदरणीय सौरभ सर, गाली की रदीफ और ये काफिया। क्या ही खूब ग़ज़ल कही है। इस शानदार प्रस्तुति हेतु…"
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .इसरार

दोहा पंचक. . . .  इसरारलब से लब का फासला, दिल को नहीं कबूल ।उल्फत में चलते नहीं, अश्कों भरे उसूल…See More
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सौरभ सर, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। आयोजन में सहभागिता को प्राथमिकता देते…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सुशील सरना जी इस भावपूर्ण प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। प्रदत्त विषय को सार्थक करती बहुत…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, प्रदत्त विषय अनुरूप इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। गीत के स्थायी…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सुशील सरनाजी, आपकी भाव-विह्वल करती प्रस्तुति ने नम कर दिया. यह सच है, संततियों की अस्मिता…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आधुनिक जीवन के परिप्रेक्ष्य में माता के दायित्व और उसके ममत्व का बखान प्रस्तुत रचना में ऊभर करा…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय मिथिलेश भाई, पटल के आयोजनों में आपकी शारद सहभागिता सदा ही प्रभावी हुआ करती…"
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ   .... बताओ नतुम कहाँ होमाँ दीवारों मेंस्याह रातों मेंअकेली बातों मेंआंसूओं…"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ की नहीं धरा कोई तुलना है  माँ तो माँ है, देवी होती है ! माँ जननी है सब कुछ देती…"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service