ज़िद कर रही हूँ ...
जानती हूँ
हर नसीब में
हर शै
नहीं हुआ करती
फिर भी
मैं असंभव को
संभव करने की
ज़िद कर रही हूँ
कुछ और नहीं
बस
उम्र के हर पड़ाव पर
सिर्फ
प्यार करने की
ज़िद कर रही हूँ
मैं नहीं जानती
सात जन्म क्या होते हैं
पर उम्र की उस अवस्था पर
जब सब ख्वाहिशें
दम तोड़ देती हैं
चाहती हूँ
तब भी तुम
किसी मठ के
सन्यासी सी एकाग्रता लिए
मुझ से प्यार करने चले आना…
Added by Sushil Sarna on September 21, 2017 at 3:10pm — 6 Comments
तुम ही बताओ न ...
क्या हुआ
हासिल
फासलों से
आ के ज़रा
तुम ही बताओ न
इक लम्हा
इक उम्र को
जीता है
ख़ामोशियों के
सैलाब पीता है
उल्फ़त के दामन पे
हिज़्र की स्याही से
ये कैसी तन्हाई
लिख डाली
आ के
ज़रा
तुम ही बताओ न
ये किन
आरज़ूओं के अब्र हैं
जो रफ्ता रफ़्ता
पिघल रहे हैं
एक लावे की तरह
चश्मे साहिल से
क्यूँ हर शब्
तेरी…
Added by Sushil Sarna on September 5, 2017 at 5:30pm — 8 Comments
तुम ही बताओ न ...
क्या हुआ
हासिल
फासलों से
आ के ज़रा
तुम ही बताओ न
इक लम्हा
इक उम्र को
जीता है
ख़ामोशियों के
सैलाब पीता है
उल्फ़त के दामन पे
हिज़्र की स्याही से
ये कैसी तन्हाई
लिख डाली
आ के
ज़रा
तुम ही बताओ न
ये किन
आरज़ूओं के अब्र हैं
जो रफ्ता रफ़्ता
पिघल रहे हैं
एक लावे की तरह
चश्मे साहिल से
क्यूँ हर शब्
तेरी…
Added by Sushil Sarna on September 5, 2017 at 5:30pm — No Comments
भोर होने से पहले ...
वाह
कितनी अज़ीब
बात है
सौदा हो गया
महक का
गुल खिलने से
पहले
सज गयी सेजें
सौदागरों की आँखों में
शब् घिरने से
पहले
बट गया
जिस्म
टुकड़ों में
हैवानियत की
चौख़ट पर
भर गए ख़ार
गुलशन के दामन में
बहार आने से
पहले
वाह
इंसानियत के लिबास में
हैवानियत
कहकहे लगाती है
ज़िंदगी
दलालों की मंडी में
रोज मरती है
जीने…
Added by Sushil Sarna on August 31, 2017 at 4:30pm — 12 Comments
जब से तूने ..
जब से तूने
मुझे
अपनी दुआओं में
शामिल कर लिया
मैं किसी
खुदा के घर नहीं गया
जब् से तूने
अपने लबों पे
मेरा नाम
रख लिया
मैं
तिश्नगी भूल गया
जब से तूने
मेरी आँखों को
अपने अक्स से
सँवारा हे'
मेरे लबों ने
हर लम्हा
तुझे पुकारा है
जब से तूने
निगाह फेरी है
लम्स-ए-मर्ग का
अहसास होता है
वो शख़्स
जो तुझमें कहीं
सोता था
आज
दहलीज़े…
Added by Sushil Sarna on August 30, 2017 at 3:30pm — 8 Comments
सिहरन ....
ये किसके आरिज़ों ने चिलमन में आग लगाई है।
ये किसकी पलकों ने फिर ली आज अंगड़ाई है।
होने लगी सिहरन सी अचानक से इस ज़िस्म में -
ये किसकी हया को छूकर नसीमे सहर आई है।
............................................................
ज़न्नत ...
वो उनके शहर की हवाओं के मौसम l
कर देते हैं यादों से आँखों को पुरनम l
तमाम शब रहती है ख़्वाबों में ज़न्नत -
पर्दों से हया के छलकती .है शबनम l
सुशील सरना
मौलिक एवं…
Added by Sushil Sarna on August 30, 2017 at 2:52pm — 6 Comments
लौट आओ ....
