For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

बगैर बादल के आ बरस जा तू इश्क़ की कुछ फुवार कर दे

1212, 212, 122, 12 12, 212, 122

बगैर बादल के आ बरस जा तू इश्क़ की कुछ फुवार कर दे
है एक अर्से से प्यासी धरती बढ़ा ले क़ुर्बत बहार कर दे

बहुत बड़ा है शहर ये दिल्ली यहाँ के चर्चे बहुत सुने हैं
हमें तो अपना ही गांव प्यारा तू लाख इसको सुधार कर दे

बदल रहे हैं घरों के ढांचे सभी के अपने अलग है कमरे
पुराने बर्तन नए हुए हैं तू भी बदल जा कनार कर दे

क़मर से कह दो ठहर के निकले कि दीद उनका अभी हुआ है
नहीं भरा उनसे दिल हमारा ख़ुदा क़मर को बुख़ार कर दे

कटी नहीं थी पतंग मेरी मुझे तो अपनों से हारना था
यूं हारने में अलग मज़ा था गधों की गिनती हज़ार कर दे

तलाश मेरी रही अधूरी, किताब पढ़ कर वहीं पे रख दी
नहीं था चहरा कवर के जैसा मुझे तू चहरा सँवार कर दे

वो न्यूज़ चैनल अलग नहीं था बदल के देखा हरेक चैनल
बता के आँधी बता के तूफ़ाँ ये बस ख़बर को ग़ुबार कर दे

है दिल कि धड़कन में तू ही तू बस ओ रेज़ा रेज़ा बदन भी तेरा
बहुत हुआ अब यूं तड़पाना मुझमें जो छूटा वो निखार कर दे

डिम्पल शर्मा
मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 497

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Dimple Sharma on June 16, 2020 at 12:32pm

आदरणीय उस्ताद मोहतरम Samar Kabeer साहब आदाब, चरण स्पर्श , जी आदरणीय मैं आपकी सलाह से पूर्णतः सहमत हूँ , और आपके कहे अनुसार बड़े शायरों के कलाम और 'ग़ज़ल की बाबत' किताब भी पढ़ रही हूँ , इसके अलावा अभी ये जो फिलहाल उल्टा सीधा कलम चलाने का प्रयास कर रही हूँ वो बस इस लिए की आदमी जब प्रेक्टिली कुछ करता है तभी उसे पता चलता है कि कहाँ चूक हुई क्या कुछ छूटा क्या कुछ नया सीखा , अभी कुछ दिनों से समुह में मुझे आप सभी से वो सब जानकारीयाँ मिली जो मैं बस पढ़ते रहती तो मिल तो जाती पर इतने संक्षेप में समझ में नहीं आती , इसलिए आदरणीय बस कोशिश करती हूँ कि मैं बहुत सी ऐसी गलतियां करुँ जो गलतियां मुझे हर बार कुछ अनौखा कुछ नया सीखा जाए , जो कोई किताब या कोई ग़ज़ल ना सीखा पाए और आपकी डांट आपका मार्गदर्शन सीखा जाए , आदरणीय कृपा दृष्टि बनाए रखें आशीर्वाद के लिए हमेशा सर पर हाथ रखें और गलतियां करुँ तब कान पकड़ लें ।

Comment by Samar kabeer on June 16, 2020 at 11:45am

मुहतरमा डिम्पल शर्मा जी आदाब, ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,दो सूरज इस पर अपना प्रकाश डाल चुके हैं ।

ग़ज़ल कहना बच्चों का खेल नहीं है,बहुत मुश्किल काम है,कथ्य,शिल्प,व्याकरण,बह्र हर चीज़ का ध्यान रखना पड़ता है,आपको मेरा मशविरा है कि पुराने शाइरों का कलाम ज़ियादा से ज़ियादा पढ़ें,और वीनस जी की किताब "ग़ज़ल की बाबत" को मन लगा कर पढ़ें ।

