For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

एक नज़्म
अरकान-2212, 2212, 2212

दिल-ए-दरीया आब में तू ही तू है
हर इक लहर-ए-नाब में तू ही तू है

मौसम शगुफ़्ता है मुहब्बत में देखो
लाहौर ते पंजाब में तू ही तू है

हर इक वुज़ू पे हर दफ़ा मांगा तुझे
मेरी दुआ से याब में तू ही तू है

पकड़े हुए हूं आज तक दस्तार को
ख़ुर्शीद में महताब में तू ही तू है

हासिल कहाँ मुझको मेरे महबूब तू
फिर भी मेरे हर ख़्वाब में तू ही तू है

भीगी हुई पलकों का दामन छोड़ कर
बढ़ते हुए सैलाब में तू ही तू है

आब - पानी, जल, चमक
नाब - पवित्र
शगुफ़्ता -खिला हुआ
याब - प्राप्त होनेवाला, मिलनेवाला
ख़ुर्शीद - सूर्य
महताब - चाँद
सैलाब -नदी आदि के पानी की बाढ़ 

डिम्पल शर्मा
मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 941

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Dimple Sharma on June 13, 2020 at 3:37pm

आदरणीय रवि भसीन'शाहिद'जी आपको और उस्ताद मोहतरम Samar Kabeerसाहब को मेरा नतमस्तक हो कर प्रणाम है स्वीकार करें , आप दोनों गुणी जनों को प्रणाम चरण स्पर्श। आदरणीय उस्ताद मोहतरम को तो धन्यवाद कहने लायक शब्दों का चयन करने में भी मुझे वर्षों लग जाएंगे और फिर भी सही शब्द नहीं मिल पाएंगे, आशीर्वाद बनाए रखें।

Comment by रवि भसीन 'शाहिद' on June 13, 2020 at 10:47am

आदरणीया Dimple Sharma जी, नमस्कार। जी मुझे शे'र-ओ-शाइरी का जो भी थोड़ा-बहुत इल्म है वो उस्ताद-ए-मुहतरम समर कबीर साहिब की इनायत से ही हासिल हुआ है, इसलिए प्रणाम के हक़दार वो ही हैं, मैं नहीं। जहाँ तक समर्पण की भावना का सवाल है, वो भी उस्ताद जी की ही प्रेरणा से मिलती है, जब देखते हैं कि कमज़ोर नज़र और कई कठिनाइयों के बावजूद वो रोज़ाना कितनी ही ग़ज़लों और अशआर की इस्लाह करते हैं और हर एक को अपना ज्ञान बाँटते हैं। हम लोग तो उनके मुक़ाबले में बहुत सुस्त और कामचोर हैं आदरणीया, पढ़ने में भी, लिखने में भी, और दूसरों की मदद करने में भी। आपकी ज़र्रा-नवाज़ी के लिए हार्दिक आभार।

Comment by Dimple Sharma on June 12, 2020 at 7:41pm

आदरणीय रवि भसीन'शाहिद'जी नतमस्तक हो कर प्रणाम करती हूँ आपके ज्ञान को और उससे भी ऊपर इतने सहज ढंग से जो आप मुझे सीखा रहे हो उस भाव को भी,आपकी ये विनम्रता दर्शाती है कि ग़ज़ल और शायरी के प्रति आपका समर्पण भाव कितना अधिक है , आपके इस समर्पण भाव को दंडवत प्रणाम है आदरणीय , आपकी ये सलाह मैं निःसंदेह ध्यान रखूंगी और आगे इसका उपयोग करने के पहले इसके बारे में अच्छे से समझने की कोशिश करुंगी।
बहुत बहुत धन्यवाद आभार आपका आदरणीय, आपने इतना वक्त दिया ।

Comment by रवि भसीन 'शाहिद' on June 12, 2020 at 5:50pm

आदरणीय Dimple Sharma जी, एक और वज़ाहत करना चाहता हूँ।

/यदि इक को एक करती हूं तो मात्रा २१ हो जाती है फिर आगे का जो शब्द मैंने लिया है वो लहर है तो वहाँ गड़बड़ लग रही है/
आदरणीया, 'लहर' का वज़्न 21 होता है, 12 नहीं। ये देखिए:
2122 / 1212 / 112
दिल में इक लहर से उठी है अभी
कोई ताज़ा हवा चली है अभी
(नासिर काज़मी)
आप 'लह्र' लिखने की आदत डाल लेंगी तो ग़लती होने के इमकानात कम हो जाएँगे।