बहुत सोता था
थक कर
तेरे कांधों पर
मगर
जब से
तू सोयी है
मैं
आज तक
बंद आँखों में भी
चैन से
सो नहीं पाया
माँ
जब भी लगी
धूप
तुम
छाया बन कर
आ गए
जब से
तुम गए हो
मुझे
धूप
चिढ़ाती है
छाया में भी
बहुत सताती है
पापा
डांटते थे
जब पापा
माँ
तुम मुझे
अपनी ममता में
छुपाती थी
डांटती थी
जब माँ…
Added by Sushil Sarna on August 22, 2017 at 5:52pm — 17 Comments
एक मुट्ठी राख़ ....
न ये सुबह तेरी है न रात तेरी है l
आबगीनों सी बंदे हयात तेरी है l
इतराता है क्यूँ तू मैं की क़बा में -
एक मुट्ठी राख़ औकात तेरी है l
........................................
अंगड़ाइयों से...
उम्र जब अपने शबाब पर होती है l
तो मोहब्बत भी बेहिसाब होती है l
जवां अंगड़ाइयों से मय बरसती है -
हर मुलाक़ात हसीन ख़्वाब होती है l
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on August 17, 2017 at 4:38pm — 2 Comments
नज़र की हदों से .....
अग़र
तेरे बिम्ब ने
मेरे स्मृति पृष्ठ पर
दस्तक
न दी होती
मैं कब का
तेरी नज़र की
हदों से
दूर हो गया होता
शायद
रह गया था
कोई क्षण
अधूरी तृषा लिए
तृप्ति के
द्वार पर
अगर
तेरी तृषा के
स्पंदन ने
मेरी श्वासों को
न छुआ होता
सच
मैं कब का
तेरी नज़र की
हदों से
दूर हो गया होता
शायद
लिपटा था
कोई मूक निवेदन
अपनी…
Added by Sushil Sarna on August 13, 2017 at 9:17pm — 12 Comments
नज़र की हदों से .....
अग़र
तेरे बिम्ब ने
मेरे स्मृति पृष्ठ पर
दस्तक
न दी होती
मैं कब का
तेरी नज़र की
हदों से
दूर हो गया होता
शायद
रह गया था
कोई क्षण
अधूरी तृषा लिए
तृप्ति के
द्वार पर
अगर
तेरी तृषा के
स्पंदन ने
मेरी श्वासों को
न छुआ होता
सच
मैं कब का
तेरी नज़र की
हदों से
दूर हो गया होता
शायद
लिपटा था
कोई…
Added by Sushil Sarna on August 13, 2017 at 9:00pm — 2 Comments
ज़िंदगी...
ज़िंदगी का
हासिल
है
मौत
क्या
मौत का
हासिल
है
ज़िंदगी ?
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on August 11, 2017 at 8:39pm — 6 Comments
क्षणिक सुख ...
कितने
दुखों से
भर दिया
बज़ुर्गों का दामन
वर्तमान के
क्षणिक सुख की
सोच ने
सैंकड़ों झुर्रियों में
छुपा दिया
बज़ुर्गों के सुख को
वर्तमान के
क्षणिक सुख की
सोच ने
मानवीय संवेदनाओं के
हर बंध अनुबंध
बिसरा डाले
वर्तमान के
क्षणिक सुख की
सोच ने
ममता की अनुभूति
जो भूले न
आज तक
उन्हें
कन्धों तक का
मोहताज़ बना दिया
वर्तमान के…
Added by Sushil Sarna on August 8, 2017 at 6:37pm — 6 Comments
शर्मीले लब ……….
ये मोहब्बत भी
अज़ब शै है ज़माने में
उम्र गुज़र जाती है
समझने
और समझाने में
हो जाती हैं
सांसें चोरी
खबर नहीं होती
नींद नहीं आती बरसों
उनके इक बार मुस्कुराने में
डूबे रहते हैं पहरों
इक दूजे के ख़्यालों में
गुज़र जाती शब्
इक दूजे से बतियाने में
राहे मोहब्बत में
जाने ये कैसे मुक़ाम आते हैं
दो ज़िस्म
इक जान हो जाते हैं
मैं और तुम के अहसास
कहीं फ़ना हो जाते हैं
मख़मली लम्हे…
Added by Sushil Sarna on August 5, 2017 at 3:39pm — 8 Comments
डुगडुगी बजती रही.......
1.
