For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

Dimple Sharma's Blog – June 2020 Archive (5)

बगैर बादल के आ बरस जा तू इश्क़ की कुछ फुवार कर दे

1212, 212, 122, 12 12, 212, 122

बगैर बादल के आ बरस जा तू इश्क़ की कुछ फुवार कर दे

है एक अर्से से प्यासी धरती बढ़ा ले क़ुर्बत बहार कर दे

बहुत बड़ा है शहर ये दिल्ली यहाँ के चर्चे बहुत सुने हैं

हमें तो अपना ही गांव प्यारा तू लाख इसको सुधार कर दे

बदल रहे हैं घरों के ढांचे सभी के अपने अलग है कमरे

पुराने बर्तन नए हुए हैं तू भी बदल जा कनार कर दे

क़मर से कह दो ठहर के निकले कि दीद उनका अभी हुआ है

नहीं भरा उनसे दिल हमारा ख़ुदा क़मर को बुख़ार कर…

Continue

Added by Dimple Sharma on June 13, 2020 at 5:30pm — 6 Comments

तू ही तू है

एक नज़्म

अरकान-2212, 2212, 2212

दिल-ए-दरीया आब में तू ही तू है

हर इक लहर-ए-नाब में तू ही तू है

मौसम शगुफ़्ता है मुहब्बत में देखो

लाहौर ते पंजाब में तू ही तू है

हर इक वुज़ू पे हर दफ़ा मांगा तुझे

मेरी दुआ से याब में तू ही तू है

पकड़े हुए हूं आज तक दस्तार को

ख़ुर्शीद में महताब में तू ही तू है

हासिल कहाँ मुझको मेरे महबूब तू

फिर भी मेरे हर ख़्वाब में तू ही तू है

भीगी हुई पलकों का दामन छोड़ कर

बढ़ते हुए सैलाब में तू ही…

Continue

Added by Dimple Sharma on June 9, 2020 at 7:05pm — 18 Comments

बेख़ौफ़ हम

कहा रूक जा सब ने, बेख़ौफ़ हम
चले गांव जल्दी से बेख़ौफ़ हम

कहीं एक विधवा अकेले खड़ी
खड़े साथ उसके ले बेख़ौफ़ हम

हटा ले ये चादर मेरे शव से तू
जला दे या दफ़ना दे, बेख़ौफ़ हम

अरे क्या कहें साँप हम पे गिरा
डरे थे सभी बस थे, बेख़ौफ़ हम

हमें रेत का घर सरल सा लगा
समन्दर कि लहरों से, बेख़ौफ़ हम

वो पीछे से मारे ,हुनर उनका था
खड़े सामने उनके, बेख़ौफ़ हम

डिम्पल शर्मा
मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by Dimple Sharma on June 7, 2020 at 2:36pm — 10 Comments

वहाँ एक आशिक खड़ा है ।

वहाँ एक आशिक खड़ा है ।

जो दिल तोड़ कर हँस रहा है ।।

मुहब्बत करें तो करें क्या ..?

मुहब्बत में धोका बड़ा है ।।

हमें आग का डर नहीं था ।

कि सैलाब अन्दर भरा है ।।

भले जिस्म थक हार जाए ।

अभी जोश दिल में बड़ा है ।।

ख़ुदा ख़ैर हमको मिले वो ।

ज़माना बहुत ही बुरा है ।।

कहांँ है जहाँ में मुहब्बत ।

सभी तो सभी से ख़फ़ा है ।।

हमें रात लड़ना पड़ा था ।

उजाला बहुत ग़मज़दा है ।।

यकीं कौन हम पे करेगा ।

ये ढांचा हमीं पे…

Continue

Added by Dimple Sharma on June 5, 2020 at 2:00pm — 9 Comments

कहीं नायाब पत्थर है , कहीं मन्दिर मदीना है

कहीं नायाब पत्थर है , कहीं मन्दिर मदीना है

तेरा घर संगेमरमर का , मेरा तो नीला ज़ीना है

कोई मन्दिर पे सर टेके, कोई काबा को माने है

मैं हर पत्थर पे सर टेकूं जहाँ नेकी क़रीना है

कहीं पर धूप है तपती, कहीं सागर की लहरें हैं

अजब है रंग दरिया का, जहाँ तेरा सफ़ीना है

कोई ऐ सी में बैठा है , कोई छतरी को भी तरसे

मगर ख़ूँ एक सा बहता, बहे इक सा पसीना है

कभी मिट्टी से भी पूछो, कि जलना है या दफना दूं

कहे मिट्टी दे आज़ादी…

Continue

Added by Dimple Sharma on June 3, 2020 at 6:30pm — 7 Comments

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
Tuesday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Sunday
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Sunday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Sunday
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Saturday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Saturday
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Saturday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service