और एक लम्हे के लिए मान भी लिया जाए कि वहाँ 12 वज़्न का कोई शब्द होता, तो इज़ाफ़त इस्तेमाल करने से उसका वज़्न बदल जाता। अब देखिए 'सहर' का वज़्न 12 होता है, लेकिन इज़ाफ़त इस्तेमाल करने से कैसे बदल जाता है:
11212 / 11212 / 11212 / 11212
पिला साक़िया मय-ए-जाँ पिला कि मैं लाऊँ फिर ख़बर-ए-जुनूँ
ये ख़िरद की रात छटे कहीं नज़र आए फिर सहर-ए-जुनूँ
(नून मीम राशिद)
इस शे'र में 'सहर-ए-जुनूँ' का वज़्न 11212 है, मतलब स 1 ह 1 रे 2

अब एक उदाहरण देखिये कि वाव-ए-अत्फ़ का इस्तेमाल करने से लफ़्ज़ों का वज़न कैसे बदल जाता है:
शब = 2     रोज़ = 21    माह = 21    साल = 21
2122  /  1212  /  112
वो फ़िराक और वो विसाल कहाँ
वो शब-ओ-रोज़-ओ-माह-ओ-साल कहाँ
(मिर्ज़ा ग़ालिब)
शबो = 12
रोज़ो = 21 (मात्रा पतन किया है, इसे 22 भी ले सकते हैं)
माहो = 21 (मात्रा पतन किया है, इसे 22 भी ले सकते हैं)


आपको ये सुझाव देना चाहूँगा कि इज़ाफ़त का इस्तेमाल समझने के लिए उस्ताद शोअरा की ग़ज़लों की तक़्तीअ करें, और उन्हें ऊँचा बोलकर बह्र की लय में पढ़ें। और जब तक इज़ाफ़त का इस्तेमाल अच्छे से पकड़ में ना आये तब तक इसे अपनी शाइरी में इस्तेमाल करने से परहेज़ करें।

Comment by Dimple Sharma on June 12, 2020 at 5:47pm

आदरणीय रवि भसीन'शाहिद'जी नमस्ते , जी सही कहा आपने , ये शेर बस यूं ही ज़हन में आ गया था आपके दिए उदाहरण को पढ़ते हुए तो लिख डाला , परन्तु यह भी गलत नहीं हुआ देखा जाए तो कुछ और नया सीखा दिया आपने इस गलती को देखते हुए।
बहुत बहुत धन्यवाद आभार।

Comment by रवि भसीन 'शाहिद' on June 12, 2020 at 5:42pm

आदरणीय Dimple Sharma जी, नमस्ते। जी शे'र बह्र में नहीं है मुहतरमा।

अज़मत = 22
लेकिन इज़ाफ़त इस्तेमाल करने से:
अज़    म    ते
  2      1   1/2

इसी तरह हुनर = 12
लेकिन इज़ाफ़त इस्तेमाल करने से:
हु    न    रे
1    1   1/2

आदरणीया, इज़ाफ़त और वाव अत्फ़ के इस्तेमाल में जल्दबाज़ी न करें। पहले इनका शब्दों के वज़्न पर प्रभाव समझ लें और फिर इस्तेमाल करना शुरू करें।

Comment by Dimple Sharma on June 12, 2020 at 4:59pm

आदरणीय रवि भसीन'शाहिद'जी नमस्ते आपने जो उदाहरण दिए हैं उनमें से एक शेर बन पड़ा है मुक्कमल हुआ की नहीं , नहीं जानती पर आपकी खिदमत में पेश है शेर जो कुछ यूं हुआ है..
2212, 2212, 2212
अज़्मत बहर-ए-बे-कराँ की देख ले
उसके हुनर ए ताब में तू ही तो है

अज़्मत - महिमा
ताब - सहन-शक्ति, बरदाश्त
बहर-ए-बे-कराँ = समंदर जो बिना किनारे का है

Comment by Dimple Sharma on June 12, 2020 at 3:34pm

आदरणीय रवि भसीन'शाहिद'जी आदाब , आपके सुझावों के लिए हृदय तल से धन्यवाद और आपने जो नई नई जानकारियां दि हैं वो बहुत ही कारगर साबित होगी मेरे लिए भविष्य में आप सभी गुणी जनों ने अपना अनमोल समय देकर जो कृपा की है उसके लिए आभार व्यक्त करने को शब्द नहीं हैं मेरे पास , आदरणीय निचे एक शेर के उल्ला में "देखा" शब्द के कारण तक़तीअ बिगड़ रही थी तो उस शेर को मैंने कुछ यूं बदल दिया है आप एक बार देख लें तो कृपा होगी ..
2212, 2212, 2212
मौसम शगुफ़्ता है इशारा ख़ूब है

