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रमेश कुमार चौहान's Blog – August 2014 Archive (2)

दोहे-रमेश चौहान

काम काम दिन रात है, पैसे की दरकार ।

और और की चाह में, हुये सोच बीमार ।।



रूपया ईश्वर है नही, पर सब टेके माथ ।

जीवन समझे धन्य हम, इनको पाकर साथ ।।



मंदिर मस्जिद देव से, करते हम फरियाद ।

अल्ला मेरे जेब भर, पसरा भौतिक वाद ।।



निर्धनता अभिशाप है, निश्चित समझे आप ।

कोष बड़ा संतोष है, मत कर तू संताप ।।



धरे हाथ पर हाथ तू, सपना मत तो देख ।

करो जगत में काम तुम, मिटे हाथ की रेख ।।



बात नही यह दोहरी,  है यही गूढ ज्ञान ।

धन…

Continue

Added by रमेश कुमार चौहान on August 3, 2014 at 10:00pm — 7 Comments

त्रिभंगी छंद

ये रिमझिम सावन, अति मन भावन, करते पावन, रज कण को ।
हर मन को हरती, अपनी धरती, प्रमुदित करती, जन जन को ।
है कलकल करती, नदियां बहती, झर झर झरते, अब झरने ।
सब ताल तलैया, डूबे भैया, लोग लगे हैं, अब डरने ।।
-----------------------------------------------------------

मौलिक अप्रकाशित

Added by रमेश कुमार चौहान on August 3, 2014 at 6:30pm — 10 Comments

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