गरजे घन घनघोर
प्रलय चहुँ ओर
तृण बहे
तन बहे
करके
सब को अशांत
फिर
वृष्टि का तांडव
हो गया
शांत
2
बुझ गयी
कुछ क्षण जल कर
माचिस की तीली सी
जंग लड़ती
साँसों से
असहाय काया
अस्थि कलश में
सिमट गयी
मुट्ठी भर राख में
साँसों की
माया
3
तालियों के शोर
चिलचिलाती धूप
करतब दिखाती बच्ची
रस्सी से गिर पड़ी
साँसों से संघर्ष…
Added by Sushil Sarna on August 4, 2017 at 5:26pm — 4 Comments
तन्हा....
बहुत डरता हूँ
हर आने वाली
सहर से
शायद इसलिए कि
शाम ने सौंपी थी
जो रात
मेरे ख़्वाबों को
जीने के लिए
ढक देगी उसे सहर
अपने पैरहन से
हमेशा के लिए
और मैं
रह जाऊंगा
सहर की शरर से
छलनी हुए
ख्वाबों के साथ
तन्हा
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on July 23, 2017 at 9:18pm — 10 Comments
जाम ... (एक प्रयास)
२१२२ x २
शाम भी है जाम भी है
वस्ल का पैग़ाम भी है।l
हाल अपना क्या कहें अब
बज़्म ये बदनाम भी है।l
हम अकेले ही नहीं अब
संग अब इलज़ाम भी है।l
बाम पर हैं वो अकेले
सँग सुहानी शाम भी है।l
ख़्वाब डूबे गर्द में सब
संग रूठा गाम भी है।l
ख़ौफ़ क्यूँ है अब अजल से
हर सहर की शाम भी है ll
होश में आएं भला क्यूँ
संग यादे जाम भी है !l
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on July 21, 2017 at 5:30pm — 20 Comments
व्यर्थ है ...
व्यर्थ है
अपनी आशाओं को
दियों की
उदास पीली
मटमैली रोशनी में
मूर्त रूप देना
व्यर्थ है
प्रतीक्षा पलों की
चिर वेदना को
कपोलों पर
खारी स्याही से अंकित
शब्दों के स्पंदन को
मूर्त रूप देना
व्यर्थ है
शून्यता में विलीन
पदचापों को
अपने स्नेह पलों में
समाहित कर
मौन पलों को
वाचाल कर
मन कंदरा के
भावों को
मूर्त रूप…
Added by Sushil Sarna on July 18, 2017 at 10:00pm — 8 Comments
तृण तृण भीगा
प्रीत पलों का
सावन की बौछारों में
तड़पन भीगी
तन-मन भीगा
सावन की बौछारों में
बीती रैना
भीगे बैना
सावन की बौछारों में
पावस रुत में
नैना बरसे
सावन की बौछारों में
निष्ठुर पिया को
पल पल तरसे
सावन की बौछारों में
बादल गरजे
बिजली चमकी
सावन की बौछारों में
भीगी चौली
भीगी अंगिया
सावन की बौछारों में
चूड़ी खनकी
मिलन को तरसी
सावन की बौछारों में …
Added by Sushil Sarna on July 16, 2017 at 1:30pm — 6 Comments
नेम प्लेट ...
कुछ देर बाद
मिल जाऊंगा मैं
मिट्टी में
पर
देखो
हटाई जा रही है
निर्जीव काल बेल के साथ
लटकी
मेरी ज़िंदा
मगर
उखड़े उखड़े अक्षरों की
एक अजीब सी
चुप्पी साधे
पुरानी सी
नेम प्लेट
मुझसे पहले
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on July 14, 2017 at 3:30pm — 24 Comments
आसक्ति …….
परिचय हुआ जब दर्पण से
तो चंचल दृग शरमाने लगे
अधरों पे कम्पन्न होने लगा
पलकों में बिंब मुस्काने लगे ll
काजल मण्डित रक्तिम लोचन
अनुराग निशा से बढ़ाने लगे
कच क्रीडा में लिप्त समीर से
मेघ अम्बर में शरमाने लगे ll
लज्ज़ायुक्त स्वर्णिम कपोल पे
फिर जलद नीर बरसाने लगे
कनक कामिनी की काया पे
मधुप आसक्ति दर्शाने लगे ll
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on July 12, 2017 at 4:30pm — 15 Comments
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