Comment by Dimple Sharma on June 15, 2020 at 10:33pm

आदरणीय Ravi Shukla जी नमस्कार, ग़ज़ल पर आपकी उपस्थिति के लिए बहुत बहुत धन्यवाद आभार,इसको बेहतर करने का पूर्ण प्रयास रहेगा , आपके पास भी कुछ अच्छे सुझाव हों तो कृप्या साझा करें,इस क्षेत्र में अभी नई हूँ बहर और ग़ज़ल की कोई विशेष जानकारी है नहीं परन्तु यक़ीन है कि आप सभी गुणी जनों के सानिध्य में जल्दी ही बहुत कुछ अच्छा सीखने को मिलेगा और कुछ न कुछ बेहतर कर लूंगी , आशीर्वाद बनाए रखें आदरणीय मार्गदर्शन करते रहें,एक बार फिर हृदय तल से आभार आपका।

Comment by Dimple Sharma on June 15, 2020 at 10:28pm

आदरणीय रवि भसीन'शाहिद'जी नमस्ते, ग़ज़ल पर आपकी उपस्थिति मेरा हौंसला बढ़ाती है , आपके कहे अनुसार में आख़िरी शेर पर हुई गलती को जरूर ठीक से सुधार करने की कोशिश करुंगी , आपका मार्गदर्शन आगे भी यूं ही मिलता रहे इसी उम्मीद के साथ हृदय तल से आभार व्यक्त करती हूँ आपका , आशीर्वाद बनाए रखें।

Comment by Ravi Shukla on June 15, 2020 at 1:37pm

आदरणीयाा डिंपल जी इस गीत पर आदरणीय रवि  भसीन जी ने बहर के बारे में कह ही दिया है  और आपकी कोशिश भी बहुत अच्‍छी हुई है  हार्दिक बधाई स्‍वीकार करें । अशआर को अभीऔर बेहतर करने की गुंजाइश है इनमें । साादर 

Comment by रवि भसीन 'शाहिद' on June 15, 2020 at 1:26pm

आदरणीया Dimple Sharma जी, ग़ज़ल का प्रयास अच्छा हुआ है, बधाई स्वीकार करें। इस बह्र के अरकान इस तरह लिख लीजिये:
मुक्तज़ब मुसम्मन मख़्बून मर्फूअ' मख़्बून मर्फूअ' मुसक्किन मुज़ाइफ़
फ़ऊल फ़ेलुन फ़ऊल फ़ेलुन // फ़ऊल फ़ेलुन फ़ऊल फ़ेलुन
12122  /  12122  //  12122  /  12122

आदरणीया, लफ़्ज़ 'दीद' स्त्रीलिंग होता है। लता जी का गाया हुआ और साहिर लुधियानवी जी का लिखा हुआ बहुत मशहूर गीत है:

  मुझे मिल गया बहाना तेरी दीद का

  कैसी ख़ुशी ले के आया चाँद ईद का


आख़िरी शे'र का सानी बह्र से ख़ारिज है, कृपया दोबारा तक़तीअ कर के देखें। सादर

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186

ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 186 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का मिसरा आज के दौर के…See More
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"  क्या खोया क्या पाया हमने बीता  वर्ष  सहेजा  हमने ! बस इक चहरा खोया हमने चहरा…"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"सप्रेम वंदेमातरम, आदरणीय  !"
Sunday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

Re'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
Saturday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"स्वागतम"
Friday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आदरणीय रवि भाईजी, आपके सचेत करने से एक बात् आवश्य हुई, मैं ’किंकर्तव्यविमूढ़’ शब्द के…"
Friday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
Dec 10
anwar suhail updated their profile
Dec 6
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

न पावन हुए जब मनों के लिए -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

१२२/१२२/१२२/१२****सदा बँट के जग में जमातों में हम रहे खून  लिखते  किताबों में हम।१। * हमें मौत …See More
Dec 5
ajay sharma shared a profile on Facebook
Dec 4
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"शुक्रिया आदरणीय।"
Dec 1
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, पोस्ट पर आने एवं अपने विचारों से मार्ग दर्शन के लिए हार्दिक आभार।"
Nov 30

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service