धन्यवाद आदरणीय।

Comment by रवि भसीन 'शाहिद' on June 12, 2020 at 2:25pm

आदरणीया Dimple Sharma जी, 

/मैं देखती हूँ रात दिन ऊपर वहाँ
ख़ुर्शीद में महताब में तू ही तो है/

जी, अब रब्त स्पष्ट है।

आदरणीया, आपको इज़ाफ़त के संबंध में वज़ाहत करना चाहूँगा। इज़ाफ़त दो तरह से इस्तेमाल की जाती है। एक तो ऐसे:
दर्दे-दिल = दिल का दर्द (शब्द समूह को उल्टी दिशा से पढ़ें)
दाग़-ए-हसरत-ए-हस्ती = ज़िन्दगी की हसरत के दाग़
चराग़-ए-दर-ए-मयख़ाना = मयख़ाने के दर का चराग़
रहीन-ए-सितम-हा-ए-रोज़गार = रोज़गार के ज़ुल्मों के नीचे

इज़ाफ़त का दूसरा इस्तेमाल है पहले लफ़्ज़ की विशेषता बताना, जैसे:
दिल-ए-नादाँ = दिल जो नादान है

बहर-ए-बे-कराँ = समंदर जो बिना किनारे का है
नग़मा-ए-पुरदर्द = नग़मा जो दर्द से भरा है
लहर-ए-नाब = लहर जो पवित्र है

Comment by Dimple Sharma on June 11, 2020 at 11:38pm

आदरणीय गिरधारी सिंह गहलोत'तुरंत' जी हृदय तल से आभारी हूं आपकी के आपने मुझे और मेरी बेकार सी ग़ज़ल को अपना इतना वक्त दिया और इस लिंक को शेयर करने के लिए भी विशेष धन्यवाद , ये मेरा सौभाग्य है कि मुझे आप सभी गुणी जनों से इतना कुछ सीखने को मिल रहा है आशीर्वाद और दया दृष्टि बनाए रखें।

2212, 2212, 2212
मौसम शगुफ़्ता है इशारा ख़ूब है

इस शेर में यूं परिवर्तन कर दिया जाए तो कैसा रहेगा, क्षमा चाहुंगी आपको परेशान कर रही हूं, कृप्या मार्गदर्शन करें।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . नजर

नजरें मंडी हो गईं, नजर हुई  लाचार । नजरों में ही बिक गया, एक जिस्म सौ बार ।। नजरों से छुपता…See More
4 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आपको प्रयास सार्थक लगा, इस हेतु हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय लक्ष्मण धामी जी. "
4 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से अलंकृत करने का दिल से आभार आदरणीय । बहुत…"
5 hours ago
Chetan Prakash commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"छोटी बह्र  में खूबसूरत ग़ज़ल हुई,  भाई 'मुसाफिर'  ! " दे गए अश्क सीलन…"
23 hours ago
Chetan Prakash commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"अच्छा दोहा  सप्तक रचा, आपने, सुशील सरना जी! लेकिन  पहले दोहे का पहला सम चरण संशोधन का…"
23 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। सुंदर, सार्थक और वर्मतमान राजनीनीतिक परिप्रेक्ष में समसामयिक रचना हुई…"
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . नजर

नजरें मंडी हो गईं, नजर हुई  लाचार । नजरों में ही बिक गया, एक जिस्म सौ बार ।। नजरों से छुपता…See More
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२/२१२/२१२/२१२ ****** घाव की बानगी  जब  पुरानी पड़ी याद फिर दुश्मनी की दिलानी पड़ी।१। * झूठ उसका न…See More
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-125 (आत्मसम्मान)
"शुक्रिया आदरणीय। आपने जो टंकित किया है वह है शॉर्ट स्टोरी का दो पृथक शब्दों में हिंदी नाम लघु…"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-125 (आत्मसम्मान)
"आदरणीय उसमानी साहब जी, आपकी टिप्पणी से प्रोत्साहन मिला उसके लिए हार्दिक आभार। जो बात आपने कही कि…"
Sunday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-125 (आत्मसम्मान)
"कौन है कसौटी पर? (लघुकथा): विकासशील देश का लोकतंत्र अपने संविधान को छाती से लगाये देश के कौने-कौने…"
Sunday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-125 (आत्मसम्मान)
"सादर नमस्कार। हार्दिक स्वागत आदरणीय दयाराम मेठानी साहिब।  आज की महत्वपूर्ण विषय पर गोष्ठी का…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service