For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s Blog – August 2024 Archive (5)

समय के दोहे -लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

पतझड़ छोड़ वसन्त में,  उग जाते हैं शूल

जीवन में रहता नहीं, समय सदा अनुकूल।१।

*

सावन सूखा  बीतता, कभी  डुबोता जेठ

बिना भूल के भी समय, देता कान उमेठ।२।

*

करते सुख की कामना, मिलते हैं आघात

जब बोते  सूखा  पड़े, पकने  पर बरसात।३।

*

अनचाही जो हो दशा, दुखी न होना मीत

देना  मुट्ठी  बंद  ही, रही  समय  की  रीत।४।

*

रहा निराला ही सदा, यहाँ समय का खेल

जीवन कटे बिछोह में, मरण कराता मेल।५।

*

छुरी बगल में मीत के, दुश्मन के कर फूल

कैसे…

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 24, 2024 at 9:23am — 2 Comments

कौन हुआ आजाद-(दोहा गीत)

किसने पायी मुक्ति है, कौन हुआ आजाद।

प्रश्न खड़ा हर द्वार  पर,  आजादी के बाद।।

*

कहने को तो भर  गये, अन्नों  से गोदाम।

फिर भी भूखे पेट हैं, इतने क्योंकर राम।।



गर्म आज भी खूब है, क्यों काला बाजार।

हर चौराहे लुट  रही, बहुत आज भी नार।।



अन्तिम जन है आज भी, पहले जैसा दीन।

चोर उचक्के  हो  गये, खुशियों  में तल्लीन।।

*

हाथ लिए जो लाठियाँ, अब भी पाता दाद।

किसने पायी मुक्ति है, कौन हुआ आजाद।।

*

देशभक्ति  अब  गौंण  है, गद्दारी …

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 14, 2024 at 2:53pm — 8 Comments

बाबू जी (दोहे)

जिस को भी  कड़वे  लगे, बाबू जी के बोल

उसने समझो खो दिया, हर अमृत अनमोल।१।

*

बाबू जी ने क्या  किया, कह  दे जो औलाद

समझो उसने कर लिया, सकल पुण्य बर्बाद।२।

*

बाबू जी करते कहाँ, भौतिक सुख की आस

उन के मन  में  चाह   बस, सन्तानें  हों पास।३।

*

सोचा सब के चैन  की, खुद  रहकर बेचैन…

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 8, 2024 at 6:24am — 6 Comments

विरह के दोहे

विरही मन कहता फिरे, समझे पीड़ा कौन

आँगन,पनघट, राह सह, हँसी उड़ाये भौन।१।

*

करते   हैं   दो  चार   जो, परदेशी  से नैन

जले विरह की आग में, उन का मन बेचैन।२।

*

घुमड़ी बदली देखकर, मन में भड़की आग

जिस के पिय परदेश में, फूटे उस के भाग।३।

*

जब साजन परदेश में, शृंगारित ना केश

सावन दावानल लगे, जलता हर परिवेश।४।

*

पिया मिलन की प्यास जो, तन मन करे अधीर

रूठी-रूठी भूख  को, लगती  विष  सी…

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 3, 2024 at 11:30am — 2 Comments

पसीना बोलता है (गीत)- लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'



पसीना बोलता है (गीत)

****

चन्द सूखी रोटियाँ खाकर

कष्ट में हँस गीत नित गाकर

            खुशी वो घोलता है।

              पसीना बोलता है।।

*

देह मैली, पर  जगत  चमका

सब सुधारा, आ जहाँ धमका

हाथ  की  छैनी  कुदालों  से

नित द्वार सुख के खोलता है।

              पसीना बोलता है।।

*

स्वप्न जो है पोषता सब का

राह आगन देखता उस का

शौक से कब छोड़ घर अपना

परदेश  में  वह  डोलता  है।

             पसीना बोलता है।।

*

खेत  हों …

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 2, 2024 at 2:35pm — 2 Comments

Monthly Archives

2025

2024

2023

2022

2021

2020

2019

2018

2017

2016

2015

2014

2013

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

घाव भले भर पीर न कोई मरने दे - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

अच्छा लगता है गम को तन्हाई मेंमिलना आकर तू हमको तन्हाई में।१।*दीप तले क्यों बैठ गया साथी आकर क्या…See More
1 hour ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहते हो बात रोज ही आँखें तरेर कर-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और स्नेह के लिए आभार। यह रदीफ कई महीनो से दिमाग…"
9 hours ago
PHOOL SINGH posted a blog post

यथार्थवाद और जीवन

यथार्थवाद और जीवनवास्तविक होना स्वाभाविक और प्रशंसनीय है, परंतु जरूरत से अधिक वास्तविकता अक्सर…See More
16 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"शुक्रिया आदरणीय। कसावट हमेशा आवश्यक नहीं। अनावश्यक अथवा दोहराए गए शब्द या भाव या वाक्य या वाक्यांश…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"हार्दिक धन्यवाद आदरणीया प्रतिभा पाण्डेय जी।"
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"परिवार के विघटन  उसके कारणों और परिणामों पर आपकी कलम अच्छी चली है आदरणीया रक्षित सिंह जी…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"आ. प्रतिभा बहन, सादर अभिवादन।सुंदर और समसामयिक लघुकथा हुई है। हार्दिक बधाई।"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"आदाब। प्रदत्त विषय को एक दिलचस्प आयाम देते हुए इस उम्दा कथानक और रचना हेतु हार्दिक बधाई आदरणीया…"
yesterday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"आदरणीय शहज़ाद उस्मानी जी, आपकी टिप्पणी के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। शीर्षक लिखना भूल गया जिसके लिए…"
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"समय _____ "बिना हाथ पाँव धोये अन्दर मत आना। पानी साबुन सब रखा है बाहर और फिर नहा…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"हार्दिक स्वागत मुहतरम जनाब दयाराम मेठानी साहिब। विषयांतर्गत बढ़िया उम्दा और भावपूर्ण प्रेरक रचना।…"
yesterday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
" जय/पराजय कालेज के वार्षिकोत्सव के अवसर पर अनेक खेलकूद प्रतियोगिताओं एवं साहित्यिक…"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service