For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s Blog – January 2014 Archive (4)

मेरा तरूण सन्नाटा तोड़ो - लक्ष्मण धामी ‘मुसाफिर’

तुम कोमल कमसिन लता नवीन और विजन में खड़ा विटप मैं ।

चाहो तो तुम आलिंगित हो, मेरा तरूण सन्नाटा तोड़ो ।।

वात झूमती चलती जब भी, मौन मेरा भी वाणी पाता ।

लेकिन इसका लाभ कहो क्या, कौन विजन में गुनने आता ।

भाग में मेरे लिखा दिवाकर, तरस तनिक जो कभी न खाता ।

तूफानों से हुआ जो नाता, गिरने का भय डँसता जाता ।



निभर्य स्नेहिल जीवन जी लूँगा, मुझसे यदि नाता जोड़ो ।

चाहो तो तुम आलिंगित हो, मेरा तरूण सन्नाटा तोड़ो ।।

मेरे सूने जीवन की…

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 26, 2014 at 8:46pm — 19 Comments

कहो तुम चाँद से इतना (ग़ज़ल ) - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

1222 1222  1222 1222



हमारी प्यास ले जाओ, जरा सूरज घटाओं तक

समय इतना नहीं बाकी, खबर भेजें हवाओं तक



तुम्हारी कोशिशें थी नित, यहाँ केवल दवाओं तक

हमारा भाग भा खोटा, न जा पाया दुआओं तक



कहाँ से भेजता रब भी, मदद को रहमतें अपनी

पहुचनें ही न पायी जब, सदा मेरी खलाओं तक



कहो तुम चाँद से इतना, सितारों रोशनी मकसद

रहा मत कर सदा इतना, सिमटकर तूँ कलाओं तक



सुना है हो गये हो अब, खुदा तुम भी मुहब्बत के

हमारी हद सहन तक ही,…

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 23, 2014 at 7:30am — 12 Comments

आत्मकथन

आत्मकथन



जब जब बनाना चाहा

शब्दों को मिसरी

कुछ पूर्वाग्रह

घोल गये कड़ुवाहट

नहीं बना पाया मैं

खुद को मधुमक्खी

तब कैसे होते मधु

मेरे कहे गये शब्द

मैंने चाहा दिखना

बगुले सा धवल

तब कहां से आती

कोयल सी मधुरता

काक होकर भी

कहां निभा पाया

काक का धर्म

बस जमाये रखी

गिद्ध दृष्टि  

हर जीवित-मृत पर

समझ सकते हैं आप

कितना तुच्छ जीव

बनकर रह गया हूं मैं…

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 19, 2014 at 6:00am — 18 Comments

ये मासूम सनम मेरा (ग़ज़ल )

सभी सम्माननीय पाठकवृंदों को नववर्ष कि शुभकामनाओं सहित

**************************************************************

1222 / 1221 / 1212 / 1222

*******************************



सुबह उसकी  महक लेकर , हवा मेला सजाती  है,

उदासी जुल्फ से उसकी  , चुरा के  शाम  लाती  है



वो जब  काँपती अंगुली , मेरी लट  में फिराती  है

यादे  बूढ़ी  माई की , वो फिर से  मन जगाती  है



पहुचता हूँ जो उस तक मैं , गुजरती साँझ बेला को

वो दिन भर की कथा…

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 2, 2014 at 8:00am — 6 Comments

Monthly Archives

2024

2023

2022

2021

2020

2019

2018

2017

2016

2015

2014

2013

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दिनेश कुमार विश्वकर्मा जी, सुंदर ग़ज़ल के लिए बहुत बहुत बधाई।"
54 minutes ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
" आदरणीय अमीरुद्दीन 'अमीर' जी, सुंदर ग़ज़ल के लिए बहुत बहुत बधाई।"
56 minutes ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय संजय शुक्ला जी, सुंदर ग़ज़ल के लिए बहुत बहुत बधाई।"
59 minutes ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय प्रेम चंद गुप्ता जी, सुंदर ग़ज़ल के लिए बहुत बहुत बधाई।"
1 hour ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, सुंदर ग़ज़ल के लिए बहुत बहुत बधाई।"
1 hour ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, सुंदर ग़ज़ल के लिए बहुत बहुत बधाई आदरणीय।"
1 hour ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, सुंदर ग़ज़ल के लिए बहुत बहुत बधाई आदरणीय।"
1 hour ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय संजय शुक्ला जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और दाद-ओ-तहसीन से नवाज़ने के लिए तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
1 hour ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय अमित जी, सबसे पहले ग़ज़ल पोस्ट करने व सुंदर ग़ज़ल के लिए बधाई स्वीकार करें।"
1 hour ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"ग़ज़ल 2122 1212 22..इश्क क्या चीज है दुआ क्या हैंहम नहीं जानते अदा क्या है..पूछ मत हाल क्यों छिपाता…"
1 hour ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई अमरुद्दीन जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति, उत्साहवर्धन और सुझाव के लिए आभार।"
1 hour ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति, उत्साहवर्धन  के लिए आभार।"
1 hour ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service