For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

काम काम दिन रात है, पैसे की दरकार ।
और और की चाह में, हुये सोच बीमार ।।

रूपया ईश्वर है नही, पर सब टेके माथ ।
जीवन समझे धन्य हम, इनको पाकर साथ ।।

मंदिर मस्जिद देव से, करते हम फरियाद ।
अल्ला मेरे जेब भर, पसरा भौतिक वाद ।।

निर्धनता अभिशाप है, निश्चित समझे आप ।
कोष बड़ा संतोष है, मत कर तू संताप ।।

धरे हाथ पर हाथ तू, सपना मत तो देख ।
करो जगत में काम तुम, मिटे हाथ की रेख ।।

बात नही यह दोहरी,  है यही गूढ ज्ञान ।
धन तो इतना चाहिये, जीवन का हो मान ।।
.....................................
मौलिक अप्रकाशित

Views: 470

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by रमेश कुमार चौहान on August 7, 2014 at 4:42pm

सभ महानुभावों का आभार
आदरणीय भंडारीजी एवं सौरभजी  आप द्वय द्वारा इंगित दोष उचित है इसमें संशोधन का प्रयास करूंगा


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 5, 2014 at 6:33pm

आदरणीय रमेशभाईजी, आपकी प्रस्तुति पर आदरणीय गिरिराजभाई ने अच्छे सुझाव दिये हैं. मैं उनके कहे से सहमत हूँ. साथ ही,

खुदा नही है रूपया, पर सब टेके माथ  में रुपया को रूपया न लिखें. यानि रुपये के  में दीर्घ ऊ न लगावें.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 5, 2014 at 11:51am

आदरणीय रमेश भाई , सुन्दर दोहों के लिये बधाइयाँ ।

अंति दो दोहों मे कुछ कमियाँ लग रहीं है  --

धरे हाथ पर हाथ तुम, सपना मत तो देख ।     तुम के साथ देख ग़लत प्रयोग है , तू देख सही लगता है मुझे , सोचियेगा ।

करो जगत में काम तुम, मिटे हाथ की रेख ।।

दूसरे में -  कहें इसे गुढ़ ज्ञान ,   सही शब्द,  गूढ़  है जिसे मात्रा मिलाने के लिये गुढ़ ले लियी गया है , मेरे खयाल से जानकार इसे ग़लत कहेंगे । आप जानकारों की प्रतिक्रिया का इंतिज़ार  अवश्य कर लें सुधारने के पहले । 

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 5, 2014 at 11:12am

आदरणीय रमेश भाई इन सुन्दर दोहों के लिए हार्दिक बधाई .

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on August 4, 2014 at 11:25pm

बहुत ही सुंदर दोहे कहे आपने आदरणीय रमेश जी, आपको बहुत-२ बधाई

Comment by ram shiromani pathak on August 4, 2014 at 9:10pm

सुन्दर प्रयास हुआ है आदरणीय भाई जी। ।सादर 

Comment by Meena Pathak on August 4, 2014 at 11:50am

बहुत उम्दा दोहे आ० रमेश जी ..बहुत बहुत बधाई 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"आदरणीय  उस्मानी जी डायरी शैली में परिंदों से जुड़े कुछ रोचक अनुभव आपने शाब्दिक किये…"
Thursday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"सीख (लघुकथा): 25 जुलाई, 2025 आज फ़िर कबूतरों के जोड़ों ने मेरा दिल दुखाया। मेरा ही नहीं, उन…"
Wednesday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"स्वागतम"
Tuesday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

अस्थिपिंजर (लघुकविता)

लूटकर लोथड़े माँस के पीकर बूॅंद - बूॅंद रक्त डकारकर कतरा - कतरा मज्जाजब जानवर मना रहे होंगे…See More
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय सौरभ भाई , ग़ज़ल की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार , आपके पुनः आगमन की प्रतीक्षा में हूँ "
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय लक्ष्मण भाई ग़ज़ल की सराहना  के लिए आपका हार्दिक आभार "
Tuesday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"धन्यवाद आदरणीय "
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"धन्यवाद आदरणीय "
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय कपूर साहब नमस्कार आपका शुक्रगुज़ार हूँ आपने वक़्त दिया यथा शीघ्र आवश्यक सुधार करता हूँ…"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय आज़ी तमाम जी, बहुत सुन्दर ग़ज़ल है आपकी। इतनी सुंदर ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें।"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, ​ग़ज़ल का प्रयास बहुत अच्छा है। कुछ शेर अच्छे लगे। बधई स्वीकार करें।"
Sunday
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"सहृदय शुक्रिया ज़र्रा नवाज़ी का आदरणीय धामी सर"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service